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गोरखनाथ मंदिर खिचड़ी मेला के पीछे छिपे हैं कई पौराणिक रहस्य और मान्यताएं

गोरखनाथ मंदिर खिचड़ी मेला

गोरखनाथ मंदिर खिचड़ी मेला त्रेतायुगीन परंपराओं को आधुनिक युग के साथ जोड़ता है

गोरखपुर: गुरु गोरक्षनाथ की पावन धरती पर आयोजित होने वाला खिचड़ी मेला (मकर संक्रांति) केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह उत्तर भारत और नेपाल की सांस्कृतिक चेतना का एक जीवंत दस्तावेज है। नाथ संप्रदाय के सर्वोच्च पीठ, गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर लगने वाला यह मेला त्रेतायुगीन परंपराओं को आधुनिक युग के प्रशासनिक नवाचारों के साथ जोड़ता है। इस रिपोर्ट में मैं आपको इस मेले के ऐतिहासिक उद्भव, इसकी धार्मिक विशिष्टताओं, भारत-नेपाल के कूटनीतिक और आध्यात्मिक संबंधों, और हाल के वर्षों में आयोजित गतिविधियों के बारे में विस्तार से बताउंगी।

ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि: त्रेतायुग से वर्तमान तक

खिचड़ी मेले का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसकी जड़ें हिंदू पौराणिक कथाओं के त्रेतायुग में खोजी जा सकती हैं। मान्यता है कि शिव के अवतार गुरु गोरखनाथ ने स्वयं इस परंपरा की नींव रखी थी। इस परंपरा के पीछे की कथा हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित मां ज्वाला देवी के मंदिर से संबंधित है।

गोरखनाथ मंदिर खिचड़ी मेला के पीछे छिपे हैं कई पौराणिक रहस्य और मान्यताएं
मंदिर प्रांगण में वह स्थान जहां प्राचीन काल से जल रही है धूनी. फाइल फोटो

ज्वाला देवी और अक्षय पात्र की कथा

पौराणिक आख्यानों के अनुसार, गुरु गोरखनाथ अपनी यात्रा के दौरान ज्वाला देवी के मंदिर पहुंचे थे। देवी ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया और विविध प्रकार के व्यंजन परोसने का प्रस्ताव रखा। गुरु गोरखनाथ ने एक योगी की मर्यादा का पालन करते हुए केवल भिक्षा में प्राप्त अन्न ही ग्रहण करने की बात कही। उन्होंने देवी से अनुरोध किया कि वे केवल जल गर्म करें, और वे स्वयं भिक्षाटन कर चावल और दाल लेकर आएंगे।

देवी ने जल गर्म करना प्रारंभ किया, लेकिन गुरु गोरखनाथ वहां से प्रस्थान कर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर (तत्कालीन घने जंगलों वाला क्षेत्र) आ गए। वहां राप्ती और रोहिणी नदियों के संगम पर उन्होंने अपना अक्षय भिक्षा पात्र (खप्पर) स्थापित किया और तपस्या में लीन हो गए। मकर संक्रांति का दिन था, और स्थानीय निवासियों ने तेजस्वी योगी को देखकर उनके पात्र में अन्न डालना शुरू किया। चमत्कारिक रूप से, वह अक्षय पात्र कभी नहीं भरा, जिसे देखकर लोग विस्मित रह गए और इसे योगी की सिद्धि का प्रतीक माना गया। तभी से इस स्थान पर खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा अटूट रूप से जारी है, और ज्वाला देवी के मंदिर में वह जल आज भी गुरु गोरखनाथ की प्रतीक्षा में उबल रहा है।

