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यूपी के इस जिले में अब ढूंढे नहीं मिल रहे हैं 50 हजार भूत छात्र

अपार आईडी

महानिदेशक स्कूल शिक्षा ने जिम्मेदारों से दो दिन में स्पष्टीकरण मांगा

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यूपी के इस जिले में अब ढूंढे नहीं मिल रहे हैं 50 हजार भूत छात्र
यूपी के इस जिले में अब ढूंढे नहीं मिल रहे हैं 50 हजार भूत छात्र

Gorakhpur: यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं। बेसिक शिक्षा विभाग आजकल पचास हजार भूतों की तलाश कर रहा है। स्कूली बच्चों की सूची में दर्ज ये ‘भूत’ पिछले शैक्षिक सत्र तक पढ़ाई करने स्कूल आते थे। इस साल नये शैक्षिक सत्र से पहले जब अपार आईडी बनने का काम शुरू हुआ तो ये ‘लापता’ हो गए। बेसिक शिक्षा विभाग में 50 हजार छात्रों के भौतिक सत्यापन की बारी आई तो आंकड़ों का गोलमाल सामने आने लगा। इसके बारे में विद्यालयों ने अब तक कोई जानकारी नहीं दी है। हाल में ही महानिदेशक स्कूल शिक्षा ने ऑनलाइन समीक्षा के दौरान इस पर नाराजगी जतायी और कठोर कार्रवाई की चेतावनी दी है।

बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से इस सत्र से छात्रों के लिए अपार आईडी अनिवार्य कर दी गई है। अपार आईडी छात्रों का वह पहचान पत्र है, जो छात्र के आधार से कनेक्ट होती है। इसके माध्यम से छात्रों के शैक्षणिक रिकॉर्ड को ऑनलाइन ट्रैक किया जा सकता है। बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से जो रिपोर्ट सबमिट की गई, उसमें पिछले साल और इस वर्ष के छात्रों की संख्या में 50552 छात्रों का अंतर सामने आया। यही नहीं, पंजीकृत छात्रों की संख्या में इतना अंतर होने के बाद भी जो सूची सबमिट की गई है, उसमें भी लगभग 70 प्रतिशत छात्र छात्राओं की अपार आईडी बन सकी है। बाकी 30 फीसद छात्रों का पता नहीं है। हालांकि विभाग का दावा है कि 85 प्रतिशत छात्रों की अपार आईडी तैयार हो चुकी है।

इन गड़बड़ियों पर महानिदेशक स्कूल शिक्षा की नाराजगी के बाद बीएसए गोरखपुर रमेंद्र कुमार ने संबंधित विद्यालयों को नामांकन में अंतर के कारणों और शेष बची अपार जनरेट नहीं करने पर दो दिन के भीतर जानकारी मांगी है।

बीएसए ने बताया कि छात्रों की संख्या में अंतर की बड़ी वजह डुप्लीकेट, ट्रिपलिकेट, ड्रॉपआउट छात्र हैं। ऐसा देखा जाता है कि कुछ बच्चे कुछ दिनों तक एक स्कूल में रहे, फिर वे किसी और स्कूल में पढ़ने लगे, या स्कूल गए ही नहीं। ऐसे छात्रों की संख्या पोर्टल पर बनी रह जाती है। इसकी वजह से आंकड़ों में अंतर आ जाता है। विभाग ऐसे छात्रों को तलाश रहा है। उन्होंने बताया कि अपार आईडी के काफी फायदे हैं। इसकी मदद से छात्रों का सत्यापन आसान हो जाएगा।

यह भी देखें- बच्चे के ‘अपार’ नामांकन के लिए आपने सहमति दी? जान लें ये काम की बातें

जानकार बताते हैं कि छात्रों की अधिक संख्या में यह अप्रत्याशित वृद्धि डुप्लीकेट एंट्री की वजह से हो सकती है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि अभिभावक बच्चे का नामांकन सरकारी स्कूलों में करा देते हैं ​लेकिन पढ़ाई दूसरे स्कूलों में कराते हैं। अपारआईडी बनने के बाद अब ऐसी डुप्लीकेट लिस्टिंग की समस्या खत्म हो जाएगी। अपार आईडी से प्रवेश प्रक्रिया पारदर्शी हो जाएगी।

कुछ सवाल जो अनुत्तरित हैं-

  • जिले के ​प्राथमिक स्कूलों में रोजाना छात्रों की हाजिरी दर्ज होती है। कक्षा अध्यापक के पास जो रजिस्टर मौजूद होता है उनमें छात्रों के नाम स्पष्ट लिखने होते हैं। अगर मान लें कि कोई छात्र पिछले छह माह से स्कूल नहीं आ रहा है, तो स्कूल में उसका नाम क्यों और कैसे चलता रहा? स्कूलों ने इसे अपडेट क्यों ​नहीं कराया?
  • जो छात्र कभी विद्यालय आए ही नहीं, क्या उनके माता-पिता से संवाद करने की कोशिश की गई? अगर हां, तो उन्होंने बच्चे को स्कूल न भेजने के कारण भी जरूरत बताए होंगे। क्या गैरहाजिर बच्चे के नाम के साथ किसी मुनासिब कारण का उल्लेख किया गया?
  • छात्रों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन या अभिभावकों को विभाग की ओर से मिलने वाली मदद, यदि कोई है, के वितरण के दौरान क्या छात्र या अभिभावक का भौतिक सत्यापन किया जाता है? अगर हां, तो भूत छात्रों की संख्या में इतना अंतर पूरे शैक्षिक सत्र के दौरान कैसे बना रहा?

यह है अपार आईडी

अपार आईडी (ऑटोमेटिक परमानेंट एकेडमिक अकाउंट रजिस्ट्री) किसी भी निजी और सरकारी स्कूल में बच्चों की यूनिक शैक्षणिक आईडी है। इसके तहत हर छात्र को 12 अंकों का एक यूनिक आईडी नंबर जारी किया जा रहा है, जिसे अपार आईडी का नाम दिया गया है। इसके माध्यम से, छात्र अगर देश के किसी भी विद्यालय में प्रवेश लेने जाता है तो वहां उसका सत्यापित विवरण एक क्लिक पर उपलब्ध हो जाता है।


प्रसंगवश
अकबर ने एक बार बीरबल से पूछा-हमारे राज्य में कितने पंछी हैं?
बीरबल ने जवाब दिया-महोदय, दो लाख पंछी हैं।
बीरबल के इस जवाब पर अकबर मुस्कराये।

कुछ दिनों बाद अकबर ने कहा-बीरबल! मैं पंछियों की गिनती शुरू कराने जा रहा हूं।
अगर पंछी कम या ज्यादा हुए तो…?

बीरबल उनकी मंशा ताड़ गए। उन्होंने झट से जवाब दिया-
महोदय, अगर पंछी कम हुए तो मानिये वे रिश्तेदारी में चले गए,
अगर ज्यादा हुए तो समझिए कि पंछियों के रिश्तेदार आपके राज्य में आए हैं।

-एक लोककथा
Siddhartha Srivastava

Siddhartha Srivastava

About Author

Siddhartha Srivastava का आज, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण जैसे हिंदी अखबारों में 18 साल तक सांस्थानिक पत्रकारिता का अनुभव है. वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता. email:- siddhartha@gogorakhpur.com | 9871159904.

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