दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के 44वें दीक्षांत समारोह में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने छात्रों को राष्ट्र निर्माण और समाज सेवा का मंत्र दिया। जानें शोध, उपस्थिति और शिक्षा पर उनके महत्वपूर्ण निर्देश।
गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय का 44वां दीक्षांत समारोह आज बाबा गम्भीरनाथ प्रेक्षागृह में आयोजित हुआ। समारोह की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने की। इस अवसर पर पद्मश्री प्रो. आशुतोष शर्मा, इंस्टिट्यूट चेयर प्रोफेसर, आईआईटी कानपुर, मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे और उन्हें मानद डी.एससी. की उपाधि से सम्मानित किया गया। समारोह में उच्च शिक्षा मंत्री श्री योगेन्द्र उपाध्याय और उच्च शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती रजनी तिवारी भी मौजूद थीं।
राज्यपाल का संबोधन: ‘युवा देश के कर्णधार’
अपने संबोधन में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने विद्यार्थियों को राष्ट्र के भविष्य का निर्माता बताया। उन्होंने कहा कि युवाओं की सबसे बड़ी जिम्मेदारी राष्ट्र को आगे बढ़ाना है। उन्होंने स्वर्ण पदक विजेताओं को बधाई दी और अन्य छात्रों को निराश न होने की सलाह देते हुए कहा कि हर व्यक्ति में कोई न कोई विशेष प्रतिभा छिपी होती है, जिसे उजागर करना ही सफलता है।
उन्होंने शिक्षकों की भूमिका पर भी जोर दिया और शिक्षण को एक सेवा बताया। राज्यपाल ने कहा कि छात्रों को प्रयोगशाला, व्याख्यान और पुस्तकालय में अपनी उपस्थिति अनिवार्य रूप से दर्ज करानी चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 75% उपस्थिति अनिवार्य होगी, अन्यथा विद्यार्थी परीक्षा में शामिल नहीं हो पाएंगे।
शोध और नवाचार पर बल
राज्यपाल ने शोध कार्यों पर विशेष बल देते हुए कहा कि शोध के निष्कर्ष केवल अकादमिक प्रकाशनों तक सीमित नहीं रहने चाहिए, बल्कि उनका व्यावहारिक उपयोग भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उन्होंने नगर निगम और सरकारी विभागों से सहयोग करके शोध को समाज के लिए उपयोगी बनाने का सुझाव दिया।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने पेटेंट के व्यावसायीकरण और उद्योगों के साथ साझेदारी पर जोर दिया। राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के समर्थ पोर्टल के माध्यम से 200 करोड़ रुपये की बचत की सराहना की और 34 अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के नामांकन को भी एक बड़ी उपलब्धि बताया, जो विश्वविद्यालय की बेहतर रैंकिंग का प्रमाण है।
विद्यार्थियों को प्रेरणा
अपने भाषण के अंत में, राज्यपाल ने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा, “आप सबके भीतर हजारों मोदी हैं। अपने अंदर की क्षमता को पहचानो और जिम्मेदारी उठाओ।” उन्होंने स्वर्ण पदक विजेताओं से कहा कि सोना मांगना नहीं चाहिए, बल्कि मेहनत से जीवन को सफल बनाना चाहिए। उन्होंने छात्राओं को भी पैसे की बजाय संस्कारों और मूल्यों को महत्व देने की सीख दी।
सफलताएँ साझा होती हैं, असफलताएँ व्यक्तिगत : पद्मश्री प्रो. आशुतोष शर्मा
मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. आशुतोष शर्मा (पूर्व सचिव, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार) ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि दीक्षांत केवल एक शैक्षणिक उपाधि प्राप्त करने का अवसर नहीं है, बल्कि यह विद्यार्थियों की मेहनत, धैर्य और संकल्प का उत्सव है। यह दिन उनके जीवन की नई यात्रा का प्रतीक है, जहाँ वे अपने कर्तव्यों और समाज के प्रति जिम्मेदारियों को स्वीकारते हैं।
उन्होंने कहा कि आज हम विज्ञान और सूचना क्रांति के युग में जी रहे हैं। यह युग नई संभावनाओं के साथ-साथ अनेक चुनौतियाँ भी लेकर आया है, जैसे – बुद्धिमान मशीनों का उदय, वैश्वीकरण और समावेशी विकास। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए युवाओं को चाहिए कि वे डेटा के साथ संतुलन बनाएँ, जानकारी को बुद्धिमत्ता में बदलें और अपने जुनून के साथ करुणा का भी समावेश करें। यही भावी नेतृत्व और रचनात्मक समाज की नींव है।
प्रो. शर्मा ने कहा कि सफलताएँ कभी केवल व्यक्तिगत प्रयास का परिणाम नहीं होतीं, बल्कि वे टीमवर्क और सामूहिक सहयोग से संभव होती हैं। असफलताएँ व्यक्ति की अपनी हो सकती हैं, लेकिन सफलताएँ हमेशा साझा होती हैं। यही जीवन का सबसे बड़ा पाठ है। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि जीवन में साहसी बने रहें, सहज बने रहें और सकारात्मक बदलाव लाने का साहस रखें। यही दृष्टिकोण भारत के उज्ज्वल भविष्य की आधारशिला बनेगा। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे केवल अच्छे पेशेवर ही नहीं, बल्कि संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक बनकर राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाएँ।
शिक्षा सिर्फ पढ़ाना नहीं, संस्कार देना भी शिक्षक का धर्म: योगेंद्र उपाध्याय
कैबिनेट मंत्री उच्च शिक्षा योगेंद्र उपाध्याय ने कहा कि गोरक्ष नगरी आध्यात्म की नगरी है। गीता प्रेस है, मंदिरों, मठ, चौरी चौरा का शहर है। मेडल पाने वाले छात्रों से कहा की मातापिता गुरुजनों के बिना यह मुकाम संभव नहीं है। यही भारत की प्राचीन संस्कृति रही है। इस संबंध में कोई स्वार्थ नहीं होता है। हर माँ बाप अपने बेटे और शिक्षक अपने छात्र को आगे देखना चाहते हैं। इनके ऋण से कोई मुक्त नहीं हो सकता है। कहा कि मेडल प्राप्त करने वाले छात्र देश और समाज के लिए मॉडल बने। कहा कि शिक्षा केवल पढ़ाना नहीं है बल्कि सिखाना और संस्कार देने भी शिक्षक का धर्म है। विवेकानंद जी की लिखी बातों का जिक्र करते हुए कहा की शिक्षा को ज्ञान, विज्ञान नैतिकता, संस्कार से जोड़े। सौ साल पहले यह बातें विवेकानंद जी ने कही थी। इसी को आधार मानकर नई शिक्षा नीति संस्कार, रोजगार तकनीक को जोड़कर पाठ्यक्रम बना रहा है। कहा कि पहले प्रदेश की शिक्षा बीमारू थी लेकिन आज उत्कृष्टता पर है शिक्षा। इसी की देन है की छह सरकारी विवि ए प्लस ग्रेड में है। जबकि सात निजी विवि ए प्लस ग्रेड में शामिल हो चुके हैं। अंत में उन्होंने स्वदेशी अपनाने पर जोर देकर अर्थ व्यवस्था को मजबूत बनाने की बात कही।
डिग्री जिम्मेदारी और समाज सेवा का संकल्प है: रजनी तिवारी
उच्च शिक्षा राज्यमंत्री रजनी तिवारी ने मेधावियों से कहा की शिक्षा यात्रा समापन नहीं है बल्कि नया अध्याय शुरू हो रहा है। इस डिग्री को केवल कागज ने समझे, बल्कि यह एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है। यह डिग्री आपको प्रेरणा देगी देश और समाज में योगदान करने के लिए। बोली की डिग्री पाने वालों में 75 फीसदी बेटिया है। यह बदल रहे भारत और विकसित भारत की तस्वीर है। कहा की पीएम मोदी के नेतृत्व ने विकसित देशों में आगे बढ़ रहा है। डीडीयू से निकले छात्र देश दुनिया में छाये हुए हैं। कहा की प्रदेश में शिक्षा का स्तर बढ़ा है। इसकी देन है की 18 मंडल में हर जगह विवि खुल रहे हैं। नई शिक्षा नीति राष्ट्र निर्माण का माध्यम है। कहा की आंगनबाड़ी केंद्र मजबूत होंगे तो विवि मजबूत होगा। इसलिए नींव को मजूबत करें। इसके लिए प्रदेश सरकार लगातार काम कर रही है।
