Gorakhpur: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में सोमवार को पूर्वोत्तर और साहित्य विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता, उत्तर पूर्व विश्वविद्यालय, शिलांग के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर भरत प्रसाद ने कहा कि पूर्वोत्तर को केवल पर्यटक बन कर नहीं समझा जा सकता. वहां की संस्कृति, समस्याओं और जीवन को गहराई से समझने के लिए वहाँ रहना होगा.
प्रो. प्रसाद ने बताया कि पूर्वोत्तर के राज्यों की समस्याएं अलग तरह की हैं. भाषा वहां की एक प्रमुख समस्या है. वहां अंग्रेजी और स्थानीय भाषाएं ही ज्यादा प्रचलित हैं और वहां की स्थानीय भाषाएं भारतीय मूल की नहीं हैं. इसका कारण अंग्रेजी शासनकाल में ईसाई धर्म और अंग्रेजी का प्रचार है, जिसके चलते आज पूर्वोत्तर की 90 प्रतिशत आबादी ईसाई हो चुकी है.
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हिंदी के प्रचार-प्रसार पर चर्चा करते हुए प्रो. प्रसाद ने बताया कि 1934 में गांधी जी ने राघवदास को हिन्दी के प्रचार के लिए भेजा था. इसका परिणाम है कि समूचे पूर्वोत्तर में हिन्दी परिषद की स्थापना हो चुकी है. उन्होंने बताया कि कुछ समय पूर्व तक हिन्दी का शोध प्रबंध अंग्रेजी में प्रस्तुत किया जाता था और आज भी हिन्दी की पढ़ाई असमी में होती है. हिन्दी के प्रचार के लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं निकल रही हैं, परन्तु सचाई यह है कि पूर्वोत्तर में हिन्दी मन से स्वीकार्य नहीं है. इस दिशा में और प्रयासों की आवश्यकता है जिसमें सामाजिक संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
इस अवसर पर विभागाध्यक्ष प्रो. कमलेश गुप्त ने प्रो. भरत प्रसाद का स्वागत किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. अखिल मिश्र ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राजेश कुमार मल्ल ने किया. कार्यक्रम में विभाग के शिक्षकगण और विद्यार्थी उपस्थित थे.