गोरखपुर: मशहूर उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक ने साहित्य और लेखन जगत को लेकर कई चौंकाने वाले और बेबाक बयान दिए हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वह खुद को कोई बड़ा साहित्यकार नहीं मानते बल्कि वह एक कारोबारी लेखक हैं। पाठक के अनुसार उनके लिए अज्ञान ही वरदान की तरह है क्योंकि वह वही लिखते हैं जो उनके पाठक पसंद करते हैं। उन्होंने साफ किया कि वह कहानी लिखते समय तर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए विशेषज्ञों से सलाह लेते हैं और जिस विषय की उन्हें जानकारी नहीं होती उसे वह अपनी कहानियों में शामिल नहीं करते। उनका मानना है कि मिस्ट्री या क्राइम के विवरण में बहुत ज्यादा गहराई में जाने की जरूरत नहीं होती क्योंकि अगर लेखक अधूरी जानकारी लिखेगा तो पाठक उसे गंभीरता से नहीं लेंगे।
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कारोबारी लेखक के रूप में सुरेंद्र मोहन पाठक की पहचान
गोरखपुर लिट फेस्टिवल के आठवें संस्करण में, रविवार को गुफ्तगू सत्र में हिंदी जगत के सबसे लोकप्रिय लेखकों में शुमार सुरेंद्र मोहन पाठक मौजूद थे। सत्र के सूत्रधार प्रो. हर्ष सिन्हा से बातचीत और सभागार में उपस्थित दर्शकों से मुखातिब होते हुए सुरेंद्र मोहन पाठक ने अपने लेखन और व्यक्तित्व से जुड़ी तमात बातें बेबाकी से साझा कीं।

उन्होंने कहा कि उनकी सोच उनके पात्रों में झलकती है लेकिन वह खुद को पात्रों पर हावी नहीं होने देते। उन्होंने बताया कि उनके उपन्यास के किरदार जैसे सुनील आदि कभी बूढ़े नहीं होते क्योंकि कहानी की निरंतरता बनाए रखने के लिए पात्रों का उसी आयु में बने रहना जरूरी है। उनके अनुसार एक लेखक भले ही उम्रदराज हो जाए लेकिन उसके पात्र हमेशा जवान और ऊर्जावान बने रहते हैं। पाठक ने यह भी साझा किया कि एक उपन्यास लिखने में कभी-कभी सालों का वक्त लग जाता है और यह पूरी तरह से लेखक के दिमाग की उपज होती है।
जासूसी उपन्यास और हिंदी साहित्य में लेखन की चुनौतियां
मौजूदा दौर में जासूसी उपन्यास लिखने को सबसे कठिन काम बताते हुए पाठक ने कहा कि लोगों को लगता है कि जासूसी गल्प लिखना आसान है लेकिन हकीकत इसके उलट है। इसमें हर छोटी-बड़ी बारीकी को सावधानी से कथानक में फिट करना होता है। उन्होंने लेखकों की बौद्धिक संपदा की सुरक्षा पर भी चिंता जताई और बताया कि उनकी शैली की नकल की जा रही है जिसके खिलाफ उन्हें कई बार अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। उन्होंने नवागंतुक लेखकों को सलाह दी कि कामयाबी पाने के लिए मेहनत की सीढ़ी चढ़नी पड़ती है क्योंकि सफलता के लिए कोई लिफ्ट उपलब्ध नहीं है जो सीधे मंजिल तक पहुंचा दे।
पाठकों की पसंद और जासूसी लेखन के प्रति नजरिया
साहित्य की परिभाषा पर बात करते हुए पाठक ने कहा कि इसका फैसला आलोचकों को नहीं बल्कि जनता को करना चाहिए। उन्होंने दुख जताया कि हिंदी साहित्य में जासूसी लेखन को अक्सर छुआछूत का शिकार होना पड़ा है और उन्हें साहित्यकारों की श्रेणी से बाहर रखा गया। उनका मानना है कि जब साइंस फिक्शन या पौराणिक कथाओं को स्वीकार किया जा सकता है तो जासूसी गल्प के साथ भेदभाव क्यों होता है। पाठक के अनुसार वह जनता की अदालत में मिली मोहब्बत से संतुष्ट हैं और उन्होंने कभी भी आलोचकों की परवाह नहीं की क्योंकि अंततः पाठक की स्वीकार्यता ही किसी भी लेखक के लिए सबसे बड़ा पैमाना होती है।


