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महाकुंभ 2025

सातवीं सदी में लिखा गया कुंभ पर पहला लेख, जानिए किसने चलाई कलम

सातवीं सदी में लिखा गया कुंभ पर पहला लेख, जानिए किसने चलाई कलम

Mahakumbh Mela History: महाकुंभ की महाशुरुआत रविवार आधी रात से हो गई. यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में दर्ज महाकुंभ में इस बार 144 साल बाद दुर्लभ संयोग बना है. भारतीय जनमानस में महाकुंभ का महत्व बहुत बड़ा है. सदियों से यह सनातनी समाज में बसा हुआ है. महाकुंभ की शुरुआत कबसे हुई? जब इसकी पड़ताल करते हैं तो सबसे पहला लिखित विवरण बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के लेख में मिलता है. ह्वेनसांग ने सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में होने वाले कुंभ मेले का वर्णन किया है. वहीं, ईसा से 400 वर्ष पूर्व सम्राट चंद्रगुप्त के दरबार में आए एक यूनानी दूत ने भी ऐसे ही मेले का ज़िक्र अपने लेख में किया है.

ज्योतिषियों के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब कुंभ लगता है. त्रिवेणी संगम के कारण प्रयाग का महाकुंभ सभी मेलों में ज़्यादा महत्व रखता है. कहा जाता है कि देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन के दौरान 14वें रत्न के रूप में अमृत कलश निकला था, जिसे हासिल करने के लिए उनमें संघर्ष हुआ. असुरों से अमृत बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर वह अमृत कलश अपने वाहन गरुड़ को दे दिया. असुरों ने गरुड़ से वह कलश छीनने का प्रयास किया, तो अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिर गईं. कहा जाता है कि तब से हर 12 साल बाद इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है.

समुद्र मंथन के दौरान निकले कलश से छलकी अमृत की चंद बूंदों से युगों पहले शुरू हुई कुंभ स्नान की परंपरा का सोमवार, 13 जनवरी से आगाज़ हो रहा है. दुनियाभर के धार्मिक आयोजनों में सबसे बड़ा यह मेला 26 फरवरी तक चलेगा. इस बार महाकुंभ में 183 देशों के लोगों के आने की उम्मीद है. इन विदेशी मेहमानों के स्वागत और आतिथ्य के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने भव्य तैयारियां की हैं.

144 साल बाद दुर्लभ संयोग में रविवार की आधी रात संगम पर पौष पूर्णिमा की प्रथम डुबकी के साथ महाकुंभ का शुभारंभ हो गया. विचारों, मतों, संस्कृतियों, परंपराओं और स्वरूपों का गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी के तट पर यह महामिलन 45 दिन तक चलेगा. इस अमृतमयी महाकुंभ में देश-दुनिया से 45 करोड़ श्रद्धालुओं, संतों-भक्तों, कल्पवासियों और अतिथियों के डुबकी लगाने का अनुमान है.

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गो गोरखपुर ब्यूरो

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