Gorakhpur: एम्स गोरखपुर में हुए एक नए शोध ने मेलाज्मा के कारणों और उसके प्रभावी इलाज को लेकर नई उम्मीद जगाई है. यह शोध त्वचा रोग विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) सुनील कुमार गुप्ता के नेतृत्व में किया गया है. इस शोध में बायोकैमिस्ट्री विभाग के डॉ. शैलेंद्र द्विवेदी ने सह-अन्वेषक की भूमिका निभाई है.
मेलाज्मा एक त्वचा रोग है जिसमें चेहरे पर काले या भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं. यह समस्या सिर्फ दिखने तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे मानसिक तनाव और आत्मविश्वास में कमी भी आ सकती है. हालांकि इसके इलाज उपलब्ध हैं, लेकिन वे अक्सर महंगे और लंबे समय तक चलने वाले होते हैं, और कई बार सफल भी नहीं होते.
यह अध्ययन इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजी, वेनेरियोलॉजी और लेप्रोलॉजी (IADVL) रिसर्च ग्रांट से वित्त पोषित था और डर्माकॉन 2025 (जयपुर) में प्रस्तुत किया गया. इस अध्ययन में 208 महिलाओं को शामिल किया गया. इसमें हार्मोनल असंतुलन और मेलनोसाइट इंड्यूसिंग ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर (MITF gene) की भूमिका को समझने की कोशिश की गई.
इस अध्ययन में, MITF का स्तर मेलाज्मा मरीजों में काफी कम पाया गया, जिससे यह साबित हुआ कि मेलाज्मा सिर्फ ज्यादा मेलेनिन बनने से नहीं, बल्कि त्वचा की कोशिकाओं में कुछ बदलावों से भी जुड़ा है. सिर्फ धूप ही नहीं, बल्कि लंबे समय तक इनडोर लाइट में रहने से भी मेलाज्मा बढ़ सकता है.
इस शोध में मेलाज्मा के कारणों और नए इलाज की संभावनाओं पर गौर किया गया है. एम्स की कार्यकारी निदेशक मेजर जनरल प्रो. डॉ. विभा दत्ता ने इस शोध के लिए प्रो. गुप्ता को बधाई दी है. उन्होंने कहा कि यह शोध डर्माटोलॉजी के क्षेत्र में नए और किफायती इलाज के विकास में मददगार होगा.
अगर हम मेलाज्मा के हार्मोनल और आनुवंशिक कारणों को समझ लें, तो इसका इलाज अधिक प्रभावी, सस्ता और स्थायी हो सकता है.
— प्रो. (डॉ.) सुनील कुमार गुप्ता
यह शोध डर्माटोलॉजी के क्षेत्र में एक बड़ा योगदान है. यह न केवल मेलाज्मा के नए इलाज के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा, बल्कि किफायती और प्रभावी उपचार विकसित करने में भी मदद करेगा. हमें गर्व है कि एम्स गोरखपुर के डॉक्टर इस तरह के महत्वपूर्ण शोध कर रहे हैं.
— मेजर जनरल प्रो. डॉ. विभा दत्ता, कार्यकारी निदेशक, एम्स गोरखपुर