Last Updated on September 24, 2025 12:54 PM by गो गोरखपुर ब्यूरो
आजम खान की जेल से रिहाई के बाद उनके बसपा में जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। क्या आजम खान छोड़ेंगे अखिलेश का साथ? जानिए, सपा को कितना नुकसान होगा, क्या है भाजपा का गणित और बसपा को क्या फायदा होगा?
लखनऊ: समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान रिहा हो गए हैं। उनकी रिहाई के साथ ही उनके भविष्य की राजनीतिक दिशा को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। कुछ मीडियाकर्मियों द्वारा जब उनसे बसपा में जाने की संभावना के बारे में पूछा गया तो उनके गोलमोल जवाब ने इन अटकलों को और हवा दे दी। उन्होंने कहा कि “हम कोई बड़े नेता नहीं हैं। अगर बड़े नेता होते तो बड़ा नेता लेने आता।” आजम के इस बयान के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या वह वाकई अखिलेश यादव का साथ छोड़ देंगे और अगर ऐसा होता है तो इसका सपा और अखिलेश के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर क्या असर पड़ेगा। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि उनकी रिहाई के पीछे भाजपा का कोई सियासी गणित तो नहीं है, जिसका मकसद 2027 के चुनाव में सपा के वोट बैंक में सेंध लगाना है।
आज़म खान के बसपा में जाने की अटकलें क्यों?
आजम खान की रिहाई के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो सकते हैं। इन अटकलों की कई वजहें बताई जा रही हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन को 43.52% वोट मिले थे, जबकि बसपा का वोट प्रतिशत 10 से भी नीचे चला गया था। ऐसा माना जा रहा है कि अगर आजम खान बसपा में शामिल होते हैं, तो बसपा का मुस्लिम वोट बैंक मजबूत हो सकता है, जिससे पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ेगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आजम खान की पत्नी तंजीन फातिमा की मुलाकात मायावती से हो चुकी है। दावा यह भी है कि 9 अक्टूबर को लखनऊ में होने वाली बसपा की बड़ी रैली में आजम खान पार्टी का दामन थाम सकते हैं। हालांकि, अभी तक मायावती और आजम के करीबियों ने इस खबर का खंडन किया है।
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आजम खान सपा क्यों छोड़ सकते हैं?
आजम खान के करीबियों का मानना है कि सपा ने मुश्किल वक्त में उनका वैसा साथ नहीं दिया, जैसा देना चाहिए था। आजम की दोनों बार की गिरफ्तारी के दौरान सपा खुलकर सड़क पर नहीं उतरी। इसके अलावा, संभल मामले में भी सपा जियाउर्रहमान बर्क के साथ खड़ी नजर आई। आजम की नाराजगी का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके विरोधी मोहिबुल्ला नदवी को रामपुर से टिकट दिया गया था, जबकि आजम चाहते थे कि अखिलेश खुद इस सीट से चुनाव लड़ें। हालांकि, सपा ने मुरादाबाद से आजम की ही पैरवी पर रुचि वीरा को टिकट दिया, जो सांसद बन गईं।
सपा को क्या नुकसान होगा?
अगर आजम खान सपा छोड़ते हैं, तो निश्चित रूप से इसका बड़ा नुकसान सपा को उठाना पड़ सकता है। आजम की रिहाई के बाद शिवपाल यादव और अन्य सपा नेताओं के बयानों से उनकी अहमियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। अखिलेश यादव ने तो यहां तक कहा कि सपा सरकार आने पर आजम पर चल रहे सभी केस वापस लिए जाएंगे। अखिलेश आम तौर पर मुस्लिम मुद्दों पर खुलकर बोलने से बचते रहे हैं, जिसका फायदा असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता उठाते हैं। अगर आजम भी इसी तरह की बयानबाजी शुरू करते हैं तो इसका सीधा नुकसान सपा को होगा।
आजम खान के लिए बसपा ही क्यों?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आजम की रिहाई के पीछे भाजपा के साथ कोई ‘डील’ हो सकती है, जिसका मकसद समाजवादी पार्टी को कमजोर करना है। यह तभी संभव होगा जब वह बसपा में शामिल हों। अगर बसपा आजम को साथ लेकर 2027 का चुनाव लड़ती है, तो उसे मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिल सकता है, जिससे सपा का वोट बैंक कमजोर होगा। इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक नया सियासी समीकरण उभर सकता है।
बसपा को क्या फायदा होगा?
आजम खान के आने से बसपा का मुस्लिम वोट बैंक वापस लौट सकता है। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, जहां 2000 के दशक में बसपा का जनाधार मजबूत था, आजम खान की वापसी पार्टी की खोई हुई साख वापस दिला सकती है। बसपा से लगातार मुस्लिम वोट बैंक दूर होता जा रहा है।
आज़म खान की रिहाई: क्या सरकार की लचर पैरवी थी वजह?
आजम खान को अचानक एक के बाद एक कई मामलों में जमानत मिल गई, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार के वकीलों ने जानबूझकर लचर पैरवी की। आजम की रिहाई रोकने के लिए पर्याप्त आधार थे, खासकर जब शत्रु संपत्ति के मामले में गैर-जमानती धाराएं बढ़ाई गईं। पुलिस ने इन धाराओं के तहत वारंट नहीं लिया, जिससे उनकी रिहाई संभव हो सकी। आजम पर कुल 104 मुकदमे दर्ज हैं। उनके वकीलों का दावा है कि ये मुकदमे राजनीतिक प्रतिशोध के चलते दर्ज किए गए थे।