Gorakhpur: स्वादिष्ट खान-पान के लिए जाने जाने वाले गोरखपुर शहर में मीठे जहर का कारोबार लंबे अरसे से चल रहा था। लाल डिग्गी इलाके में मिलावटी मिठाई का कारखाना पिछले आठ सालों से चल रहा था, जहां पुरानी और खराब मिठाई को नए रूप में पेश किया जा रहा था। होली के लिए यहां पर यह मीठा जहर बड़ी मात्रा में तैयार किया गया था, जिसे आसपास के जिलों में भेजने की तैयारी थी। खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम ने शनिवार को फैक्ट्री पर छापा मारा तो आंखें खुली रह गईं। टीम ने फैक्ट्री का लाइसेंस रद करके उस पर ताला लगा दिया है।
दिल्ली से सीखा ‘मिलावट का खेल
इस धंधे की शुरुआत एक ऐसे व्यक्ति ने की, जिसने दिल्ली में पुरानी मिठाई को नया बनाने की ‘कला’ सीखी। यह ‘कला’ कोई रचनात्मकता नहीं, बल्कि मिलावट का खेल था। उसने यहां आकर एक छोटा सा कारखाना खोला, जहां सस्ते और घटिया कच्चे माल का इस्तेमाल करके मिठाई बनाई जाने लगी।
कैसे फैला ‘मीठे ज़हर’ का जाल?
गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों में सस्ती मिठाई की भारी मांग है। इस मांग को पूरा करने के लिए, मिलावटखोरों ने घटिया मिठाई को कम कीमत पर बेचना शुरू किया। कुछ स्थानीय व्यापारियों और दुकानदारों ने भी इस धंधे को बढ़ावा दिया, जिससे मिलावटखोरों का हौसला बढ़ा। कारखाने में काम करने वाले मजदूरों को भी मिलावट की तकनीक सिखाई गई, जिससे वे भी इस धंधे में शामिल हो गए। गोरखपुर में सफलता मिलने के बाद, मिलावटखोरों ने देवरिया और कुशीनगर जैसे पड़ोसी जिलों में भी अपनी फैक्ट्रियां खोल लीं, जिससे ‘मीठे ज़हर’ का जाल और भी फैल गया।
यह था मिलावट का ‘अर्थशास्त्र’
कम लागत, अधिक मुनाफा: मिलावटखोर सस्ते और घटिया कच्चे माल का उपयोग करके मिठाई बनाते थे, जिससे उनकी लागत कम हो जाती थी। मिठाई को ताज़ा दिखाने के लिए उस पर एल्युमीनियम की एक पतली परत चढ़ाई जाती थी, जिससे वह लंबे समय तक खराब नहीं दिखती थी। सड़े और खराब शीरे का उपयोग करके टॉफी बनाई जाती थी, जिससे लागत और भी कम हो जाती थी। थोक में 45 रुपये प्रति किलो की दर से बेची जाने वाली मिठाई खुदरा में 120 रुपये प्रति किलो तक बिकती थी, जिससे मिलावटखोरों को भारी मुनाफा होता था।
सहायक आयुक्त खाद्य सुरक्षा के अनुसार, फैक्ट्री का लाइसेंस कैंसिल करके सारा माल जब्त कर लिया गया है। नमूने जांच के लिए भेजे गए हैं। रिपोर्ट आने पर विधिक कार्रवाई की जाएगी।