सरदार बलवीर सिंह को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया. |
Partition of India tragedy: ”उस वक्त मेरी उम्र 8 साल थी. मेरा परिवार पाकिस्तान के रावलपिंडी में रहता था. भारत का बंटवारा हुआ तो नए देश पाकिस्तान में हिंसा शुरू हो गई. ढूंढ-ढूंढकर लोगों को मारा जाने लगा. मेरे पिता सरदार भूपेंद्र सिंह समेत कुल-खानदान के करीब 25 लोगों की हत्या हो गई. मेरे दादाजी, परिवार के बचे हुए सदस्यों के साथ किसी तरह जान बचाकर भारत पहुंचे. परिवार यहां खानाबदोश था. इस शहर से उस शहर भटक रहा था. हम लोग देवबंद, कानपुर होते हुए गोरखपुर पहुंचे और यहीं स्थायी ठिकाना बना लिया.” देश विभाजन की त्रासदी झेलने वाले सरदार बलवीर सिंह ने जब यह आपबीती सुनाई तो हॉल में मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गईं.
शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणी उद्यान एवं हेरिटेज फाउंडेशन की ओर से बुधवार को पांच दिवसीय प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया, जिसकी थीम ‘विभाजन की विभीषिका’ है. सरदार बलवीर सिंह ने इस प्रदर्शनी के उद्घाटन के बाद आयोजित संवाद में आपबीती सुनाई. उन्होंने बताया कि 1947 में जब उनका परिवार रावलपिंडी से कानपुर पहुंचा तो परिवार वहीं ठहर गया. जहां वे ठहरे थे, वहां उनकी मां ने आसपास के किसी परिवार से बर्तन मांगकर खाना बनाया. अभी किसी ने खाना खाया भी नहीं था कि वह महिला अपने बर्तन मांगने आ गई. मां के पास खाना रखने के लिए कोई बर्तन नहीं था. तब उनकी मां ने फर्श पर ही सारा खाना पलट दिया. परिवार के लोगों ने फर्श पर भोजन किया.
शहर के बॉबीना रोड के रहने वाले सरदार बलवीर सिंह ने बताया कि उनकी मां ने गोरखपुर में मशीन से सिलाई सिखाने का पहला सेंटर खोला था. परिवार के पुरुष सदस्यों ने बेयरिंग, हल और पुल्ली बनाने का काम शुरू किया. उन्होंने बताया कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने ट्रैक्टर में लगने वाला बेयरिंग खरीदने के लिए किसी को उनकी दुकान पर भेजा. उन्होंने 14 रुपये में बेयरिंग दिया तो कीमत जानकर बड़े महराज ने मंदिर बुलवा लिया. पूछा कि बेयरिंग चोरी की तो नहीं है, क्योंकि इसे हम 25 रुपये में खरीदते हैं? बलवीर सिंह ने महंत दिग्विजयनाथ को बताया कि बेयरिंग 12 रुपये में मिलता है. एक रुपये मुनाफा और एक रुपये खर्च जोड़कर 14 रुपये में बिक्री करते हैं. इस पर महंत दिग्विजयनाथ जी उन्हें आजमाने के लिए 25 बेयरिंग लाने को कहा. बलवीर ने अगले दिन ही उन्हें 25 बेयरिंग उपलब्ध करा दिए. इस बात से बड़े महाराज काफी खुश हुए. उन्होंने कहा कि ऐसे ही ईमानदारी से काम करो. सरदार बलवीर सिंह ने बताया कि एक वक्त आया जब उन्हें जमीन खरीदने के लिए 10 हजार रुपये चाहिए थे. पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए हम अपने अभिभावक तुल्य बड़े महाराज जी के पास गए. उन्होंने तुरंत 10 हजार रुपये दे दिए. इस रकम के बदले उन्होंने मंदिर के सभी घंटों की मरम्मत का काम दे दिया था.