राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की 23 सितंबर को जयंती पर विशेष रिपोर्ट। उनके पौत्र ऋत्विक उदयन के साथ डीडी न्यूज़ के एक साक्षात्कार पर आधारित यह लेख उनके बहुआयामी व्यक्तित्व, 'रश्मिरथी' की प्रासंगिकता और उनके जीवन से जुड़ी अनमोल स्मृतियों को समर्पित है।
National Poet Ramdhari Singh ‘Dinkar’: भारत के साहित्यिक आकाश में एक ऐसे सूर्य का उदय हुआ, जिसकी आभा आज भी महसूस की जाती है – वह सूर्य थे राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’। उनकी जन्म वर्षगाँठ 23 सितंबर के अवसर पर, हम उस महान व्यक्तित्व को याद कर रहे हैं, जिनकी लेखनी ने देश को न सिर्फ़ आजादी के पहले जागृत किया, बल्कि उसके बाद भी सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दिनकर जी के पौत्र ऋत्विक उदयन ने डीडी न्यूज़ पॉडकास्ट ‘आवाज देश की’ में एक विशेष साक्षात्कार में उनके जीवन और कृतित्व के विभिन्न पहलुओं को साझा किया था, जिससे उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की गहराई का पता चलता है।
दिनकर: जन कवि से लेकर राष्ट्र कवि तक
ऋत्विक उदयन के अनुसार, दिनकर जी के व्यक्तित्व में जन कवि और राष्ट्र कवि दोनों के गुण मौजूद थे। उनकी कृतियाँ उनके आसपास के सामाजिक, राजनीतिक और पारिवारिक माहौल की उपज थीं। एक ओर उनकी रचनाओं में वीर रस की प्रधानता दिखती है, जैसे ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘रश्मिरथी’, जो सामाजिक व्यवस्था से जन्मी विचारधाराओं को दर्शाती हैं। वहीं दूसरी ओर, उनकी कृतियों में श्रृंगार रस का भी समावेश है, जैसे ‘उर्वशी’, जो उनके प्यार भरे और पारिवारिक व्यक्तित्व को दर्शाता है। यह द्वंद्व उनके भीतर के प्रेम और समाज के प्रति जागरूकता का परिणाम था।
दिनकर जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे किसी एक विचारधारा के बंधनों में नहीं बंधे। उन्होंने मार्क्सवाद और गांधीवाद जैसी विभिन्न विचारधाराओं को आत्मसात किया, लेकिन उनका मूल विचार हमेशा राष्ट्रवाद रहा। उनकी लेखन शैली में इतनी वस्तुनिष्ठता और विनम्रता थी कि पाठक उनके किसी एक विचार पर स्थिर नहीं हो पाते थे। उन्होंने देश-विदेश के राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल को बहुत करीब से देखा, जिसने उनकी लेखनी को और भी प्रासंगिक बना दिया।
‘रश्मिरथी’ की प्रासंगिकता
ऋत्विक उदयन ने विशेष रूप से ‘रश्मिरथी’ को दिनकर जी की सबसे प्रासंगिक कृति बताया। यह महाकाव्य 1952 में प्रकाशित हुआ था, लेकिन इसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है। उनके अनुसार, यह ऐसी कृति है जिसमें जीवन की हर परिस्थिति का समाधान मिलता है। चाहे वह दुख हो, खुशी हो, ईर्ष्या हो या द्वेष, हर भावना का चित्रण और उसका हल ‘रश्मिरथी’ में मौजूद है। यह पुस्तक हर उम्र और हर वर्ग के लोगों के जीवन को कहीं न कहीं छूती है।
दिनकर जी को बच्चों से बहुत लगाव था
साक्षात्कार में ऋत्विक उदयन ने दिनकर जी के साथ बिताए कुछ निजी पलों को भी याद किया। 1974 में उनके निधन के समय ऋत्विक केवल 9 वर्ष के थे। उन्हें अपने दादाजी का सफेद कुर्ता-पजामा पहने हुए व्यक्तित्व और उनके साथ दिवाली पर पटाखे खरीदने की याद है। उन्होंने यह भी बताया कि जब भी दिनकर जी पटना आते थे, तो घर में खुशी की लहर दौड़ जाती थी। वह बच्चों के साथ बहुत समय बिताते थे और उन्हें पटना के इंडिया कॉफी हाउस भी ले जाते थे, जो उनका पसंदीदा ठिकाना था। यह जगह साहित्यिक और राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र थी, जहाँ दिनकर जी जैसे कई साहित्यकार और राजनेता मिलते थे।
दिनकर जी को बच्चों से बहुत लगाव था, और बच्चे भी उनसे बहुत करीब थे। उनके लिए उन्होंने ‘मिर्च का मजा’ और ‘सूरज का ब्याह’ जैसी रचनाएँ लिखी थीं। उनकी राजनीतिक और साहित्यिक पहचान के बीच कोई टकराव नहीं था। वे जहां भी रहे, अपने विचारों पर अटल रहे। जैसा कि एक प्रसिद्ध किस्से में उन्होंने कहा था, “जब राजनीति संकट में होती है, तो साहित्य उसे संभालता है।”
हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की लेखनी आज भी हमें सही राह दिखाती है। उनकी रचनाएं, जिनमें हुंकार, संस्कृति के चार अध्याय, परशुराम की प्रतीक्षा, और दिनकर की डायरी शामिल हैं, हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वह एक ऐसे कवि थे जिन्होंने अपने मन की बात लिखी और लोगों ने उसे सराहा। उनके निष्पक्ष और धीर-गंभीर काव्य ने उन्हें विद्रोही और राष्ट्रवादी दोनों की उपाधि दी, लेकिन वे इन दोनों से ऊपर थे।
(यह रिपोर्ट डीडी न्यूज़ पॉडकास्ट ‘आवाज देश की’ में ऋत्विक उदयन के दिए गए साक्षात्कार पर आधारित है।)