Wars between India and Pakistan (भारत-पाक युद्ध): भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण और संवेदनशील अध्याय हैं। इन युद्धों में भारतीय सैनिकों ने अद्वितीय साहस, शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए देश की सीमाओं और संप्रभुता की रक्षा की। आइए, इन प्रमुख युद्धों और उनमें भारतीय वीरों के पराक्रम का विस्तार से वर्णन करते हैं:
प्रत्येक युद्ध में, भारतीय सैनिकों ने विषम परिस्थितियों, दुर्गम इलाकों और दुश्मन की मजबूत किलेबंदी के बावजूद अद्भुत वीरता का परिचय दिया। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना मातृभूमि की रक्षा के लिए संघर्ष किया। बर्फीली चोटियों पर दुश्मन से लोहा लेना हो, या मैदानी इलाकों में टैंकों के सामने डटकर खड़े रहना हो, भारतीय वीरों ने हमेशा अपने साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया है। उनकी अटूट निष्ठा, उत्कृष्ट युद्ध कौशल और “पहले देश, फिर स्वयं” की भावना ने हर चुनौती का डटकर मुकाबला किया।
1. प्रथम भारत-पाक युद्ध (1947–1948): कश्मीर की रक्षा में शौर्य
भारत के विभाजन के बाद जम्मू-कश्मीर इस युद्ध का कारण बना। महाराजा हरि सिंह के भारत में विलय के निर्णय के बाद, पाकिस्तान समर्थित कबायली लड़ाकों ने कश्मीर में घुसपैठ की, जिसका उद्देश्य उसे पाकिस्तान में शामिल करना था।
जब कबायली हमलावर श्रीनगर के करीब पहुँच गए, तो भारतीय सेना की त्वरित कार्रवाई ने स्थिति को संभाला। सिख रेजीमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी ने बड़गाम में दुश्मन को महत्वपूर्ण समय तक रोके रखा। मेजर शर्मा ने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन उनके पराक्रम ने अन्य सैनिकों को मजबूती से लड़ने और श्रीनगर हवाई अड्डे को बचाने का समय दिया। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। भारतीय वायुसेना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, सैनिकों और आवश्यक सामग्री को तेजी से कश्मीर पहुँचाया। दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में भारतीय सैनिकों ने महीनों तक दुश्मन से संघर्ष किया। उन्होंने वीरता और दृढ़ संकल्प के साथ घुसपैठियों को पीछे धकेला और महत्वपूर्ण क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में रखा। ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह, जो जम्मू-कश्मीर राज्य बलों के अधिकारी थे, ने भी शुरुआती दिनों में दुश्मन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी छोटी सी टुकड़ी के साथ उरी सेक्टर में दुश्मन का सामना किया और उन्हें मूल्यवान समय गंवाने पर मजबूर किया।
युद्धविराम के बाद कश्मीर का विभाजन हुआ, लेकिन भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर के एक बड़े हिस्से को पाकिस्तान के कब्जे में जाने से बचा लिया। भारतीय वीरों के बलिदान और पराक्रम ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
2. द्वितीय भारत-पाक युद्ध (1965): लाहौर तक दहाड़
पाकिस्तान ने “ऑपरेशन जिब्राल्टर” के तहत कश्मीर में विद्रोह भड़काने और सैन्य घुसपैठ की योजना बनाई। रण ऑफ कच्छ में सीमा संघर्ष ने पहले ही तनाव बढ़ा दिया था।
जब पाकिस्तानी सेना ने अगस्त 1965 में कश्मीर में घुसपैठ की, तो भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पश्चिमी सीमा पर दबाव बनाया। भारतीय सैनिकों ने बहादुरी से सीमा पार कर पाकिस्तान के अंदरूनी इलाकों तक प्रवेश किया, जिसमें लाहौर के करीब तक पहुँचना शामिल था। कंपनी क्वार्टरमास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने खेमकरण सेक्टर में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपनी साधारण जीप पर लगी रिकॉइललेस गन से पाकिस्तान के कई पैटन टैंकों को नष्ट किया। उनके अद्वितीय साहस और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। भारतीय वायुसेना ने दुश्मन के हवाई हमलों का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया और पाकिस्तानी वायुसेना को भारी नुकसान पहुँचाया। राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट पर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में पंजाब रेजीमेंट की एक छोटी सी कंपनी ने पूरी रात पाकिस्तानी टैंकों और सैनिकों के हमलों को बहादुरी से विफल किया, जब तक कि सुबह वायुसेना की सहायता नहीं पहुँच गई।
