गोरखपुर के ‘स्नेक हैंडलर’ बाली सिंह राजपूत: सांपों ने 10 बार डसा, फिर भी जहरीले सांपों का साथ नहीं छोड़ा

गोरखपुर के ‘स्नेक हैंडलर’ बाली सिंह राजपूत: सांपों ने 10 बार डसा, फिर भी जहरीले सांपों का साथ नहीं छोड़ा

गोरखपुर: गोरखपुर शहर से सटे ककरा खोर गांव के एक युवा, बाली सिंह राजपूत, सांपों से खेलते हैं। काले, विषैले सांपों को देखकर जहां लोग अपना रास्ता बदल लेते हैं, वहीं बाली उसे देखकर खुश हो जाते हैं। पल भर में ही वे खतरनाक से खतरनाक सांप को अपने वश में कर लेते हैं। बचपन में गांव में सर्पदंश के साथ शुरू हुई सांपों से ‘दोस्ती’ अब उनकी पहचान से जुड़ चुकी है। वे इलाके में ‘सर्पमित्र’ के रूप में जाने जाते हैं। गोरखपुर ही नहीं, सौ-पचास किलोमीटर के दायरे में अगर कहीं जहरीला सांप आबादी के लिए खतरा बन जाए, तो वन विभाग बाली को याद करता है। बाली, ‘बाहुबली’ के रूप में पहुंचते हैं, और चुटकी में सांप को काबू कर लेते हैं। चलिए, जानते हैं सर्पमित्र बाली की पूरी कहानी।

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बचपन में जहरीले सांप ने डसा

ककरा खोर गांव के बाली सिंह राजपूत के सांपों का दोस्त बनने की कहानी दरअसल सांप के जहर से ही शुरू होती है। बाली बताते हैं कि जब वह दस बारह साल के थे, तभी उन्हें एक विषैले सांप ने डस लिया था। हुआ यूं कि वह अपने गांव के पास एक पुल के नीचे गए थे। वहां वह अक्सर जानवरों को देखने जाया करते थे। उस दिन, वहां पुल के नीचे एक ईंट हटाते समय, एक सांप ने उन्हें अंगूठे पर काट लिया। वह एक विषैला सांप था। सांप के काटते ही उनका पूरा शरीर सुन्न पड़ने लगा। बाली स्थिति की गंभीरता को समझ गए। वह तुरंत भागकर अपने घर पहुंचे। उन्होंने घरवालों को सांप काटने की बात बताई।

गोरखपुर के ‘स्नेक हैंडलर’ बाली सिंह राजपूत: सांपों ने 10 बार डसा, फिर भी जहरीले सांपों का साथ नहीं छोड़ा
जहरीले सांप के साथ स्नेक हैंडलर बाली सिंह राजपूत। फोटो: गो गोरखपुर

मौत के मुंह से वापसी, संकल्प हुआ मजबूत

घर के बड़े बुजुर्गों और पड़ोस के लोगों ने उन्हें जौ कूंचने के लिए दिया तो वह जौ को चबा नहीं पाए। उन्हें नीम की पत्तियां पीसकर पीने को दी गईं। बाली ने कहा, मैं नीम की पिसी पत्तियां पी गया, लेकिन मुझे जरा भी कड़वाहट नहीं लगी। देसी जांच के इस तरीके से साफ हो चुका था कि बाली के शरीर में सांप का जहर घुल चुका था। बाली बताते हैं कि उन्हें करीब तीन से चार घंटे तक पूरे शरीर में असहनीय दर्द होता रहा। उन्हें लग रहा था कि वे गहरी नींद में जा रहे हैं। यह सांप के जानलेवा ज़हर का असर था। उन्होंने मजबूत मानसिक दृढ़ता और इच्छाशक्ति के दम पर खुद को बेहोश नहीं होने दिया। कुछ ही घंटों में सांप के ज़हर पर उन्होंने काबू पा लिया। सुनने में यह अविश्वसनीय लगता है, लेकिन वह घटना उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसने उनके संकल्प को और भी मजबूत किया।

क्योंकि डर के आगे जीत है…

बाली बताते हैं कि उस घटना के बाद सांपों को लेकर मन में जो भय था वो थोड़ा कम हो गया। बाली बताते हैं कि उस घटना के बाद एक-दो बार नहीं, बल्कि कम से कम दस बार उन्हें सांप ने काटा है। सांपों के विष पी पीकर बाली के मन में से सांपों का भय पूरी तरह से खत्म हो गया। अपने जीवन में घटी इन घटनाओं ने उन्हें सांपों के प्रति एक अलग ही नजरिया दिया और उनके मन में सांपों के लिए एक दोस्ती का भाव जाग गया। उन्होंने मन में तय कर लिया कि वे किसी को सांपों को मारने नहीं देंगे, बल्कि अगर सांप अगर कभी आबादी में आकर मनुष्यों के बीच फंस जाए और उसकी जान पर बन आए तो वे सांप को हर हाल में बचाएंगे। बाली बताते हैं कि अपने अनुभवों ने उन्होंने साँपों की प्रकृति और व्यवहार को काफी हद तक समझ लिया है। अब वह बिना किसी उपकरण के सांपों को कंट्रोल कर लेते हैं।

