शहरनामा

उर्दू अदब के वर्ड्सवर्थ: फ़िराक साहब की जयंती पर आइए चलते हैं उनके गांव

उर्दू अदब के वर्ड्सवर्थ: फ़िराक साहब की जयंती पर आइए चलते हैं उनके गांव
उर्दू अदब के वर्ड्सवर्थ: फ़िराक साहब की जयंती पर आइए चलते हैं उनके गांव
फ़िराक़ गोरखपुरी का बनवारपार स्थित पैतृक मकान

 

Birth anniversary of Firaq Gorakhpuri : हिंदुस्तान के जिस शायर की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान ‘उर्दू का वर्ड्सवर्थ’ के रूप में है, आज उस शायर की जयंती है. अदबी गोष्ठियों में आज उन्हें याद किया जाएगा। उनका इक शेर भी हर साल की तरह इस साल भी खूब पढ़ा जाएगा –

आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
उन्हें ध्यान जब आएगा तुम ने ‘फ़िराक़’ को देखा है.

लेकिन वही फ़िराक़ अपने घर, अपने आंगन में भुला दिए गए हैं. उनका गांव जिले की गोला तहसील में स्थित बनवारपार है. यहीं फ़िराक़ का जन्म हुआ था. गांव की आज की पीढ़ी, फ़िराक़ के उस कद से वाकिफ़ नहीं जिसके लिए उन्हें याद किया जाता है. रघुपति सहाय ‘फिराक गोरखपुरी’ 28 अगस्त 1896 को गांव के जिस घर में जन्मे वह अकेला, वीरान, उपेक्षित है…लोगों के जेहन में फ़िराक़ की यादों की तरह.

 

उर्दू अदब के वर्ड्सवर्थ: फ़िराक साहब की जयंती पर आइए चलते हैं उनके गांव
नई पीढ़ी को फ़िराक़ का परिचय देता शिलापट्ट
सरकार, प्रशासन भले ही फ़िराक़ को भूल जाएं लेकिन उनका पैतृक गांव बनवारपार उनकी स्मृतियों को संजोए है. यहां फ़िराक़ के नाम पर एक लाइब्रेरी है जो ‘आने वाली नस्लों’ को शिक्षा की रोशनी देने के मकसद से खड़ी है. गांव के लोगों का दर्द यह है की अपने पुरखे की स्मृति को संजोने के लिए उनके पास संसाधन नहीं हैं.

उर्दू अदब के वर्ड्सवर्थ: फ़िराक साहब की जयंती पर आइए चलते हैं उनके गांव
गांव में स्थापित लाइब्रेरी 
फ़िराक़ के इस पैतृक गांव में उनकी आखिरी निशानी बस उनका खपरैल का मकान है. इस मकान की उम्र सौ साल से अधिक बताई गई है. यह अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है. गांव में लगी फिराक साहब की एक प्रतिमा के सहारे हर साल यहां जयंती और पुण्यतिथि मनाने की औपचारिकता होती है. उनकी स्मृतियों को सहेजने का आश्वासन तो कई बार दिया गया लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं हुआ. यहां फ़िराक़ की स्मृतियों की उपेक्षा देखकर दुःख होता है.
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गांव में स्थापित फ़िराक की प्रतिमा 
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