राजनीति भी क्या बला है! यहां संवेदनाएं भी ‘लग्ज़री’ गाड़ी में बैठकर आती हैं. हमारे एक ‘ग्लोबल नेताजी’ यूपी में एक पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे. उद्देश्य पवित्र था— पीड़ित के आंसू पोंछना, अपराधियों के खिलाफ ज़ोरदार आवाज़ उठाना और यह दिखाना कि ‘देख लो, हम तुम्हारे साथ हैं!’
मगर हाए, ज़माने की नज़र! नेताजी तो पहुंचे एक दम सफेद इनोवा में. सबको लगा, होगा किसी ‘पवित्र’ कार्यकर्ता की कार! लेकिन जब मीडिया के खोजी कुत्ते गाड़ी नंबर सूंघते-सूंघते आरटीओ (RTO) की चौखट पर पहुंचे, तो माजरा कुछ और ही निकला. यह ‘सफेद घोड़ा’ तो किसी ‘मटमैला नेताजी’ का निकला! जी नहीं, कोई छुटभैया कार्यकर्ता नहीं, बल्कि एक पुराने बहुजन नेता की हत्या के सुपारी-काण्ड के आरोपी का निकला!
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लो कर लो बात! एक नेताजी संवेदना व्यक्त करने जाते हैं, और वह भी एक दूसरे नेताजी की हत्या के आरोपी की गाड़ी में! भला यह क्या बात हुई?
इस पर हमारे ‘लोकल नेताजी’, जो पीड़ित परिवार के कानूनी पैरोकार भी थे, ने जो ‘सफाई’ दी है, वह राजनीति के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखी जानी चाहिए. उन्होंने फरमाया, “हमने तो बस क्षेत्रीय ट्रेवल्स से तीन गाड़ियां बुक करवाई थीं. अब मुझे क्या पता कि ट्रेवल्स वाले नेताजी की सेवा में किसी हत्यारोपी को लगा देंगे? यह कैसी व्यवस्था है?”
वाह रे ‘ट्रेवल्स’ की कलाकारी! क्या अब ट्रेवल्स एजेंसी वाले भी नेताजी की यात्रा को ‘थ्रिलर’ बनाने लगे हैं?
जरा सोचिए, हमारे ‘लोकल नेताजी’ यानी संदीप शुक्ला एक तरफ तो हत्या काण्ड के पीड़ित पक्ष के लिए अदालत में खड़े होते हैं, और दूसरी तरफ उसी हत्या के आरोपी की लग्जरी गाड़ी में ‘ग्लोबल नेताजी’ का स्वागत करते हैं! क्या ट्रेवल्स एजेंसी के पास गाड़ियां कम पड़ गई थीं, या यह दिखाने का प्रयास था कि ‘राजनीति में सब चलता है, कल का दुश्मन आज का ‘ट्रेवल्स’ दोस्त बन सकता है!’
अब ‘ग्लोबल नेताजी’ का किस्सा देखिए! वह वहां पहुंचते हैं, परिवार को ढाढस बंधाते हैं और मीडिया से कहते हैं, “देखिए, सरकार ने परिवार को धमकी दी! जबरन वीडियो बनवाया! इन्हें मुझसे मिलने से रोका जा रहा था!”
ठीक उसी वक्त पीड़ित का भाई कैमरे पर आता है और कहता है: “हमें ‘ग्लोबल नेताजी’ से नहीं मिलना. हम सरकार से संतुष्ट हैं! यह सब राजनीति है.”
क्या सीन है! एक तरफ पीड़ित की मां ‘ग्लोबल नेताजी’ के पैरों पर गिरकर न्याय मांगती हैं, और दूसरी तरफ पीड़ित का भाई कहता है, “माफी दो, हमें ये राजनीतिक ड्रामा नहीं चाहिए!”
अरे, ‘ग्लोबल नेताजी’! जब आप एक आरोपी की गाड़ी में बैठकर संवेदना व्यक्त करने जाएंगे, तो आपकी ‘सहानुभूति’ पर तो सवाल उठेंगे ही न! ‘राजनीति चमकाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं’ – यह तो इसका सीधा-साधा उदाहरण है.
यह कैसी राजनीति है, जहां पीड़ित का पक्षकार हत्या के आरोपी की गाड़ी में अपने सर्वोच्च नेता को बैठाकर ‘न्याय’ दिलाने जाता है?
शायद ‘ट्रेवल्स’ वालों ने यह गाड़ी इसलिए भेजी होगी कि नेताजी को यह अहसास हो जाए कि ‘विरोधियों’ की भी ‘गाड़ी’ कितनी तेज़ भागती है! और हां, ‘लोकल नेताजी’, आप ‘ट्रेवल्स’ वाले से ज़रूर बात कीजिएगा. शायद वह बता दे कि ‘हत्यारे’ की गाड़ी ‘सेवा’ में कैसे लग गई! और अगर ‘ट्रेवल्स’ वाला सच न बताए, तो समझ लेना कि राजनीति में ‘सफाई’ देने का खेल शुरू हो चुका है!
पर्दे के पीछे की कहानी: ‘ग्लोबल नेताजी’ के लिए ‘प्योर व्हाइट’ कार की मांग की गई थी, मगर ‘ट्रेवल्स’ वाले ने ‘हत्यारोपी’ की कार भेजकर बता दिया कि राजनीति का ‘रंग’ हमेशा मटमैला ही होता है!