एम्स गोरखपुर में 5 साल की बच्ची की दुर्लभ सर्जरी। डॉ. शैलेश कुमार और टीम ने "टीएमजे लेटरल आर्थ्रोप्लास्टी" से बिना बड़े चीरे के ऑपरेशन को सफल बनाया। पूर्वांचल में चिकित्सा का नया आयाम।
गोरखपुर: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), गोरखपुर ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है। दंत रोग विभाग के चिकित्सकों ने एक 5 वर्षीय बच्ची की जटिल और दुर्लभ सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। यह बच्ची पिछले तीन सालों से मुँह खोलने में असमर्थ थी, जिसकी वजह से उसका जीवन काफी प्रभावित हो रहा था। यह ऑपरेशन नई और आधुनिक “टीएमजे लेटरल आर्थ्रोप्लास्टी” तकनीक का उपयोग करके किया गया है, जिससे बच्ची के चेहरे की प्राकृतिक वृद्धि सामान्य रूप से जारी रहेगी।
तीन साल की पीड़ा के बाद मिली नई ज़िंदगी
गोरखपुर निवासी यह बच्ची तीन साल पहले छत से गिरने के बाद जबड़े की गंभीर समस्या से जूझ रही थी। इस दुर्घटना के बाद वह अपना मुँह पूरी तरह से नहीं खोल पा रही थी, जिससे उसे केवल तरल आहार पर ही निर्भर रहना पड़ रहा था। कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं से जूझ रहे परिवार ने कई अस्पतालों के चक्कर लगाए, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। अंततः, परिजन बच्ची को एम्स गोरखपुर के दंत रोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं मैक्सिलोफेशियल सर्जन डॉ. शैलेश कुमार के पास लेकर आए।
जाँच और स्कैन के बाद यह पता चला कि बच्ची के खोपड़ी की हड्डी निचले जबड़े की हड्डी से पूरी तरह जुड़ चुकी थी, जिसे टीएमजे एंकिलोसिस कहा जाता है। यह एक अत्यंत दुर्लभ और जटिल स्थिति है, जिसके लिए विशेष सर्जिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
बिना बड़े चीरे के सफल ऑपरेशन
डॉ. शैलेश कुमार ने बताया कि ऐसे मरीज़ों में बेहोशी की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है, जिसके लिए विशेष उपकरणों और गहन तैयारी की ज़रूरत होती है। इस ऑपरेशन में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवेश सिंह ने विशेष उपकरण की उपलब्धता सुनिश्चित की, जबकि एनेस्थीसिया विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. संतोष शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रियंका द्विवेदी और उनकी टीम ने बेहोशी की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
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इस ऑपरेशन की सबसे ख़ास बात यह रही कि इसमें विदेश में विकसित की गई टीएमजे लेटरल आर्थ्रोप्लास्टी नामक एक नई विधि का उपयोग किया गया। आमतौर पर ऐसे ऑपरेशन में 5 से 6 घंटे का समय लगता है, लेकिन इस नई तकनीक से कान के पास बहुत ही छोटे चीरे से केवल डेढ़ घंटे में ही ऑपरेशन पूरा कर लिया गया। सर्जरी के दौरान, जुड़ी हुई हड्डी को हटा दिया गया और भविष्य में हड्डी दुबारा न जुड़े, इसके लिए सिर के भीतर से निकले वसा (फैट) के टुकड़े को जबड़े के जोड़ में प्रत्यारोपित किया गया। यह प्रक्रिया इंटरपोजीशनल आर्थ्रोप्लास्टी कहलाती है।
पूर्वांचल के लिए बड़ी उपलब्धि
इस सफल सर्जरी के बाद, बच्ची अच्छी तरह से स्वस्थ हो रही है और धीरे-धीरे सामान्य जीवन की ओर लौट रही है। यह उपलब्धि एम्स गोरखपुर के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, क्योंकि पूर्वांचल और गोरखपुर एम्स में इतने कम उम्र के बच्चे में यह दूसरा इतना जटिल ऑपरेशन है। इससे पहले, ऐसे गंभीर मामलों के लिए मरीज़ों को दिल्ली या लखनऊ जैसे बड़े शहरों में जाना पड़ता था।
एम्स गोरखपुर की कार्यकारी निदेशक मेजर जनरल डॉ. विभा दत्ता ने इस सफलता पर टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह एम्स गोरखपुर की उच्च स्तरीय चिकित्सीय सेवाओं और यहाँ कार्यरत विशेषज्ञ डॉक्टरों की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। यह सफलता न केवल एक बच्ची को नया जीवन देगी, बल्कि क्षेत्र के लोगों को भी यह विश्वास दिलाएगी कि अब उन्हें अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के लिए कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है।
डॉ. शैलेश कुमार ने माता-पिता से आग्रह किया है कि वे बच्चों के चेहरे पर लगी किसी भी चोट को नज़रअंदाज़ न करें और तुरंत किसी ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन से संपर्क करें, क्योंकि वे इस तरह के मामलों के लिए विशेषज्ञ होते हैं। इस सफल ऑपरेशन से एम्स गोरखपुर ने क्षेत्र में चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता को एक नया आयाम दिया है।