चुपचाप, खुद ही अतिक्रमण की हदें समेटना क्या कहता है… बात-बेबात ठोंक बजा के...

चुपचाप, खुद ही अतिक्रमण की हदें समेटना क्या कहता है…

यह तस्वीर अपने गलत कार्यों की मौन स्वीकृति की गवाह है. कानून व्यवस्था को ठेंगे पर रखकर पिछले दिनों जिन सड़कों पर तांडव हुआ, वहां अब अपनी सीमा खुद ही दुरुस्त करने का यह मंजर सोशल मीडिया पर वायरल है. अब अपने आश्रितों के भविष्य की चिंता, एक अनजाना डर…आगे क्या होगा, आशियाना उजड़ जाने का मंडराता खतरा…इन सवालों के साये में, चेहरे पर अनुनय-विनय का भाव…चुपचाप हथौड़े से हदें दुरुस्त करना सिर्फ़ एक नोटिस का नतीजा ही नहीं हैं…यह स्वीकृति है अपने गलत कार्यों की.

बतकही-गो गोरखपुर बतकही बात-बेबात

मिरी मजबूरियां क्या पूछते हो…

बतकही | निजी चिकित्सा सेवाओं का संजाल शहर से लेकर गांवों तक फैला है। अब तो इनके दलाल भी हर की मौजूद हैं। कहीं-कहीं तो सब कुछ तंत्र की जानकारी में होते हुए। एक दौर था, जब चिकित्सा सेवा के केंद्र में मानवीय मूल्य होते थे। अब सब लाभ की संस्कृत में डूबे हुए।

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