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व्रत-त्योहार

साल में दो बार क्यों पूजा जाता है आंवला, आज भी है आंवले का खास दिन

Amla Ekadashi

Amla Ekadashi

Amla Ekadashi: 20 मार्च को आंवला एकादशी है. यानी इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ को भी खासतौर पूजा जाएगा. तभी ये एकादशी व्रत पूरा माना जाता है, क्योंकि आंवले के पेड़ को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र और पूजनीय माना जाता है.

आयुर्वेद और पुराणों के मुताबिक आंवला अमृत फल और पवित्र माना गया है, इसलिए ऋषियों ने अक्टूबर-नवंबर में आने वाली कार्तिक महीने की नौवीं तिथि पर और फरवरी-मार्च में पड़ने वाली फाल्गुन महीने की एकादशी को आंवले के पेड़ को पूजने का विधान बताया है. परंपरा के मुताबिक इन दोनों ही दिनों में पानी में आंवला मिलाकर नहाते हैं. आंवले के पेड़ को पूजते हैं, इसका दान दिया जाता है और आंवला खाते भी हैं. ग्रंथों में लिखा है कि ऐसा करने से पाप खत्म होकर पुण्य बढ़ते हैं और बीमारियों से मुक्ति मिलने लगती है. अब व्यवहारिक तौर पर समझा जाए तो इन दोनों ही महीनों में मौसम बदलता है, जिससे बीमारियां बढ़ती हैं और उनसे बचने के लिए आंवला खाने की परंपरा बनी.

सबसे पहले बात करते हैं आंवले पर हुई रिसर्च के बारे में, दुनिया के कई बड़े डॉक्टर्स का मानना है कि आंवले में एंटीबैक्टीरियल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होता है. आंवला डाइबिटिज, कैंसर, इनटाइजेशन, आंखे, दिल और दिमाग सहित दर्जनों बीमारियों में कारगर होता है. इसमें इम्यूनो एसिड, एल्केलॉइड्स, विटामिन, सीईए ऑयरन और कैल्शियम होता है. जो सेहतमंद रहने के लिए बेहद जरूरी होते हैं. अब बात करते हैं आयुर्वेद की अथर्ववेद से निकले आयुर्वेद में आंवले का जिक्र अमृत फल के नाम से किया गया है.

वैदिक काल में सबसे पहले च्यवन ऋषि ने आंवले की खासियत बताई थी. चरक संहिता के मुताबिक आंवला खाकर ही च्यवन ऋषि लंबे समय तक जवान बने रहे. आंवले से बनने वाला च्यवनप्राश भी बेहद सेहतमंद होता है जो कई बीमारियों से बचाता है. आयुर्वेद में आंवले के साथ इस पेड़ की छाया और पत्तियों को भी रोगनाशक कहा जाता है.

गो गोरखपुर ब्यूरो

गो गोरखपुर ब्यूरो

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