गोरखपुर के सहायक शिक्षक प्रमोद कुमार सिंह को राज्य अध्यापक पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया जाएगा। जानिए कैसे उन्होंने एक स्कूल को 52 बच्चों से 500 बच्चों वाले एक बेहतरीन संस्थान में बदल दिया।
गोरखपुर: पिपराइच ब्लॉक के कंपोजिट विद्यालय उसका के सहायक शिक्षक प्रमोद कुमार सिंह को राज्य अध्यापक पुरस्कार-2024 से सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से एक छोटे से स्कूल को एक बेहतरीन शिक्षण संस्थान में बदल दिया। उनके स्कूल में कभी सिर्फ 52 बच्चे आते थे, लेकिन आज यह संख्या 500 से अधिक हो गई है। यह उनके समर्पण और शिक्षण के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता का परिणाम है। 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के अवसर पर लखनऊ में आयोजित एक समारोह में उन्हें इस सम्मान से नवाजा जाएगा।
52 छात्रों से शुरू हुआ सफर, आज 500 पार
प्रमोद कुमार सिंह ने 2014 में पीएमश्री कंपोजिट पूर्व माध्यमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के तौर पर कार्यभार संभाला। उस समय स्कूल में केवल 52 छात्र पंजीकृत थे और उनमें से भी केवल 15-20 छात्र ही नियमित रूप से स्कूल आते थे। प्रमोद को यह देखकर लगा कि यदि थोड़ी मेहनत की जाए तो छात्रों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और घर-घर जाकर अभिभावकों से संपर्क करना शुरू किया। उन्होंने न सिर्फ बच्चों को स्कूल में लाने का प्रयास किया, बल्कि उन्हें बेहतर शिक्षा देने की जिम्मेदारी भी उठाई।
अभिभावकों का भरोसा जीता
प्रमोद कुमार सिंह की मेहनत रंग लाई और अगले ही साल छात्रों की संख्या बढ़कर 72 हो गई। इसके बाद से हर साल संख्या में लगातार वृद्धि होती गई। आज उनके स्कूल में 500 से अधिक छात्र पंजीकृत हैं। उन्होंने छात्रों को स्कूल से जोड़ने के लिए कई प्रयास किए, जिसमें अभिभावकों का विश्वास जीतना सबसे महत्वपूर्ण रहा। वह हर महीने अभिभावक-शिक्षक बैठक (PTM) का आयोजन करते हैं और उनकी शिकायतों और सुझावों पर ध्यान देते हैं।
राज्य अध्यापक पुरस्कार 2024 से होंगे सम्मानित
प्रमोद कुमार सिंह के समर्पण और नवाचारी शिक्षण विधियों को देखते हुए, उन्हें राज्य स्तरीय चयन समिति ने राज्य अध्यापक पुरस्कार-2024 के लिए चुना है। यह सम्मान उनके 2009 से शुरू हुए शिक्षण करियर का एक बड़ा पड़ाव है। उनकी यह उपलब्धि न केवल उनके लिए बल्कि पूरे स्कूल के लिए गर्व की बात है।
शिक्षक प्रमोद कुमार सिंह ने बताया, “जब मैं इस विद्यालय में आया था, तब केवल 52 बच्चे पंजीकृत थे। मुझे लगा कि थोड़ी मेहनत करके बच्चों को स्कूल से जोड़ा जा सकता है। मैंने घर-घर जाकर लोगों से संपर्क किया और बच्चों को संवारने की जिम्मेदारी ली। इसका नतीजा जल्द ही दिखने लगा और आज स्कूल में 500 से अधिक बच्चे हैं।”