17 दिनों तक चले इस भीषण युद्ध के बाद ताशकंद समझौते के तहत युद्धविराम हुआ और सीमाएँ पहले की स्थिति पर लौट आईं। भारतीय सेना ने अपनी बहादुरी और दृढ़ संकल्प से पाकिस्तान के मंसूबों को विफल कर दिया।
3. तृतीय भारत-पाक युद्ध (1971): मुक्ति और विजय
पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली स्वतंत्रता आंदोलन और पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण लाखों शरणार्थियों का भारत में आना इस युद्ध का मुख्य कारण था। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति वाहिनी का समर्थन किया।
जब पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को भारतीय हवाई अड्डों पर हमला किया, तो भारत ने पूरी ताकत से जवाबी कार्रवाई शुरू की। भारतीय सेना ने पूर्वी मोर्चे पर तेजी से कार्रवाई करते हुए पाकिस्तानी सेना को घेर लिया। भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर प्रभावी हमले किए और पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तान की समुद्री शक्ति को कमजोर कर दिया। भारतीय वायुसेना ने पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर हवाई श्रेष्ठता बनाए रखी और दुश्मन के ठिकानों पर लगातार बमबारी की। पूर्वी पाकिस्तान में, भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी के संयुक्त प्रयासों ने पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। 16 दिसंबर 1971 को ढाका में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था।
इस युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ। शिमला समझौते के तहत नियंत्रण रेखा को आधिकारिक मान्यता मिली। यह युद्ध भारतीय सेना के निर्णायक पराक्रम और रणनीतिक श्रेष्ठता का प्रतीक है।
4. कारगिल युद्ध (1999): दुर्गम चोटियों पर विजय
पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों ने कारगिल-द्रास क्षेत्र में भारतीय सीमा की ऊँची और दुर्गम चोटियों पर कब्जा कर लिया था। भारत को सर्दियों में खाली की गई पोस्टों पर कब्जे का पता गर्मियों में चला।
भारतीय सेना ने “ऑपरेशन विजय” के तहत दुर्गम और बर्फीली चोटियों से दुश्मन को खदेड़ने के लिए एक कठिन अभियान चलाया। सैनिकों ने जान जोखिम में डालकर खड़ी चढ़ाइयों पर हमला किया और दुश्मन के बंकरों को नष्ट किया। कैप्टन विक्रम बत्रा ने टाइगर हिल और अन्य महत्वपूर्ण चोटियों पर असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने कई पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और अपने साथियों को प्रेरित किया। “ये दिल मांगे मोर!” उनका युद्धघोष भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस का प्रतीक बन गया। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय ने खालूबार चोटी पर दुश्मन के कई बंकरों को अकेले ही नष्ट कर दिया और अंततः वीरगति को प्राप्त हुए। उनके अद्वितीय साहस के लिए उन्हें भी मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। भारतीय वायुसेना ने “ऑपरेशन सफेद सागर” के तहत दुश्मन के ठिकानों पर प्रभावी हवाई हमले किए, जिससे उन्हें पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा।
भारतीय सेना ने अपनी वीरता और दृढ़ संकल्प से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया और अपनी सीमा वापस हासिल कर ली। कारगिल युद्ध भारतीय सैनिकों के अद्वितीय साहस, बलिदान और पेशेवर कौशल का एक और प्रमाण है। इस युद्ध में भारतीय वीरों ने दुर्गम परिस्थितियों में भी अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए ये युद्ध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ हैं। इन युद्धों में भारतीय वीरों ने जिस अद्वितीय साहस, शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन किया, वह आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी बहादुरी और बलिदान ने भारत की सीमाओं की रक्षा की और देश की संप्रभुता को अक्षुण्ण बनाए रखा। इन युद्धों की कहानियाँ भारतीय सैन्य इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई हैं और आने वाली पीढ़ियों को देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरणा देती रहेंगी।