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शहरनामा

कौन थे अंग्रेज अधिकारी डब्ल्यू.सी. पेपे, जिनके नाम पर बसा पीपीगंज?

पीपीगंज रेलवे स्टेशन. फाइल फोटो

पीपीगंज का इतिहास: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित एक छोटा सा कस्बा पीपीगंज (peppeganj)। जब हम इस नाम को सुनते हैं, तो अक्सर मन में सवाल उठता है कि आखिर इसके पीछे की कहानी क्या है? बहुत कम लोग जानते हैं कि इस कस्बे का नाम एक ब्रिटिश इंजीनियर और पुरातत्व-उत्साही विलियम क्लैक्सटन पेपे (William Claxton Peppe) के नाम पर रखा गया है। पेपे, जो 19वीं सदी के अंत में भारत में ब्रिटिश रेलवे में कार्यरत थे, सिर्फ एक इंजीनियर नहीं थे, बल्कि उन्हें पुरातत्व में गहरी रुचि थी। उनकी सबसे महत्वपूर्ण खोज ने बौद्ध धर्म के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।

एक इंजीनियर की अनोखी खोज: पिपरहवा स्तूप

डब्ल्यू.सी. पेपे मुख्य रूप से 1897-98 में पिपरहवा स्तूप की खोज और खुदाई के लिए जाने जाते हैं, जो वर्तमान उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित है। यह स्तूप बौद्ध धर्म के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। एक रेलवे इंजीनियर के रूप में अपने काम के दौरान, पेपे को स्थानीय ऐतिहासिक स्थलों और प्राचीन संरचनाओं में गहरी दिलचस्पी पैदा हुई। इसी रुचि ने उन्हें पिपरहवा के एक प्राचीन टीले की ओर खींचा, जिसे लेकर स्थानीय किंवदंतियाँ प्रचलित थीं।

1897 में, पेपे ने इस टीले की खुदाई शुरू की। उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई, जब उन्होंने एक पत्थर के संदूक (स्टाइपा) में कुछ ऐसी चीजें पाईं, जिन्होंने इतिहास को बदल दिया। इस संदूक में उन्हें भगवान बुद्ध के वास्तविक अवशेष (रिलिक्स) के साथ-साथ कुछ सोने-चांदी के आभूषण भी मिले। यह खोज अपने आप में असाधारण थी।

ब्राह्मी लिपि का रहस्य और शाक्यमुनि बुद्ध के अवशेष

इस खोज को और भी खास बनाने वाली चीज थी, संदूक पर ब्राह्मी लिपि में खुदा हुआ एक शिलालेख। इस शिलालेख में लिखा था: “यह शाक्यमुनि बुद्ध के अवशेषों का स्तूप है, जिसे उनके भाइयों, बहनों और परिवार ने बनवाया था।” यह शिलालेख सीधा संबंध स्थापित करता था बुद्ध और उनके शाक्य कुल से, जिससे यह खोज बौद्ध इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि बन गई। यह पहली बार था जब बुद्ध के शाक्य कुल से जुड़े सीधे और ठोस पुरातात्विक प्रमाण मिले थे।

पेपे का योगदान और विवाद

पेपे ब्रिटिश भारत में रेलवे इंजीनियर के रूप में कार्यरत थे और गोरखपुर क्षेत्र में कई निर्माण कार्यों से जुड़े थे। उनकी व्यक्तिगत रुचि ने उन्हें पुरातत्व की ओर मोड़ा, जिसके चलते उन्होंने स्थानीय स्तूपों और ऐतिहासिक स्थलों की खोज की।

हालांकि, पिपरहवा स्तूप की खोज के बाद कुछ विद्वानों ने इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाए। यह विवाद डॉ. एंटोन फ्यूरर (एक विवादास्पद पुरातत्वविद्) की सक्रियता के कारण था, जिन पर उस समय नकली अवशेष बनाने के आरोप लगे थे। लेकिन पेपे द्वारा खोजे गए शिलालेख और अवशेषों को अधिकांश विद्वानों ने वास्तविक माना है, क्योंकि उनकी खुदाई का तरीका पारदर्शी और वैज्ञानिक था।

डब्ल्यू.सी. पेपे की पिपरहवा स्तूप की खोज ने महान सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्तूपों की श्रृंखला को समझने में भी मदद की। यह स्थल आज भी बौद्ध तीर्थयात्रियों और पुरातत्वविदों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। पिपरहवा से प्राप्त अवशेषों को वर्तमान में कोलकाता के भारतीय संग्रहालय और थाईलैंड में रखा गया है, जहाँ वे श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध हैं। 20वीं सदी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस स्थल का पुनः उत्खनन किया और पेपे की खोज के ऐतिहासिक महत्व की पुष्टि की।

निष्कर्ष: एक इंजीनियर जिसका नाम इतिहास में अमर हो गया

डब्ल्यू.सी. पेपे ने भले ही भारत में एक छोटा कार्यकाल बिताया हो, लेकिन उनकी पिपरहवा स्तूप की खोज ने बौद्ध धर्म के इतिहास और भारतीय पुरातत्व में एक नया अध्याय जोड़ा। उनके नाम पर बसा पीपीगंज कस्बा आज भी उनकी विरासत को याद दिलाता है। एक ऐसे इंजीनियर की कहानी, जिसने अपनी लगन और दूरदर्शिता से इतिहास के एक अनमोल अध्याय को उजागर किया, सचमुच प्रेरणादायक है।

Siddhartha Srivastava

Siddhartha Srivastava

About Author

Siddhartha Srivastava का आज, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण जैसे हिंदी अखबारों में 18 साल तक सांस्थानिक पत्रकारिता का अनुभव है. वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता. email:- siddhartha@gogorakhpur.com | 9871159904.

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