धर्म-अध्यात्म

गोरखपुर का विष्णु मंदिर: जहाँ दिन में 3 बार बदलती है भगवान की मुस्कान

गोरखपुर का विष्णु मंदिर: जहाँ दिन में 3 बार बदलती है भगवान की मुस्कान

गोरखपुर के प्रसिद्ध विष्णु मंदिर में करें अद्वितीय दर्शन, जहाँ दिन में तीन बार बदलती है भगवान की मुखाकृति। 600 साल पुराने इतिहास और चमत्कारी मूर्ति की कहानी जानें। कैसे पहुंचें और क्या हैं खास आयोजन।


गोरखपुर: देश और दुनिया में भगवान विष्णु के हजारों मंदिर हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में मेडिकल कॉलेज रोड पर स्थित एक ऐसा अद्भुत मंदिर है, जहाँ विराजमान भगवान विष्णु के विग्रह की मुखाकृति दिन में तीन बार, तीन अलग-अलग तरह से बदलती है। यानी, भगवान की मुस्कान दिनभर में सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग भावों में भक्तों को दर्शन देती है। भगवान विष्णु के भक्तों में इस मंदिर को लेकर गहरी आस्था है और प्रत्येक बृहस्पतिवार को यहाँ भक्तों का सैलाब उमड़ता है।

कसौटी पत्थर से निर्मित दुर्लभ प्रतिमा और 600 साल पुराना इतिहास

गोरखपुर के इस विष्णु मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की प्रतिमा काले कसौटी पत्थर से निर्मित है, जो अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है। कसौटी पत्थर वह होता है, जिससे सोने की शुद्धता परखी जाती है। इस मूर्ति को 12वीं सदी के पाल काल खंड का बताया जाता है। मंदिर की भूमि का इतिहास करीब 600 साल पुराना है, हालांकि आधुनिक युग में मंदिर का निर्माण और स्थापना एक सदी पहले की है। इस तरह की दुर्लभ प्रतिमा देश में केवल तिरुपति बालाजी में और दूसरी गोरखपुर के इसी विष्णु मंदिर में है।

मंदिर प्रांगण में लगे शिलापट्ट पर दर्ज तथ्य.
मंदिर प्रांगण में लगे शिलापट्ट पर दर्ज तथ्य. (फोटो: गो गोरखपुर)

औरंगजेब के क्रूर शासन से लेकर महारानी की आध्यात्मिक क्रांति तक: मूर्ति की रोचक कहानी

गोरखपुर विष्णु मंदिर में विराजमान भगवान विष्णु की मूर्ति मिलने और स्थापित होने का इतिहास बेहद रोचक है। बताया जाता है कि क्रूर मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल में जब वह देश के मंदिरों को तोड़ रहा था, उसी क्रम में मझौली का दीर्घेश्वरी नाथ मंदिर भी उसकी क्रूरता का शिकार हुआ। विष्णु भगवान की यह मूर्ति तब एक पोखरे के अंदर मिली थी।

जब मूर्ति पोखरे से मिली, उस समय अंग्रेजों का शासन चल रहा था। अंग्रेज इस मूर्ति को जांच के लिए लखनऊ ले गए और फिर इसे इंग्लैंड भेजने की तैयारी कर रहे थे। तब स्थानीय रईस जैसे मधुसूदन दास और भगवती दास भागवत दास ने एकजुट होकर मझौली स्टेट में जाकर महारानी को इसकी सूचना दी। जब विष्णु मूर्ति को लंदन ले जाने की खबर मझौली स्टेट की महारानी श्याम कुमारी को लगी, तो उन्होंने इसे वापस पाने के लिए एक अध्यात्मिक क्रांति प्रारंभ कर दी। अंग्रेजों से चल रही आज़ादी की लड़ाई के समानांतर यह एक आध्यात्मिक लड़ाई थी, जिसकी गूँज भारत से लंदन तक पहुँची। रानी श्याम कुमारी ने प्रिवी काउंसिल में अपील की, जहाँ फैसला उनके पक्ष में हुआ। अंग्रेज सरकार को रानी के आगे झुकना पड़ा और भगवान विष्णु की वह मूर्ति 7 जुलाई 1915 को रॉयल म्यूजियम से वापस गोरखपुर रानी के पास आ गई।