जोखिम भरा शौक जो बन गया पेशा

बाली सिंह राजपूत ने साल 2012 में पहली बार आबादी में घुसे सांप को रेस्क्यू करके उसे बस्ती से दूर सुरक्षित जगह पर छोड़ा था। तब से सांपों से उनकी यह दोस्ती एक पेशा बनने की ओर चल पड़ी। अब वह न सिर्फ सांपों को पकड़ते हैं, बल्कि उन्हें बचाकर सुरक्षित स्थानों पर छोड़ते भी हैं। सांप को पकड़ने के लिए वह किसी भी उपकरण का इस्तेमाल नहीं करते हैं। खुले हाथों से ही वह जहरीले से जहरीले सांप को पकड़ते हैं, यहां तक कि इसके लिए उन्हें ग्लव्स (दस्तानों) की भी ज़रूरत नहीं होती है। बाली ने अपने इस हुनर को किसी स्कूल या संस्थान से नहीं सीखा, बल्कि सालों के अनुभव और सांपों के व्यवहार को करीब से जानने के बाद विकसित किया है। वे लोगों को सांपों के बारे में शिक्षित भी करते हैं, उन्हें मिथकों और अंधविश्वासों से दूर रहने की सलाह देते हैं। उनका यह काम गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों में लोगों के लिए एक वरदान साबित हुआ है, जहां सांप निकलने की घटनाएं आम हैं।

2016 से वन विभाग के साथ जुड़े

बाली सिंह राजपूत, वर्ष 2016 से वन विभाग के साथ मिलकर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वह मुख्य रूप से खतरनाक सांपों के रेस्क्यू और पुनर्वास के लिए जाने जाते हैं। उनकी विशेषज्ञता और निडरता उन्हें वन विभाग के अधिकारियों के लिए एक अनिवार्य सहयोगी बनाती है, विशेषकर तब जब उन्हें ऐसे विषैले सांपों का सामना करना पड़ता है जिनसे वन विभाग की टीम खुद निपटने में सक्षम नहीं होती है।

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बाली बताते हैं कि उनका सामना कई खतरनाक सांपों से हुआ है, लेकिन उनका सबसे खतरनाक अनुभव ‘रसेल वाइपर’ (Russell Viper) को पकड़ना रहा है। बाली ने दावा किया कि उन्होंने इस अत्यधिक विषैले सांप को सफलतापूर्वक पकड़ा है। इस सांप की सबसे बड़ी खासियत है कि यह अपने शिकार को बचने का मौका नहीं देता है। बाली ने बताया कि दो साल पहले मेडिकल कॉलेज के पास एक मुहल्ले में ‘रसेल वाइपर’ से उनका आमना सामना हुआ था। उसके बाद गोला बाज़ार जैसे अर्ध-शहरी इलाके से भी उन्होंने इस सांप को रेस्क्यू किया। बाली बताते हैं कि ‘रसेल वाइपर’ बहुत खतरनाक सांप है, और इसका मानव बस्तियों के करीब पाया जाना बहुत खतरनाक था।

‘सांपों को मारें नहीं, उनके प्राकृतिक क्षेत्र में लौटाएं’

'सांपों को मारें नहीं, उनके प्राकृतिक क्षेत्र में लौटाएं'

बाली सांपों के संरक्षण और कल्याण के प्रति गहरी प्रतिबद्धता रखते हैं। वे कभी भी पकड़े गए सांपों को मारते नहीं हैं, बल्कि उन्हें शहर से बाहर सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर देते हैं। बाली ने बताया कि गोरखपुर शहर में पकड़े गए सांपों को वह अमरूतानी के पास बांध के आसपास नदी और झाड़ियों वाले क्षेत्र में उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ देते हैं। बाली कहते हैं कि सांप कभी मनुष्य को नुकसान पहुंचाना नहीं चाहता। मानव बस्ती में भटककर अगर वह आ गया तो उसे मारना नहीं चाहिए। हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि वह अपने प्राकृतिक क्षेत्र में लौट जाए।

सूचना मिलते ही पहुंच जाते हैं मौके पर

जब भी उन्हें कहीं सांप दिखने की सूचना मिलती है, वे अकेले ही वहां पहुंच जाते हैं। बाली का दावा है कि अगर सांप उनके सामने हो, तो उसे पकड़ने में उन्हें सिर्फ़ दो से चार मिनट का समय लगता है। वे सांप को कोई नुकसान पहुंचाए बिना, सुरक्षित रूप से पकड़ते हैं और उसे प्राकृतिक आवास में छोड़ देते हैं। बाली की पहचान और उनकी सेवाएं अब केवल गोरखपुर तक ही सीमित नहीं हैं। उनकी डिमांड बलिया, आजमगढ़, मऊ और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई अन्य जिलों तक है। सांपों के अलावा, बाली अब अन्य वन्यजीवों, विशेषकर बंदरों को भी रेस्क्यू करने का काम कर रहे हैं।

आठवीं पास बाली ने कम उम्र में उठाई बड़ी जिम्मेदारी

चार भाई बहनों में सबसे बड़े बाली सिंह राजपूत की उम्र अभी 22-23 साल है। इसी उम्र में उन्होंने अपने जीवन में एक असाधारण रास्ता चुना है – सांपों को बचाने का। यह एक ऐसा साहसी काम है जिसे उन्होंने न केवल अपना शौक, बल्कि अपना पूर्णकालिक करियर बना लिया है। बाली की औपचारिक शिक्षा महज़ आठवीं कक्षा तक ही हुई है, लेकिन उनके पास प्रकृति और वन्यजीवों के बारे में गहरा व्यावहारिक ज्ञान है। उनका परिवार उनके इस जोखिम भरे काम के लिए अक्सर चिंतित रहता है और उन्हें लगातार इससे दूर रहने की सलाह देता है। इसके बावजूद, बाली ने अपने दिल की सुनी और इस चुनौतीपूर्ण रास्ते पर चलने का फैसला किया। वे सांप और मनुष्य के टकराव को टालने में यकीन रखते हैं।


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Siddhartha Srivastava

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Siddhartha Srivastava का आज, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण जैसे हिंदी अखबारों में 18 साल तक सांस्थानिक पत्रकारिता का अनुभव है. वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता. email:- siddhartha@gogorakhpur.com | 9871159904.

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