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इतिहास का सच और वर्तमान सांप्रदायिकता का निष्कर्ष: सांप्रदायिक नहीं था मध्यकालीन भारत

इतिहास का सच और वर्तमान सांप्रदायिकता का निष्कर्ष: सांप्रदायिक नहीं था मध्यकालीन भारत

गोरखपुर: गोरखपुर प्रेस क्लब में संस्था ‘आयाम’ द्वारा आयोजित एक विमर्श में इतिहास और वर्तमान साम्प्रदायिकता के संबंधों पर गहरा मंथन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ विचारक प्रोफेसर चितरंजन मिश्र ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता आम जनता के लिए नहीं, बल्कि सत्ता व्यवस्था के लिए अनिवार्य होनी चाहिए.

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इतिहास के प्रतिशोध पूर्ण चरित्र की चर्चा करने के बजाय, आज के समय में महान परम्पराओं की चर्चा की जानी चाहिए, जिनमें मानवीय विवेक रचा बसा है. इस विमर्श के मुख्य वक्ता, ग़ैर अकादमिक इतिहासकार नज़ीर मलिक ने अपने व्याख्यान में दावा किया कि इतिहास गवाह है कि मध्यकालीन भारत में साम्प्रदायिकता थी ही नहीं.

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इतिहास का सच और वर्तमान सांप्रदायिकता का निष्कर्ष: सांप्रदायिक नहीं था मध्यकालीन भारत
नजीर मलिक को सम्मानित करते प्रोफेसर चितरंजन मिश्र, डॉ. गौरहरि बेहरा, डॉ. दरक्शां ताजवर और आयाम के संयोजक देवेंद्र आर्य.

साम्प्रदायिकता अंग्रेजों की सुनियोजित नीति का नतीजा: नज़ीर मलिक

इतिहासकार-पत्रकार नज़ीर मलिक ने अपने सूत्र वाक्य को समझाते हुए कहा कि मध्यकाल का पूरा इतिहास सामंतों, ओहदेदारों और राजाओं की साम्राज्य बचाने और विस्तार करने की आपसी लड़ाई का दस्तावेज़ है. इस संघर्ष के पीछे हिन्दू-मुसलमान या हिन्दुत्व और इस्लाम का कोई भी मुद्दा नहीं था. उन्होंने आरोप लगाया कि राजाओं की इस निजी स्वार्थ की जंग को राष्ट्रवादी और ग़ैर-राष्ट्रवादी स्वरूप 19वीं और 20वीं शताब्दी में अंग्रेजों की सुनियोजित नीति के तहत दक्षिणपंथी इतिहासकारों द्वारा दिया गया. उन्होंने अकादमिक इतिहास को आम जनता की भाषा हिन्दी में उपलब्ध कराने की पुरजोर वकालत की.

इतिहास और साम्प्रदायिकता: मध्यकाल का साहित्य भी साफ़ है

विमर्श के दौरान अन्य वक्ताओं ने भी इस बात का समर्थन किया. चर्चित आलोचक डा. अरविंद त्रिपाठी ने जायसी के ‘पद्मावत’ का उल्लेख करते हुए इतिहास और साम्प्रदायिकता को लेकर नज़ीर मलिक की बात को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि न केवल इतिहास, बल्कि मध्यकाल के साहित्य में भी साम्प्रदायिकता का कोई रोग दिखाई नहीं पड़ता है. वहीं, अंग्रेजी के प्रोफेसर डा. गौर हरि बेहरा ने इतिहास लेखन में हिन्दी-अंग्रेजी के खतरे का ज़िक्र करते हुए सत्ता के नैरिटिव (ख्यान) पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी. कार्यक्रम की शुरुआत में संयोजक देवेन्द्र आर्य ने नज़ीर मलिक का अभिनंदन किया.


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गो गोरखपुर ब्यूरो

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