नाथ संप्रदाय और सामाजिक समरसता का दर्शन

गोरखनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का केंद्र रहा है। नाथ संप्रदाय की विशेषता यह रही है कि इसमें जातिगत भेदभाव का कोई स्थान नहीं है। मंदिर के भीतर गैर-ब्राह्मणों को भी पुरोहित के रूप में सेवा करने का अधिकार प्राप्त है, जो मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के समतावादी संदेश को आज भी जीवित रखे हुए है। यह समावेशी प्रकृति खिचड़ी मेले के दौरान पूरी तरह स्पष्ट होती है, जहां समाज के हर वर्ग के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ श्रद्धा अर्पित करते हैं।

गोरखनाथ मंदिर खिचड़ी मेला के पीछे छिपे हैं कई पौराणिक रहस्य और मान्यताएं
खिचड़ी मेला के दौरान मंदिर प्रांगण में स्थित अन्य मंदिरों में भी उमड़ते हैं श्रद्धालु. फाइल फोटो

भारत-नेपाल संबंधों का आध्यात्मिक सेतु

गोरखपुर के खिचड़ी मेले का एक अद्वितीय पहलू इसका अंतरराष्ट्रीय स्वरूप है। यह मेला भारत और नेपाल के बीच के सदियों पुराने “रोटी-बेटी” के संबंधों को आध्यात्मिक धरातल पर पुष्ट करता है।

नेपाल राजपरिवार और गुरु गोरखनाथ

नेपाल के एकीकरण का इतिहास गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। ऐतिहासिक विवरण बताते हैं कि नेपाल के तत्कालीन राजा के राजमहल के समीप ही गुरु गोरखनाथ की गुफा थी। जब राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह ने गुरु के प्रति अपनी अटूट भक्ति प्रदर्शित की, तो गुरु ने उन्हें नेपाल के एकीकरण का वरदान दिया। इसी कारण से, नेपाल के राजपरिवार और वहां के नागरिकों के लिए गुरु गोरखनाथ आराध्य देव हैं।

नेपाल-गोरखपुर धार्मिक संबंध के प्रमुख बिंदुतथ्य
पहली खिचड़ी का अधिकारमंदिर में पीठाधीश्वर के बाद पहली खिचड़ी नेपाल नरेश की ओर से चढ़ाई जाती है।
राजसी उपहारनेपाल राजपरिवार की खिचड़ी में विशेष चावल, दाल और अन्य उपहार शामिल होते हैं।
महारोट प्रसादमंदिर प्रबंधन द्वारा नेपाल राजपरिवार को शुद्ध घी और आटे से बना ‘महारोट’ प्रसाद भेजा जाता है।
गोरखा नाम की उत्पत्तिनेपाल के गोरखा जिले का नाम गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही आधारित माना जाता है।

खिचड़ी यात्रा और परंपरा का पुनरुद्धार (2024-2025)

हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2025 में, नेपाल के गोरखा जिले से गोरखपुर तक की ‘खिचड़ी यात्रा’ को भव्य रूप में पुनर्जीवित किया गया है। लगभग 20 वर्षों के अंतराल के बाद शुरू हुई इस यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक संबंधों को और अधिक सुदृढ़ करना है।

12 जनवरी 2025 को गोरखा (नेपाल) से शुरू हुई इस यात्रा में जन प्रतिनिधियों सहित 60 से अधिक लोग शामिल हुए, जो अपने साथ पवित्र खिचड़ी लेकर गोरखपुर पहुंचे। इस प्रकार की पहल न केवल परंपरा का संरक्षण करती है, बल्कि आधुनिक समय में कूटनीतिक संबंधों को भी एक नई दिशा प्रदान करती है।

गोरखनाथ मंदिर खिचड़ी मेला के पीछे छिपे हैं कई पौराणिक रहस्य और मान्यताएं
गोरखनाथ खिचड़ी मेला परिसर में आयोजक बड़े झूले लगाते हैं जो पर्यटकों को लुभाते हैं. फाइल फोटो

मेले का चक्र: तैयारी से समापन तक की गतिविधियां

खिचड़ी मेला कोई एक या दो दिन का आयोजन नहीं है, बल्कि यह लगभग दो महीने तक चलने वाली एक व्यापक सांस्कृतिक और व्यापारिक गतिविधि है।

