गोरखपुर विश्वविद्यालय में 'भारत की पड़ोसी प्रथम नीति' पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू। कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने की अध्यक्षता, विद्वानों ने चुनौतियों और विकल्पों पर की गहन चर्चा।
गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग तथा इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स (ICWA) के संयुक्त तत्वावधान में आज “भारत की पड़ोसी प्रथम नीति: चुनौतियां एवं विकल्प” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य उद्घाटन हुआ। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की, जहाँ देश के विभिन्न हिस्सों से आए विद्वानों ने महत्वपूर्ण विचार साझा किए।
कुलपति प्रो. पूनम टंडन का संबोधन: अपने उद्बोधन में कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने भारत की ‘पड़ोसी प्रथम नीति’ में आर्थिक और सामरिक सहयोग के साथ-साथ अकादमिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि गोरखपुर विश्वविद्यालय भी इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रहा है, जैसे नेपाल के पोखरा और त्रिभुवन विश्वविद्यालय के साथ साझा सेमिनार और कार्यक्रमों का आयोजन। उन्होंने योग दिवस पर ‘योगबंधन’ कार्यक्रम का भी उल्लेख किया, जिसमें 15 से अधिक राष्ट्रों ने भाग लिया, जो इस नीति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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मुख्य अतिथि प्रो. श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी के विचार: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के पूर्व कुलपति प्रो. श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी ने इस नीति को ‘समय सापेक्ष, सुविचारित एवं सुविकसित’ बताया। उन्होंने कहा कि भारत की इस नीति का प्रमुख आधार अनाक्रमण, अहस्तक्षेप व शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित है। प्रो. त्रिपाठी ने जोर दिया कि शांत और स्थिर पड़ोस भारत के आर्थिक विकास और उन्नति के लिए आवश्यक है। उन्होंने चीन के बढ़ते प्रभाव और क्षेत्रीय सीमा विवादों को इस नीति के समक्ष प्रमुख चुनौतियों के रूप में रेखांकित किया।
विशिष्ट अतिथि प्रो. हरि सरन का विश्लेषण: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रतिकुलपति प्रो. हरि सरन ने वर्तमान 21वीं शताब्दी में तेजी से बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विश्व पटल पर भारत और चीन दोनों को नजरअंदाज करना असंभव है, क्योंकि दक्षिण एशिया एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ तीन नाभिकीय शक्ति संपन्न राष्ट्र आपस में सीमा साझा करते हैं। उन्होंने चीन के बढ़ते प्रभाव को एक प्रमुख चुनौती बताते हुए इससे निपटने के लिए आर्थिक विकास पर जोर देने और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने जैसे बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया।
मुख्य वक्ता प्रो. मीना दत्ता का विस्तृत उल्लेख: पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ की प्रो. मीना दत्ता ने भारत की ‘पड़ोसी प्रथम नीति’ के विभिन्न आयामों का विस्तृत उल्लेख किया। उन्होंने इसे एक तात्कालिक आवश्यकता बताया, जिसके लिए दूरदर्शी नेतृत्व, सशक्त रणनीति और दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र का आभार ज्ञापन आयोजन सचिव डॉ. आरती यादव ने किया, जबकि स्वागत उद्बोधन संगोष्ठी के संयोजक प्रो. विनोद कुमार सिंह ने दिया।
उद्घाटन सत्र के बाद, दो तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया। पहले तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. आर.एन. सिंह (पूर्व अध्यक्ष, रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग) ने की, जिसमें प्रो. ओम प्रकाश सिंह (प्राचार्य, दिग्विजय नाथ पीजी कॉलेज) मुख्य अतिथि और प्रो. कमल किंगर (अध्यक्ष, रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला) मुख्य वक्ता रहे। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा ने किया।
दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. प्रदीप कुमार यादव (पूर्व अध्यक्ष, रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग) ने की, जिसमें प्रो. असीम सत्यदेव (पूर्व प्राचार्य, संत विनोबा भावे पीजी कॉलेज, देवरिया) मुख्य अतिथि, प्रो. बलवंत सिंह (सेवानिवृत्त, रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग, भटौली महाविद्यालय) मुख्य वक्ता और श्री विशाल दुबे (सीनियर कमांडेंट, डीआईजी सीआईएसफ) विशिष्ट अतिथि रहे।
इन दोनों तकनीकी सत्रों में शोध छात्रों द्वारा कुल 12 शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया गया। इस दौरान विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. सतीश चंद्र पांडेय, प्रो. श्री निवास मणि त्रिपाठी, डॉ. प्रवीण कुमार सिंह, डॉ. जितेंद्र कुमार, डॉ. विजय कुमार, डॉ. अभिषेक सिंह, डॉ. डी.के. पाटिल (महाराष्ट्र) सहित विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के शिक्षकगण, विभिन्न महाविद्यालयों से आए शिक्षक, देश के अलग-अलग प्रदेशों से आए प्रतिभागी और विभाग के शोध छात्र-छात्राएं, परास्नातक व स्नातक के छात्र उपस्थित रहे।