दुखद अंत: सरधना की फ़िज़ाओं में तैरती रहेगी शाइस्ता और शादाब की ये प्रेम कहानी
मेरठ के करीब सरधना में एक छोटी सी लव स्टोरी का इतना दुखद अंत हुआ कि सबकी आंखें नम रह गईं…दोनों की उम्र कम थी…एक दूसरे को दिल से चाहते थे…एक ही धर्म के मानने वाले…लेकिन जाति अलग थी. भला प्रेम जाति और धर्म के बंधनों को कहां मानता है?…और वह शरीर के बंधनों को भी कहां मानता है…दोनों ने तय किया कि हम साथ जी नहीं सकते तो साथ मरने से भला कौन रोक सकता है…रख लो तुम अपनी धर्म और जाति की दीवारें अपने पास, इस दुनिया के दस्तूर अपने पास…पढ़िये दिल को झकझोर देने वाली यह कहानी —