पूर्व-आयोजन चरण और प्रशासनिक समय सीमा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो गोरक्षपीठाधीश्वर भी हैं, मेले की तैयारियों की व्यक्तिगत रूप से समीक्षा करते हैं. हाल के वर्षों में, प्रशासनिक कार्यों को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।

तैयारी: कब-क्यानिर्धारित समय सीमाप्रमुख गतिविधि
तैयारियों की पूर्णता20 दिसंबर (प्रतिवर्ष)सभी बुनियादी सुविधाओं, सड़कों और सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण.
झूलों का परीक्षण (Trial Run)दिसंबर का अंतिम सप्ताहसुरक्षा मानकों की जांच और झूलों का औपचारिक संचालन शुरू करना.
औपचारिक उद्घाटन14/15 जनवरी (मकर संक्रांति)गोरक्षपीठाधीश्वर द्वारा प्रथम खिचड़ी अर्पण.
मेला समापनमहाशिवरात्रि (फरवरी/मार्च)मेले की व्यापारिक गतिविधियों का औपचारिक अंत.

मकर संक्रांति: मुख्य उत्सव और अनुष्ठान

मेले का चरमोत्कर्ष मकर संक्रांति के दिन होता है, जब सूर्य उत्तरायण होते हैं. इस दिन की शुरुआत भोर के अत्यंत पवित्र अनुष्ठानों से होती है।

  • भोर की आरती और प्रथम अर्पण: सुबह 3:00 बजे मंदिर में विशेष मंगल आरती होती है। इसके पश्चात पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ प्रथम खिचड़ी अर्पित करते हैं, जिसके बाद नेपाल नरेश की खिचड़ी चढ़ाई जाती है।
  • भीम सरोवर स्नान: श्रद्धालु भोर की ठंड में भी मंदिर परिसर के ऐतिहासिक भीम सरोवर में स्नान करते हैं, जिसके बारे में मान्यता है कि यह पांडु पुत्र भीम के प्रभाव से निर्मित हुआ था।
  • जन-सामान्य का दर्शन: सुबह 4:00 बजे के बाद मंदिर के कपाट आम जनता के लिए खोल दिए जाते हैं। 2025 में लगभग 15 लाख श्रद्धालुओं ने इस दिन दर्शन किए।

दैनिक कार्यक्रम और एआरती अनुसूची

मेले के दौरान मंदिर की आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखने के लिए विशेष आरती का आयोजन किया जाता है, जिसका समय मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्धारित है:

  • मंगल आरती: प्रातः 3:00 से 4:00 बजे।
  • भोग आरती: मध्याह्न 11:00 बजे।
  • संध्या आरती: सायंकाल 6:00 से 8:00 बजे।

आर्थिक और व्यावसायिक आयाम: टेराकोटा से आधुनिक व्यापार तक

खिचड़ी मेला पूर्वांचल का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र बन जाता है। एक महीने से अधिक चलने वाले इस मेले में अरबों रुपये का कारोबार होता है, जो स्थानीय और बाहरी व्यापारियों के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत है.

ओडीओपी और हस्तशिल्प प्रदर्शनी

उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जनपद एक उत्पाद’ (ODOP) योजना के तहत मेले में विभिन्न जिलों के विशिष्ट उत्पादों को प्रदर्शित किया जाता है। इससे स्थानीय कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का मंच प्राप्त होता है।

  • गोरखपुर का टेराकोटा: स्थानीय हस्तशिल्प की पहचान, जिसे मेले में विशेष स्थान दिया जाता है।
  • सहारनपुर और मुरादाबाद के उत्पाद: लकड़ी के नकाशीदार सामान और पीतल के बर्तनों के विशाल स्टॉल।
  • अन्य क्षेत्रों का योगदान: चित्रकूट के लकड़ी के खिलौने, भदोही के कालीन और बनारसी साड़ियां मेले के व्यावसायिक आकर्षण को बढ़ाती हैं।

