दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर ने ‘हठयोग’ के महत्व पर दिया व्याख्यान

गोरखपुर विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025 पर सप्तदिवसीय कार्यशाला का दूसरा दिन। ऑनलाइन व्याख्यान में दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ. लक्ष्मी मिश्रा ने 'योग मार्तंड' पर चर्चा की। सुबह योग प्रशिक्षण में भी छात्रों ने भाग लिया।
गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय स्थित महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ द्वारा कुलाधिपति माननीय आनंदीबेन पटेल की प्रेरणा और कुलपति प्रो. पूनम टण्डन के संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025 के उपलक्ष्य में चल रही सप्तदिवसीय ग्रीष्मकालीन योग कार्यशाला का दूसरा दिन आज, मंगलवार (17 जून 2025) को भी उत्साहपूर्ण रहा। इस दौरान ऑनलाइन व्याख्यान और योग प्रशिक्षण सत्र दोनों आयोजित किए गए।
सुबह योग प्रशिक्षण, शाम को ‘योग मार्तंड’ पर व्याख्यान
सुबह 8 बजे से शुरू हुए योग प्रशिक्षण के दूसरे दिन भी प्रतिभागियों की काफी संख्या देखी गई। योग प्रशिक्षण डॉ. विनय कुमार मल्ल द्वारा दिया गया, जिसमें विभिन्न आसन और ध्यान सहित योग अभ्यास में लगभग 30 लोगों ने भाग लिया। इनमें स्नातक, परास्नातक, शोध छात्र सहित अन्य विद्यार्थी और आम लोग भी सम्मिलित हुए।
अपरान्ह 3 बजे ऑनलाइन माध्यम से “योग दर्शन के प्रसार में योग मार्तंड का अवदान” विषय पर एक महत्वपूर्ण कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि के स्वागत के साथ शोधपीठ के उप निदेशक डॉ. कुशलनाथ मिश्र द्वारा हुआ। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता डॉ. लक्ष्मी मिश्रा, सह आचार्य, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली रहीं।
हठयोग: जीवात्मा और परमात्मा के साक्षात्कार का उत्तम साधन
डॉ. लक्ष्मी मिश्रा ने अपने व्याख्यान में योग मार्तंड को योग का एक महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय ग्रंथ बताया। उन्होंने कहा कि इसमें कुल 203 श्लोक हैं, जिसमें हठयोग का उपदेश दिया गया है। डॉ. मिश्रा ने जोर देकर कहा कि हठयोग की साधना जीवात्मा और परमात्मा के साक्षात्कार का सबसे उत्तम साधन है। हठयोग के महत्व की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि इसकी साधना दैहिक (शारीरिक), दैविक (प्राकृतिक आपदाओं से) तथा आधिभौतिक (सांसारिक कष्टों से) तापों से साधक की रक्षा करती है।
उन्होंने योग मार्तंड में वर्णित विभिन्न विषयों जैसे प्राण, अपान, नाड़ी, चक्र, मुद्रा आदि पर विस्तृत चर्चा की। डॉ. मिश्रा ने आगाह किया कि इनका अभ्यास गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए, अन्यथा इसका दुष्प्रभाव सामने आ सकता है। साधक के आहार पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि साधक को दूध का सेवन करना चाहिए और उसे लवण (नमक) तथा अम्ल रस युक्त आहार से बचना चाहिए।
इस ऑनलाइन व्याख्यान में कार्यक्रम का संचालन शोधपीठ के रिसर्च एसोसिएट डॉ. सुनील कुमार द्वारा किया गया। शोधपीठ के वरिष्ठ शोध अध्येता डॉ. हर्षवर्धन सिंह ने मुख्य वक्ता और समस्त श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर शोधपीठ के सहायक ग्रन्थालयी डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी, चिन्मयानन्द मल्ल सहित अर्चना, अंबिका, राणा प्रताप, हरदीप, आर. यादव जैसे प्रतिभागियों ने प्रश्न भी पूछे, जिनका वक्ता ने संतोषजनक उत्तर दिया। विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के साथ ही गोरखपुर विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के आचार्य, जिनमें डॉ. सोनल सिंह भी शामिल थीं, ऑनलाइन माध्यम से जुड़े रहे।
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