पुरानी कारों की बिक्री पर जीएसटी बढ़ा

18 प्रतिशत जीएसटी बनाम कार के चालान का वह दिलचस्प किस्सा

जीएसटी काउंसिल की बैठक में पुराने कारों की बिक्री पर टैक्स को 12% से बढ़ाकर 18% कर दिया गया. सोशल मीडिया इस निर्णय की आलोचना से रंगा हुआ है. हालांकि, इस तरह की आलोचना एक महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज कर रही है: पुरानी कारों की बिक्री पर 18% जीएसटी व्यक्तियों के बीच होने वाली बिक्री पर लागू नहीं होता है. इसके बजाय, यह कर उन कंपनियों पर लागू होगा जो पुरानी कारों को कम कीमतों पर खरीदती हैं, उन्हें नवीनीकृत करती हैं, और फिर उन्हें बड़े मुनाफे के साथ बेचती हैं.

चुपचाप, खुद ही अतिक्रमण की हदें समेटना क्या कहता है…

चुपचाप, खुद ही अतिक्रमण की हदें समेटना क्या कहता है…

यह तस्वीर अपने गलत कार्यों की मौन स्वीकृति की गवाह है. कानून व्यवस्था को ठेंगे पर रखकर पिछले दिनों जिन सड़कों पर तांडव हुआ, वहां अब अपनी सीमा खुद ही दुरुस्त करने का यह मंजर सोशल मीडिया पर वायरल है. अब अपने आश्रितों के भविष्य की चिंता, एक अनजाना डर…आगे क्या होगा, आशियाना उजड़ जाने का मंडराता खतरा…इन सवालों के साये में, चेहरे पर अनुनय-विनय का भाव…चुपचाप हथौड़े से हदें दुरुस्त करना सिर्फ़ एक नोटिस का नतीजा ही नहीं हैं…यह स्वीकृति है अपने गलत कार्यों की.

कॉलम - ठोंक बजा के

बापू सेहत के लिए तू तो हानीकारक है…

शहर के क्लीनिक में हाल में ही घटी एक घटना अब सियासी उबाल ले रही है. सिपाही के पक्ष में लोगों का एक-एक करके आते जाना सिर्फ संयोग भर नहीं है. मौजूदा दौर में, गोरखपुर शहर में प्रैक्टिस कर रहे चिकित्सकों पर से भरोसा डगमगाने की कहानी कोई एक-दो दिन में नहीं लिखी गई है.

कॉलम - ठोंक बजा के

बाउंसर रखकर ​मरीज़ की पीड़ा का गला मत घोटिये!

चिकित्सा कर्म, सेवा नहीं है. इसे ‘सेवा’ के नजरिये से देखे जाने की समझ अब पुरानी और व्यर्थ हो चुकी लगती है. चिकित्सक की फीस चुकाने के साथ ही, डॉक्टर और मरीज का रिश्ता बाज़ारू हो जाता है. इस रिश्ते में दया, करुणा, संवेदनशीलता, सम्मान की अपेक्षा रखना बेमानी है. बात कड़वी, मगर सच है.

बतकही-गो गोरखपुर गो

सियासी लड्डू, मिलावट और जांच

बतकही: बाबू साहब ठहाका लगाते हैं. प्रति प्रश्न करते हैं. भला इतनी सस्ती दर के घी से कौन सा लड्डू बनेगा. आखिर मंदिर प्रशासन को इतने सस्ते दर के घी का इस्तेमाल करने की क्या मजबूरी आन पड़ी है. मंदिर के पास पैसों की कमी तो है नहीं. अपरंपार धनराशि चढ़ावे में आती है.

बतकही-गो गोरखपुर ख़बर

खुद ही को जलाकर, खुद को रोशन किया हमने…

बतकही: किसी परिवार का लड़का पढ़ लिखकर बीए, एमए तक पहुंचा, परिवार में दस बीघे खेती है. वरदेखुआ आ धमकते थे. रिश्ता तय हो जाता था. मध्यस्थता करने वाले रिश्तेदारों के इस कार्य को प्रतिष्ठापरक, पुनीत  माना जाता रहा.

बतकही-गो गोरखपुर ख़बर

…क्योंकि प्रेम है भक्ति की पहली सीढ़ी

गो गोरखपुर बतकही | ‘पुनर्नवा’ चौथी सदी के आसपास के भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें उठाए गए प्रश्न आज भी प्रासंगिक हैं.