2025 के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, मकर संक्रांति के मुख्य पर्व के आसपास एक ही दिन में मेले में लगभग 45 करोड़ रुपये की बिक्री दर्ज की गई। मेले में लगभग 1000 से अधिक दुकानें लगाई जाती हैं, जिनमें अल्पसंख्यक समुदाय के व्यापारियों की भी बड़ी भागीदारी होती है, जो दशकों से इस मेले का हिस्सा रहे हैं।

मनोरंजन और खान-पान

मेला आधुनिक मनोरंजन का भी केंद्र है। बच्चों और युवाओं के लिए रेंजर, कोलंबस, जाइंट व्हील और ‘मौत का कुआं’ जैसे झूले और करतब मुख्य आकर्षण होते हैं। खान-पान की बात करें तो कानपुर का प्रसिद्ध ‘खजला’ और स्थानीय पूर्वांचली व्यंजन मेले की रौनक बढ़ाते हैं।

यह भी देखें…मकर संक्रांति: 16 से शुरू हो जाएंगे मांगलिक कार्य

आधुनिक प्रशासनिक नवाचार और ‘जीरो वेस्ट’ पहल

हाल के वर्षों में खिचड़ी मेले के आयोजन को “स्मार्ट” और “ग्रीन” बनाने पर विशेष बल दिया गया है। मुख्यमंत्री के कड़े निर्देशों के कारण प्रशासन ने कई ऐतिहासिक सुधार लागू किए हैं।

स्वच्छता और पर्यावरण प्रबंधन

2024 और 2025 में मेले को ‘जीरो वेस्ट इवेंट’ बनाने का संकल्प लिया गया है. इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:

  • अपशिष्ट प्रबंधन: 213 से अधिक सफाई कर्मियों की निरंतर तैनाती और कूड़े के उठाव के लिए जीपीएस-आधारित वाहनों का उपयोग।
  • प्लास्टिक-मुक्त अभियान: मेले में सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के उपयोग पर कड़ा प्रतिबंध और श्रद्धालुओं को जागरूक करने के लिए एलइडी स्क्रीन का उपयोग।
  • स्वच्छ सर्वेक्षण जागरूकता: मेले को स्वच्छ सर्वेक्षण-2024 और 2025 के प्रचार के केंद्र के रूप में उपयोग करना।

सुरक्षा और तकनीक का समन्वय

लाखों की भीड़ को प्रबंधित करने के लिए एक हाई-टेक सुरक्षा ढांचा तैयार किया गया है।

  • निगरानी तंत्र: एकीकृत कंट्रोल रूम के माध्यम से सीसीटीवी और ड्रोन द्वारा हर गतिविधि पर पैनी नजर रखी जाती है।
  • भीड़ नियंत्रण: एनसीसी, सिविल डिफेंस और स्वयंसेवकों की सहायता से कतारों का प्रबंधन। महिलाओं के लिए अलग सुरक्षा दस्ते और विशेष हेल्प डेस्क की स्थापना की गई है।
  • यातायात प्रबंधन: मेले के दौरान ‘नो व्हीकल जोन’ का कड़ाई से पालन और भीड़ के अनुसार समय-समय पर रूट डायवर्जन।

श्रद्धालु सुविधाएं और परिवहन

प्रशासन यह सुनिश्चित करता है कि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो:

  • मेला स्पेशल ट्रेनें और बसें: रेलवे द्वारा विभिन्न प्रमुख शहरों से विशेष ट्रेनें चलाई जाती हैं। साथ ही, गोरखपुर शहर के भीतर इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जाता है ताकि प्रदूषण कम हो।
  • स्वास्थ्य सेवाएं: मंदिर परिसर में ‘हेल्थ एटीएम’ और 24 घंटे कार्यरत डॉक्टरों की टीम तैनात रहती है। 21 से अधिक नजदीकी अस्पतालों को आपातकालीन स्थिति के लिए हाई अलर्ट पर रखा जाता है।
  • रैन बसेरे और अलाव: कड़ाके की ठंड को देखते हुए पर्याप्त रैन बसेरों की व्यवस्था की जाती है और वन विभाग के सहयोग से जगह-जगह अलाव जलाए जाते हैं।

