बतकही: हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के…
आज सुबह की टहलान में बात चली। बात बड़ी थी इसीलिए ग़ौरतलब भी। विचार बिंदु था कि जब तक हमारा कुछ नुकसान नहीं होता हम किसी और नुकसान को लेकर व्याकुल नहीं होते। जीवन के किसी मूल्य के क्षरण से समाज पर क्या असर पड़ेगा, वह किस दिशा में जाएगा?