गोरखपुर: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने पर्यावरण और व्यावसायिक कारकों से संबंधित बीमारियों पर अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किया। यह कार्यक्रम एम्स के सभागार में चिकित्सा शिक्षा इकाई द्वारा आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य और पर्यावरण पर अनुसंधान को बढ़ावा देना था। कार्यक्रम में एम्स के सभी संकाय सदस्य और प्रमुख विशेषज्ञ उपस्थित थे, जिन्होंने इस विषय पर अपने विचार साझा किए।

विष तत्वों के स्वास्थ्य पर प्रभाव की चर्चा
सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च के निदेशक, डॉ. आलोक धवन ने कार्यक्रम के दौरान पर्यावरण में उपस्थित विष तत्वों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ये विष तत्व भले ही कम मात्रा में होते हैं, लेकिन लंबे समय तक उनके संपर्क में रहने से स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। डॉ. आलोक ने अपने अनुसंधान के परिणामों को साझा करते हुए कहा कि ऐसे तत्व हमारे डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
व्यावसायिक कारकों से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम
इस अवसर पर डॉ. आलोक ने व्यावसायिक कारकों पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि पेट्रोल पंपों के पास रहने वाले लोग और अन्य ऐसे स्थानों पर काम करने वाले लोग, जिनका संपर्क हानिकारक रसायनों से होता है, वे डीएनए क्षति के शिकार हो सकते हैं। इनमें सीसा, बेंजीन जैसे कार्सिनोजेनिक तत्व शामिल हैं, जो स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि हमारे रोज़मर्रा की जिंदगी में मौजूद कुछ सामान्य कारक हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं, और इन पर अनुसंधान करना ज़रूरह है।
एम्स में बहु-विशेषता अनुसंधान की महत्ता पर जोर
एम्स की स्थायी शैक्षणिक समिति के अध्यक्ष डॉ. अशोक प्रसाद ने बहु-विशेषता अनुसंधान की महत्ता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विभिन्न विभागों के सहयोग से अधिक प्रभावी अनुसंधान किए जा सकते हैं, जो स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को हल करने में मदद कर सकते हैं।
निदान के साथ मर्ज के कारणों पर केंद्रित करें ध्यान
एम्स की कार्यकारी निदेशक, डॉ. मेजर जनरल विभा दत्ता ने संकाय सदस्यों को रोगों के निदान के साथ-साथ उनके कारणों पर भी ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया। उन्होंने यह भी कहा कि ओपीडी में आने वाले मरीजों से इन कारकों के बारे में जानकारी जुटाना आवश्यक है, ताकि बीमारी के कारणों पर रोकथाम की दिशा में काम किया जा सके।
जागरूकता और शिक्षा के माध्यम से स्वास्थ्य सुधार
कार्यक्रम का संचालन डॉ. मनोज पर्चाके, विभागाध्यक्ष, फोरेंसिक चिकित्सा विज्ञान ने किया। इस आयोजन ने स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर अनुसंधान की आवश्यकता को लेकर जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कार्यक्रम में डीन ऐकडेमिक डॉ. महिमा मित्तल, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अजय भर्ती, डॉ. शिखा सेठ, डॉ. मनोज सौरभ, डॉ. आराधना सिंह, डॉ. सौरभ केडिया, डॉ. मनीष, डॉ. तेजस, और डॉ. कोपरकर जैसे प्रमुख विशेषज्ञों ने भी भाग लिया।