सांस्कृतिक संरक्षण: गोरखपुर महोत्सव

खिचड़ी मेले के साथ-साथ ‘गोरखपुर महोत्सव’ का आयोजन मेले के सांस्कृतिक आयाम को विस्तार प्रदान करता है। आमतौर पर 11 से 13 जनवरी के बीच आयोजित होने वाले इस महोत्सव में स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के कलाकार भाग लेते हैं।

  • कलाकारों को मंच: पारंपरिक वाद्य यंत्रों, लोक गीतों और नृत्य कलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए स्थानीय कलाकारों को विशेष अवसर दिया जाता है।
  • विविध प्रतियोगिताएं: बच्चों के लिए शैक्षणिक और सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं, और महिलाओं के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
  • प्रदर्शनी: कृषि, विज्ञान और शिल्प पर आधारित भव्य प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं, जो ज्ञान और मनोरंजन का संगम होती हैं।

सामाजिक सद्भाव और मानवीय पहलू

गोरखनाथ मंदिर का खिचड़ी मेला भारत की “गंगा-जमुनी तहजीब” का एक अनूठा उदाहरण है। यहाँ आस्था मजहब की दीवारों को नहीं मानती।

  • मुस्लिम भागीदारी: मेले की लगभग 30 से 40 प्रतिशत दुकानें मुस्लिम समुदाय के लोग लगाते हैं। इनमें से कई परिवार पिछली चार पीढ़ियों से इस मेले का हिस्सा रहे हैं। वे न केवल व्यापार करते हैं, बल्कि गुरु गोरखनाथ के प्रति अपनी श्रद्धा भी व्यक्त करते हैं।
  • अन्न वितरण: श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाया गया हजारों क्विंटल अन्न मंदिर के भंडार में सुरक्षित किया जाता है। इस अन्न का उपयोग वर्षभर संस्कृत विद्यालय के छात्रों, साधुओं, भिक्षुओं और जरूरतमंदों के भोजन के लिए किया जाता है। मंदिर का ‘अन्न क्षेत्र’ सामाजिक सुरक्षा का एक प्राचीन लेकिन प्रभावी मॉडल है।

मानवता को एकता, सेवा और भक्ति का शाश्वत संदेश

गोरखपुर का खिचड़ी मेला सदियों पुरानी आध्यात्मिक विरासत और समकालीन प्रशासनिक उत्कृष्टता का एक दुर्लभ मेल है। जहाँ इसके ऐतिहासिक मूल त्रेतायुग की पौराणिक कथाओं में निहित हैं, वहीं इसका आधुनिक स्वरूप उत्तर प्रदेश के विकास और आधुनिकता की नई गाथा लिख रहा है। यह मेला न केवल भारत और नेपाल के संबंधों को नई ऊर्जा प्रदान करता है, बल्कि सामाजिक समरसता, व्यापार और नवाचार के संगम के रूप में पूरे विश्व के लिए एक मिसाल पेश करता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ‘जीरो वेस्ट’ और ‘हाई-टेक सुरक्षा’ जैसे उपायों ने इस मेले को 21वीं सदी के एक आदर्श सांस्कृतिक आयोजन में परिवर्तित कर दिया है। प्रतिवर्ष उमड़ने वाला लाखों का जनसैलाब इस बात का प्रमाण है कि गुरु गोरखनाथ की यह पावन भूमि आज भी मानवता को एकता, सेवा और भक्ति का शाश्वत संदेश दे रही है।


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Neelam Jagdish

Neelam Jagdish

About Author

गोरखपुर विश्वविद्यालय से परास्नातक. विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में दर्जनों आलेख प्रकाशित. सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन.

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