बेटियों का परचम, रिकॉर्ड पीएचडी और वैश्विक पहचान: कुलपति
कुलपति प्रो. पूनम टण्डन ने अपने स्वागत भाषण में विश्वविद्यालय की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह समारोह केवल डिग्री प्रदान करने का नहीं, बल्कि नये भारत की शिक्षा यात्रा में मील का पत्थर है। उन्होंने कहा इस वर्ष 73 हजार से अधिक उपाधिधारियों में 68.53% बेटियाँ शामिल रहीं। वहीं 76 पदक विजेताओं में 56 छात्राएँ रही, यानी 73.33%। यह न सिर्फ बदलते समाज की तस्वीर है बल्कि क्षेत्रीय शिक्षा में महिलाओं की सशक्त उपस्थिति का प्रमाण भी। शोध के क्षेत्र में भी विश्वविद्यालय ने रिकॉर्ड बनाया। इस वर्ष 301 शोधार्थियों को पीएचडी उपाधि दी गई, जो अब तक की सर्वाधिक संख्या है।
पिछले वर्ष यह आंकड़ा 166 और उससे पूर्व मात्र 25 था। कुलपति ने इसे शोध संस्कृति और नवाचार का प्रमाण बताया। वैश्विक स्तर पर विश्वविद्यालय ने आठ अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों (अमेरिका, मलेशिया, नेपाल व बांग्लादेश) से सहयोग स्थापित किया है। इसी सत्र में 34 विदेशी छात्र विश्वविद्यालय से जुड़े हैं। नई शिक्षा नीति 2020 की भावना को आत्मसात करते हुए विश्वविद्यालय ने B.Sc. Agriculture in Natural Farming जैसे अभिनव कोर्स शुरू किये हैं। यह संस्थान देश का पाँचवां विश्वविद्यालय है जिसने यह पहल की है। कुलपति ने कहा कि बेटियों की बढ़ती भागीदारी, शोध में उन्नति और वैश्विक सहयोग—ये सभी संकेत हैं कि विश्वविद्यालय विकसित भारत की राह में शिक्षा का अग्रदूत बन रहा है।
पदक वितरण
माननीय कुलाधिपति द्वारा समारोह में कुल 76 विद्यार्थियों को पदक प्रदान किए गए, जिनमें 56 छात्राएं और 20 छात्र शामिल थे। विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक 71 और डोनर पदक 90 प्रदान किए गए। कुल 161 मेधावी विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष 43वें दीक्षांत समारोह में 55 विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक और 85 डोनर पदक प्रदान किए गए थे।
स्नातक एवं स्नातकोत्तर उपाधियाँ
सत्र 2024-25 में कुल 73,887 उपाधियाँ प्रदान की गईं। विश्वविद्यालय स्तर पर 7,711 और महाविद्यालय स्तर पर 66,176 उपाधियाँ दी गईं। कुल 50,636 छात्राओं और 23,251 छात्रों ने उपाधियाँ प्राप्त कीं।
पी-एच.डी. उपाधियाँ: एक नया रिकॉर्ड
इस वर्ष 301 शोधार्थियों को पी-एच.डी. उपाधि प्रदान की गई, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। कला संकाय के 117, विज्ञान संकाय के 99, वाणिज्य संकाय के 35, शिक्षा संकाय के 31, विधि संकाय के 11 और कृषि संकाय के 8 शोधार्थियों ने यह उपाधि प्राप्त की।
शिक्षक सम्मानित
- अध्यापन के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले 05 शिक्षकों का सम्मान किया गया।
- नवीनीकृत भवनों का लोकार्पण, नवनिर्मित भवनों का शिलान्यास
- माननीय कुलाधिपति जी ने विश्वविद्यालय के नवीनीकृत भवनों का लोकार्पण किया, नवनिर्मित भवनों का ऑनलाइन शिलान्यास किया।