वाराणसी

सरकारी दफ़्तर की गौरव गाथा: ‘सेवा-शुल्क’ लेते हुए एक कर्मयोगी रंगे हाथ ‘सम्मानित’

वाराणसी नगर निगम

बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा…?

सरकारी दफ़्तर में घूसखोरी पर एक व्यंग्यात्मक लेख। पढ़ें कैसे एक 'कर्मयोगी' लिपिक को पाँच हज़ार रुपये का 'सेवा-शुल्क' लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया और इस घटना ने सदियों पुरानी 'परंपरा' को कैसे 'अपमानित' किया।

वाराणसी में सरकारी कार्यालयों की ‘गौरवशाली परंपरा’ में इस हफ्ते उस समय एक दुखद मोड़ आ गया, जब इंजीनियरिंग विभाग के एक कर्मठ लिपिक को भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते ने मात्र पांच हज़ार रुपये का ‘सेवा-शुल्क’ स्वीकार करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया। इस घटना से पूरे विभाग की गरिमा को गहरी ठेस पहुंची है।

सूत्रों के अनुसार, बनारस नगर निगम के इतिहास में यह पहली बार है जब किसी कर्मचारी को इस तरह ‘प्रक्रिया को गति देने’ के पुण्य कार्य के दौरान सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया हो। बताया जा रहा है कि एक ठेकेदार, जो भूमिगत केबल बिछाने जैसे मामूली काम के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र (NOC) चाहता था, कई दिनों से दफ़्तर के चक्कर काट रहा था। हमारे ज्ञानी लिपिक महोदय बस उसे व्यवस्था की जटिलताएं और फाइल के वजन का महत्व समझा रहे थे।

शिकायतकर्ता ने इस पारंपरिक ‘दक्षिणा’ की प्रक्रिया को समझने के बजाय, इसे घूस का नाम देकर भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते को बुला लिया।

मंगलवार को जैसे ही आवेदक ने श्रद्धापूर्वक पांच-पांच सौ के नोटों की भेंट चढ़ाई और बाबू साहब ने उसे स्वीकार कर अपनी दराज में रखा, तभी ‘परंपरा-विरोधी’ दस्ते ने उन पर धावा बोल दिया। सबसे शर्मनाक क्षण तब आया जब बाबू साहब के हाथ धुलवाए गए। उनके हाथों से रंग क्या छूटा, मानो वर्षों की साधना का पुण्य ही धुल गया हो। इस अप्रत्याशित घटना पर बाबू साहब ने कुछ देर के लिए अपना स्वाभाविक विरोध भी दर्ज कराया, लेकिन उनकी एक न सुनी गई।

देर शाम, इस कर्मठ लोक-सेवक को निलंबित कर दिया गया। इस घटना से अन्य सरकारी कर्मचारियों में इस बात को लेकर गहरी चिंता है कि अगर इसी तरह ‘सेवा-शुल्क’ और ‘सुविधा-शुल्क’ पर प्रहार होता रहा तो व्यवस्था की गति का क्या होगा।



शालिनी सहाय

शालिनी सहाय

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शालिनी सहाय ने एमए और बीएड की शिक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की है. इसके अलावा उन्होंने एलएलबी की भी डिग्री प्राप्त की है. कई प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में उनकी कहानियां और आलेख प्रकाशित होते रहे हैं. उन्होंने 'विधि' विषय से जुड़े विभिन्न सेमिनारों में प्रतिभाग किया है. वर्तमान में वह एक एडवोकेट हैं. लेखन कार्य, चित्रकला, संगीत सुनना, किताबें पढ़ना, बागबानी करना इत्यादि उनकी प्रमुख हॉबी हैं.

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