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नियति का फेर और ‘बैंडिट क्वीन’ का रोल: सौरभ शुक्ला को यूं मिला हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक

नियति का फेर और 'बैंडिट क्वीन' का रोल: सौरभ शुक्ला को मिला फिल्मों में पहला ब्रेक!

Last Updated on September 25, 2025 4:29 PM by गो गोरखपुर ब्यूरो

हम सबने एक्टर सौरभ शुक्ला को ‘जॉली एलएलबी’ सीरीज़ के जज सुंदर लाल त्रिपाठी के किरदार में खूब सराहा है। उनकी अदाकारी और कॉमिक टाइमिंग ने इन फिल्मों को एक अलग ही पहचान दी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि फिल्मों में उनका आना किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है? यह कहानी बताती है कि कैसे नियति ने एक बड़ा अवसर गंवाने के बाद उन्हें दोबारा बॉलीवुड में एंट्री दिलाई।

लंदन का ऑफर, छूटा ‘बैंडिट क्वीन’

एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) की रेपेटरी में दो साल बिताने के बाद, सौरभ शुक्ला को एक बड़ी फिल्म, शेखर कपूर की ‘बैंडिट क्वीन’ के लिए ऑडिशन में चुन लिया गया था। यह किसी भी नए कलाकार के लिए एक ड्रीम ब्रेक था।

लेकिन ठीक उसी समय, उन्हें बीबीसी के एक बड़े प्रोजेक्ट के लिए लंदन जाने का मौका मिला। सौरभ ने एक बड़ा फैसला लिया और ‘बैंडिट क्वीन’ के बजाय लंदन के प्रोजेक्ट को चुना। यह उनकी प्राथमिकता थी।

मगर नियति का खेल कुछ और ही था। कुछ ही समय बाद, उन्हें पता चला कि जिस लंदन प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने इतना बड़ा मौका छोड़ा था, वह कैंसिल हो गया है! अब स्थिति यह थी कि उनके पास न तो लंदन का प्रोजेक्ट था और न ही ‘बैंडिट क्वीन’ का रोल। सौरभ को इस बात का गहरा अफसोस हुआ।

जब शेखर कपूर ने दोबारा दिया मौका

मायूसी के इस दौर में भी सौरभ एनएसडी में नाटकों से जुड़े रहे। एक दिन, वह एक नाटक में सूत्रधार (Narrator) की भूमिका निभा रहे थे, जिसका पहला दृश्य उन्हीं का था। उस नाटक को देखने के लिए शेखर कपूर भी आए थे।

इस बीच शेखर कपूर को यह खबर मिल चुकी थी कि सौरभ का लंदन वाला प्रोजेक्ट रुक गया है। नाटक में सौरभ की दमदार परफॉर्मेंस देखने के बाद, शेखर कपूर ने तुरंत अपने असिस्टेंट तिग्मांशु धूलिया (जो आज खुद एक मशहूर डायरेक्टर हैं) के जरिए सौरभ तक यह संदेश पहुँचाया कि उन्हें ‘बैंडिट क्वीन’ में एक रोल के लिए दोबारा चुन लिया गया है!

यह खबर सुनकर सौरभ शुक्ला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। नियति ने उन्हें एक तरह से दूसरा मौका दिया था। और इस तरह, ‘बैंडिट क्वीन’ के साथ सौरभ शुक्ला के शानदार फिल्मी करियर की शुरुआत हुई।

उनके किरदारों का जादू

बैंडिट क्वीन से लेकर ‘जॉली एलएलबी’ के जज साहब तक, सौरभ शुक्ला ने हर किरदार को अमर कर दिया। वह सिर्फ एक्टिंग नहीं करते, बल्कि उस किरदार को ‘जीते’ हैं।

उनके कुछ फैंस उन्हें दूरदर्शन के जासूसी सीरियल ‘तहकीकात’ के ‘गोपी’ या कुछ तो प्यार से ‘कल्लू मामा’ के नाम से भी जानते हैं। उनकी कला का जादू ऐसा ही है!

यह कहानी सिर्फ एक एक्टर के ब्रेक की नहीं, बल्कि यह बताती है कि कैसे जब आप किसी चीज के लिए बने होते हैं, तो रास्ते भले ही बदल जाएं, मंज़िल आपको ढूंढ ही लेती है।


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शालिनी सहाय

शालिनी सहाय

About Author

शालिनी सहाय ने एमए और बीएड की शिक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की है. इसके अलावा उन्होंने एलएलबी की भी डिग्री प्राप्त की है. कई प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में उनकी कहानियां और आलेख प्रकाशित होते रहे हैं. उन्होंने 'विधि' विषय से जुड़े विभिन्न सेमिनारों में प्रतिभाग किया है. वर्तमान में वह एक एडवोकेट हैं. लेखन कार्य, चित्रकला, संगीत सुनना, किताबें पढ़ना, बागबानी करना इत्यादि उनकी प्रमुख हॉबी हैं.

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