Last Updated on September 23, 2025 12:24 PM by गो गोरखपुर ब्यूरो
बदायूं के साहूकारा मोहल्ले में स्थित एक अनोखा रावण मंदिर जहां दशहरा पर दशानन का दहन नहीं, बल्कि पूजा-अर्चना की जाती है। जानिए 100 साल पुराने इस मंदिर की कहानी, जहां रावण को एक महान विद्वान और शिव भक्त के रूप में पूजा जाता है।
बदायूं: देशभर में जब दशहरा आते ही रावण दहन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं, तो यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक बन जाता है। लेकिन, उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर में एक ऐसा मंदिर भी है, जो इस परंपरा से बिल्कुल अलग है। यहां दशहरा के दिन रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, बल्कि उनकी प्रतिमा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह मंदिर मोहल्ला साहूकारा में स्थित है और स्थानीय लोगों के बीच ‘रावण का मंदिर’ नाम से प्रसिद्ध है। यहां रावण को ज्ञान, विद्वत्ता और शिव की भक्ति का प्रतीक मानकर पूजा जाता है।
100 साल पुरानी है मंदिर की कहानी
इस अनोखे मंदिर का निर्माण लगभग 100 साल पहले पंडित बलदेव प्रसाद शर्मा ने करवाया था। उनकी देखरेख में यह मंदिर स्थानीय आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। उनके निधन के बाद उनके दामाद रवींद्र कुमार शर्मा ने इसकी जिम्मेदारी संभाली और अब उनके नाती पंडित सुमित शर्मा इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। सुमित शर्मा प्रतिदिन मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं और दशहरा पर विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
क्यों होती है रावण की पूजा?
जहां एक ओर रावण को अहंकार और बुराई का प्रतीक मानकर जलाया जाता है, वहीं बदायूं का यह मंदिर एक अलग ही संदेश देता है। यह परंपरा बताती है कि किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन केवल उसके दोषों से नहीं, बल्कि उसके गुणों से भी किया जाना चाहिए। रावण को एक महाज्ञानी, प्रकांड विद्वान और भगवान शिव का परम भक्त माना जाता था। इसलिए यहां दशहरा के दिन उनके सद्गुणों की पूजा की जाती है। पंडित सुमित शर्मा बताते हैं कि इस पूजा का उद्देश्य रावण के नकारात्मक पक्षों को नहीं, बल्कि उनके सकारात्मक गुणों को याद करना है।
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दशहरे पर उमड़ती है भक्तों की भीड़
साल भर मंदिर में भक्त अन्य देवी-देवताओं की पूजा करने आते हैं, लेकिन दशहरा के दिन रावण की पूजा देखने और उसमें शामिल होने के लिए विशेष रूप से भीड़ उमड़ती है। पूजा-अर्चना के दौरान रावण को एक आदर्श शिवभक्त के रूप में याद किया जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि दशहरा पर यहां रावण की पूजा करने से विद्या, ज्ञान और शिव की कृपा की प्राप्ति होती है।
रावण मंदिर बदायूं – कुछ खास बातें
- 1925: मंदिर का निर्माण पंडित बलदेव प्रसाद शर्मा ने कराया।
- 100 साल: इस मंदिर की परंपरा लगभग 100 साल पुरानी है।
- पंडित सुमित शर्मा: वर्तमान में मंदिर की देखभाल और पूजा का दायित्व निभा रहे हैं।
- विशेष दिन: दशहरा पर रावण की विशेष पूजा और अनुष्ठान किया जाता है।
- स्थापना: रावण की प्रतिमा शिवलिंग के पास स्थापित है।