मूर्ति वापस आने पर रानी श्याम कुमारी ने अपने पति स्वर्गीय राजा कौशल किशोर प्रसाद माली की स्मृति में असुरन पोखरा पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया और 8 मई 1922 को पूरे शास्त्रीय विधि-विधान से भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्थापित किया।

मंदिर की अन्य विशेषताएँ और धार्मिक आयोजन

चतुर्धाम की स्थापना: गोरखपुर के इस विष्णु मंदिर के चारों कोणों में चारों धामों (द्वारिकाधीश, बद्रीनाथ, जगन्नाथ और रामेश्वर ज्योतिर्लिंग) की स्थापना की गई है। माना जाता है कि मंदिर की परिक्रमा करने से भक्तों को चारों धाम के दर्शन का फल मिल जाता है।

गौशाला: मंदिर में गायों और गोवंश के संरक्षण तथा संवर्धन हेतु एक गौशाला भी स्थापित की गई है। गौशाला से प्राप्त दूध, दही और घी भगवान के भोग-प्रसाद तथा आरती के लिए उपयोग होता है।

विशेष आयोजन: प्रत्येक वर्ष नौ दिवसीय श्री हरि विष्णु महायज्ञ होता है। इसके साथ ही, यहाँ राम कथा और स्थानीय कलाकारों द्वारा रामलीला का भव्य आयोजन व मंचन किया जाता है। मलमास और भगवान विष्णु के अवतारों के प्राकट्य दिवसों (मत्स्य, वराह, कूर्मा, वामन, परशुराम जयंती, श्रीराम नवमी और श्री कृष्ण जन्माष्टमी) पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, खासकर भगवान वराह की जयंती (भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया/हरितालिका) पर।

कैसे पहुँचे गोरखपुर विष्णु मंदिर?

अगर आप गोरखपुर में स्थित इस अद्भुत विष्णु मंदिर की यात्रा का विचार कर रहे हैं, तो आप यहाँ किसी भी समय आ सकते हैं।

  • वायु मार्ग: गोरखपुर में महायोगी गोरखनाथ डोमेस्टिक एयरपोर्ट है, जो देश के सभी प्रमुख इंटरनेशनल एयरपोर्ट से जुड़ा है। एयरपोर्ट पर उतरकर आप ऑटो-रिक्शा, टैक्सी या कैब से आसानी से मंदिर पहुँच सकते हैं।
  • रेल मार्ग: गोरखपुर रेलवे स्टेशन देश के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा है। यहाँ से राजधानी एक्सप्रेस, वैशाली एक्सप्रेस, संपर्क क्रांति एक्सप्रेस जैसी सुपरफास्ट ट्रेनें गुजरती हैं। रेलवे स्टेशन से आप ऑटो-रिक्शा, टैक्सी या कैब के जरिए आसानी से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
  • सड़क मार्ग: दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, अयोध्या जैसे शहरों से गोरखपुर के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। आप यूपीएसआरटीसी के जरिए ऑनलाइन बस का टिकट बुक कर सकते हैं या टूरिस्ट एजेंसी के माध्यम से गोरखपुर जा सकते हैं।

यह मंदिर गोरखपुर के इतिहास में गोरखनाथ मंदिर के अलावा एक और हीरे की तरह दमक रहा है। अपनी सुविधा और बजट के अनुसार यात्रा का शुभारंभ कीजिए और भगवान विष्णु के अनुपम दर्शन का लाभ प्राप्त कीजिए।



Priya Srivastava

Priya Srivastava

About Author

Priya Srivastava दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से पॉलिटिकल साइंस में परास्नातक हैं. गोगोरखपुर.कॉम के लिए इवेंट, एजुकेशन, कल्चर, रिलीजन जैसे टॉपिक कवर करती हैं. 'लिव ऐंड लेट अदर्स लिव' की फिलॉसफी में गहरा यकीन.

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