बतकही-गो गोरखपुर ख़बर

…जरा तुम दाम तो बोलो यहां ईमान बिकते हैं

दुबे जी एक तरफ सिंह साहब दूसरी तरफ। दुबे जी तर्क कर रहे थे। अच्छे पढ़े-लिखे लड़के अब प्राइवेट सेक्टर में जा रहे हैं। वहां उनके ज्ञान और कौशल का महत्व है। कंपनियां उन्हें अच्छी तनख्वाह दे रही हैं। टैलेंट है इसलिए आगे बढ़ाने में देर नहीं होती। वे अपने तर्क के समर्थन में एक […]

बतकही-गो गोरखपुर ख़बर

मिरी मजबूरियां क्या पूछते हो…

बतकही | निजी चिकित्सा सेवाओं का संजाल शहर से लेकर गांवों तक फैला है। अब तो इनके दलाल भी हर की मौजूद हैं। कहीं-कहीं तो सब कुछ तंत्र की जानकारी में होते हुए। एक दौर था, जब चिकित्सा सेवा के केंद्र में मानवीय मूल्य होते थे। अब सब लाभ की संस्कृत में डूबे हुए।

गो गोरखपुर बतकही ख़बर

कमजोर नागरिक धर्म

गो गोरखपुर बतकही | सोचें! शैशव काल से बचपन के दिन. पहला कदम. पहला शब्द. मां की उंगलियां पकड़े आगे बढ़ने की अभिलाष. भाषा के संस्कार. सारी क्रियाओं में से एक क्रिया स्वच्छता भी. मां का अवलंब छूटते ही स्वावलंबी. इन्हीं में से एक नित्य क्रिया. कब, कहां, कैसे?

गो गोरखपुर बतकही ख़बर

अन्न ही ब्रह्म है!

गो गोरखपुर बतकही | ज्ञानी जी की महफिल में जो चरचा थी वह अजीबोगरीब. चरचा भी यकीन से परे. बात कुछ यूं थी. धर्म और कर्म एक साथ जीने वाले एक भद्र जन. उनके घर आयोजन. लोग आए. भोजन किया और गए. एक ने कुछ ऐसा किया. भोजन का कुछ अंश ग्रहण नहीं कर पानी डाल दिया. उठ गए. यह देख भद्रजन हैरान. आपने यह अनर्थ क्यों किया? आपे से बाहर.

गो गोरखपुर बतकही ख़बर

शराब आत्मा और शरीर दोनों को मारती है!

बतकही: महफिलों में गए तो खुद की साथ ले जाते। किसी की भावनाएं आहत न हों, इसका भरपूर ख्याल रखते। कभी किसी से उम्मीद नहीं की। न छिपाते, न बताते, न लड़खड़ाते, न असहज होते……पूरी उम्र जी। जब तक जी शान से पी।

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फेर में पड़ गए ध्यानी जी!

ध्यानी जी धार्मिक यात्रा पर थे. ठगी के शिकार हो गए. बात बहुत छोटी है लेकिन है पिंच करने वाली. ध्यानी जी आस्थावादी हैं. उन्हें लगता है कि धर्म से समाज सुधर सकता है. वह हाल ही में वह एक देवी मंदिर गए. देवी मंदिर जंगल के बीच स्थित है.

गो गोरखपुर बतकही ख़बर

विकास, मंगरू मास्साब और सुबह की चाय!

बतकही: मंगरू मास्साब बहुत खुश हैं. आज सुबह की चाय पर जब बहुत कुरेदा तो पता चला कि उनकी खुशी की जड़ में “विकास” बैठा हुआ है. यह वही विकास है जिसको लेकर आजकल खूब चर्चा हो रही है. हालांकि विकास को लेकर राजनीतिक हल्कों में चर्चा हाल के कुछ वर्षों से ज्यादा हो रही है.

गो गोरखपुर बतकही ख़बर

उम्मीदों के बीच जिंदगी…

कौवाबाग रेलवे कॉलोनी से होकर रेलवे स्टेशन पहुंचना हो तो सुखद लगता है. सड़क के दोनों किनारे हरे-भरे वृक्ष मानो साधना में लीन. आगे फिर स्वाद……

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