गोरखपुर: चंडीगढ़ से आईं प्रसिद्ध कवि, शोधकर्ता और खोजी इतिहासकार डॉ. राजवन्ती मान को आज गोरखपुर में वर्ष 2025 के प्रतिष्ठित ‘आयाम’ सम्मान से नवाज़ा गया। एमएसआई इंटर कॉलेज के पुस्तकालय भवन में आयोजित इस गरिमामयी समारोह में डॉ. मान के उत्कृष्ट साहित्यिक और शोध कार्यों को सम्मानित किया गया। उनकी खोज का मुख्य केंद्र बिंदु स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिखे गए और फिर ज़ब्त कर लिए गए गुमनाम साहित्य पर रहा है, जिसने न केवल साहित्य बल्कि इतिहास के दायरे को भी महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाया है। समारोह में कई साहित्यकारों और गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति दर्ज की गई।
‘आयाम’ सम्मान 2025 से सम्मानित डॉ. राजवन्ती मान
डॉ. राजवन्ती मान आयाम सम्मान 2025 गोरखपुर में नवाज़ी गईं, जिन्होंने अपनी कविता की पंक्तियों— “हाँ या ना के बीच/एक गहरा स्लेटी सागर होता है/जिसे पार करने में/बार बार डूबना उतराना होता है/एक शब्द से परे वह/एक कहानी का आरम्भ या अंत होता है ” — से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। आयाम के संयोजक देवेंद्र आर्य ने डॉ. राजवन्ती मान का सम्मान करते हुए कहा कि उनके गोरखपुर आगमन से ‘आयाम’ के साथ-साथ शहर का मान भी बढ़ा है। डॉ. मान ने इस अवसर पर इतिहास और साहित्य लेखन के अपने उद्देश्य और अनुभवों को विस्तार से साझा किया और अपनी चुनिंदा कविताओं का पाठ भी किया।
स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम साहित्य की खोज
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. चंद्रभूषण अंकुर ने डॉ. मान के शोध कार्य की सराहना की। उन्होंने कहा कि डॉ. मान ने अपनी लगन और परिश्रम से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिखे, मगर ज़ब्त कर लिए गए, गुमनाम साहित्य की खोज करके न केवल साहित्य बल्कि इतिहास का दायरा भी बड़ा किया है। यह खोज कार्य गुमनाम शहीदों और लेखकों को इतिहास में उनका सही स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
समारोह में गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति
इस प्रतिष्ठित गोरखपुर साहित्य समारोह में कई साहित्यकार, शोधकर्ता और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन अजय कुमार सिंह ने किया। समारोह में डॉ. गौर हरि बेहरा, डॉ. वेदप्रकाश पाण्डेय, रंजना जायसवाल, प्रदीप सुविज्ञ, डॉ. भारत भूषण, अशोक चौधरी, राजाराम चौधरी, आई.एच. सिद्दीकी, सुभाष चौधरी, धर्मेन्द्र त्रिपाठी, डॉ. फूल चन्द्र गुप्त, जगदीश लाल श्रीवास्तव, रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी और रवीश जी की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही।