गोरखपुर: जेल प्रशासन अब पूरी तरह से डिजिटल पारदर्शिता और सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम उठा रहा है। नई व्यवस्था के तहत, अब जेल में बंद हर कैदी का आधार कार्ड अनिवार्य रूप से उनके रिकॉर्ड के साथ जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही, कैदी से मिलने आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भी अपना आधार कार्ड दिखाना अनिवार्य होगा, जिससे पहचान सत्यापन को मजबूत किया जा सके। इस कदम का मुख्य उद्देश्य कैदियों के रिकॉर्ड को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एकीकृत करना और फर्जी पहचान के आधार पर होने वाली मुलाकातों पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाना है।
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कैदियों के रिकॉर्ड का ई-सृजन पोर्टल पर होगा एकीकरण
कैदियों की विस्तृत जानकारी को अब ‘ई-सृजन डाटा सिस्टम’ में लिंक किया जा रहा है। इस डाटा सिस्टम में कैदी का नाम, पता, केस से जुड़ी सभी जानकारी, जेल में बिताया गया समय, ट्रायल की वर्तमान स्थिति और अब आधार कार्ड का विवरण भी शामिल किया जाएगा। इस पूरी प्रणाली का संचालन नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) की ओर से किया जाता है। ई-सृजन पोर्टल के माध्यम से जेल अधिकारी कैदियों के व्यवहार, स्वास्थ्य स्थिति और कानूनी पहलुओं की जानकारी को ऑनलाइन तरीके से कभी भी एक्सेस कर सकेंगे। वरिष्ठ जेल अधीक्षक डीके पांडेय ने बताया कि यह नई व्यवस्था सुरक्षा और पहचान सत्यापन को मजबूत बनाने के लिए लागू की जा रही है, जो जल्द ही गोरखपुर जेल में प्रभावी हो जाएगी।
मुलाकातियों के लिए बायोमेट्रिक सत्यापन की तैयारी
सुरक्षा और पहचान सत्यापन को मजबूत करने के लिए मुलाकात के नियमों को अब और सख्त किया जा रहा है। कई बार मुलाकात के दौरान गलत पहचान या किसी दूसरे व्यक्ति के नाम से प्रवेश के मामले सामने आते रहे हैं। इन घटनाओं पर पूरी तरह से अंकुश लगाने के लिए अब जेल प्रशासन आधार-आधारित सत्यापन व्यवस्था को लागू कर रहा है। नई व्यवस्था के तहत, मुलाकाती का बायोमेट्रिक सत्यापन भी किया जा सकेगा। यह कदम किसी भी तरह की फर्जी पहचान या धोखाधड़ी की आशंका को खत्म करने के मुख्य लक्ष्य के साथ उठाया गया है।
सुरक्षा और भविष्य की योजनाओं में पारदर्शिता
वरिष्ठ जेल अधीक्षक के अनुसार, इस नई व्यवस्था के लागू होने के बाद मुलाकात की पूरी प्रक्रिया डिजिटल और पूरी तरह से सत्यापित पहचान पर आधारित होगी, जिससे जेल की सुरक्षा और निगरानी व्यवस्था को एक नई मजबूती मिलेगी। यह प्रणाली राज्य स्तर पर एक एकीकृत (इंटीग्रेटेड) डाटा तैयार करेगी, जिसके कारण किसी कैदी के ट्रांसफर (स्थानांतरण), रिहाई या अन्य कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहेगी। भविष्य में, इस डिजिटल व्यवस्था को पुलिस विभाग और न्यायालयों से भी लिंक करने की योजना है, जिससे आरोपियों के रिकॉर्ड और उनकी केस स्थिति की निगरानी (मॉनिटरिंग) करना और भी आसान हो सकेगा।


