शहरनामा

History of Gorakhpur : जब यूपी के प्रधानमंत्री ने गोरखपुर के गोरे कलक्टर का अहंकार भुला दिया

GB pant First PM of United Provinces
GB pant First PM of United Provinces
Photo Credit: Internet Media

History of Gorakhpur : बात साल 1937 की है. ब्रिटिश संसद में गर्वनमेंट आफ इंडिया ऐक्ट पास हो चुका था. इसके बाद देशभर में चुनाव हुए. ये चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी बनाम अंग्रेजी लाट साहबों के देसी प्रतिनिधियों के बीच लड़े गए थे. इन चुनावों में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में बहुमत मिली थी. जुलाई 1937 में उत्तर प्रदेश में पहला कांग्रेसी मंत्रिमंडल बना था. और इस सरकार के प्रधानमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत. गोरखपुर के गोरे कलेक्टर और यूपी के तत्कालीन प्रधानमंत्री के बीच क्यों ठन आई, यह जानने से पहले उस वक्त की पृष्ठभूमि के बारे में थोड़ा और जानना होगा.

क्या हुआ जब गर्वनमेंट आफ इंडिया ऐक्ट ब्रिटिश संसद में हुआ पास
दरअसल, गर्वनमेंट आफ इंडिया ऐक्ट ब्रिटिश संसद में पास तो हो गया, लेकिन वह यहां की जमीन पर क्या रूप लेगा यह हालात के भरोसे था. इस कानून के अनुसार भारत के प्रांतों में चुनाव कराए जाने थे. सभी प्रांतों की कुल विधानसभाओं की संख्या 1,585 थी. तब जो चुनाव हुए उनमें कांग्रेस को 711 सीटें हासिल हुई थीं. तब उत्तर प्रदेश, मद्रास, मध्य प्रदेश, बिहार और उड़ीसा में कांग्रेस का पूर्ण जीत हुई थी. इन प्रदेशों में जब सरकार बनाने की नौबत आई तो गर्वनर और प्रधानमंत्री के अधिकारों को लेकर मामला ठन गया. तब प्रांतों के गवर्नर अंग्रेज ही थे. उन्होंने चुनाव से पहले ही आईसीएस अफसरों को पूरी तरह आश्वस्त किया था कि ”आप लोगों की नौकरी को और अधिकारों को एकदम सुरक्षित कर दिया गया है.” यूपी के तत्कालीन गर्वनर सर हेरी हेग यूपी के आईसीएस अधिकारियों को कह दिया था​ कि 1935 के कानून के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि ”मंत्रिमंडल न तो आपको डिसमिस कर सकता है, और न ही वेतन घटा सकता है”.

चुनी हुई सरकार और नौकरशाहों के अधिकारों के बीच पहला टकराव यूपी में
चुनी हुई सरकार और नौकरशाहों के अधिकारों के बीच पहला टकराव भी शायद तभी शुरू हुआ. इस टकराव का पहला उदाहरण बना गोरखपुर जिले का तत्कालीन गोरा कलेक्टर. उत्तर प्रदेश में जब कांग्रेस की पहली चुनी हुई सरकार बनी तो प्रधानमंत्री पंडित गोविंद वल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में शामिल थे रफी अहमद किदवई, डॉक्टर कैलाश नाथ काटजू, संपूर्णानंद और हाफिज मुहम्मद इब्राहीम. पुरुषोत्तमदास टंडन विधान सभा के अध्यक्ष चुने गए. कृष्णदत्त पालीवाल, ग्राम विकास अधिकारी बनाए गए और श्रीराम शर्मा उनके सहायक. अजित प्रसाद जैन, गोपी नाथ श्रीवास्तव, चौधरी बिहारी लाल सहित कई अन्य संसदीय सचिव बनाए गए. गौरतलब है कि राज्यमंत्री और उपमंत्री के पद तब नहीं थे.

निरीक्षण किए बिना लौट गए संसदीय सचिव
हुआ यूं कि नई सरकार में माल विभाग के संसदीय सचिव कुछ फाइलों का निरीक्षण करने गोरखपुर पहुंचे. गोरा अंग्रेज कलेक्टर उनका स्वागत करने नहीं गया. उसने अपनी जगह पर सिटी मजिस्ट्रेट भटनागर को भेज दिया. संसदीय सचिव जब कचहरी का निरीक्षण करने पहुंचे तो अंग्रेज कलेक्टर वहां भी नहीं पहुंचा. इस पर संसदीय सचिव ने कलेक्टर के बारे में सिटी मजिस्ट्रेट से पूछा. सिटी मजिस्ट्रेट भटनागर ने उन्हें साफ शब्दों में बताया कि ”वह अवज्ञा के भाव में डूबा है, इसलिए नहीं आया.” कलेक्टर के इस रवैये से ”संसदीय सचिव ने अपने को नहीं स्वयं मालमंत्री रफी साहब को भी अपमानित माना क्योंकि वे उस निरीक्षण में उनका ही प्रतिनिधित्व कर रहे थे.” संसदीय सचिव ने निरीक्षण नहीं किया और वे लौट गए.

पंत जी के एक दांव ने ब्रिटिश अफसरों की हवा टाइट कर दी
संसदीय सचिव ने इसकी जानकारी रफी साहब को दी और रफी साहब ने पंडित गोविंद वल्लभ पंत तक बात पहुंचाई. पंत जी बम-विभ्राट राजनीज्ञित थे, पर इतने शांत कि अपना संतुलन कभी नहीं खोते थे. विरोधी को चित्त करने के उनके अपने दांव थे और सबसे बड़ा गुण यह था कि वे जानते थे कि दांव कब मारा जाए. उनके दांव ठंडे होते थे पर एकदम अजगर ​की कुंडली कि उसमें फंसकर निकलना असंभव होता था. उनके एक ही दांव ने पूरे उत्तर प्रदेश के आईसीएस अफसरों का दर्प भंग कर दिया था और इससे मंत्रिमंडल का कार्य बेहद सुगम हो गया था.

खुद को किसी कार्रवाई के दायरे में नहीं मानते थे अंग्रेज अफसर
अंग्रेज अफसरों को कांग्रेसी मन्त्रिमण्डल बनने से पहले गवर्नर ने बार-बार यह आश्वासन दिया था कि 1935 के शासन सुधार कानून में आप लोगों की नौकरी को और अधिकारों को एकदम सुरक्षित कर दिया गया है. मन्त्रिमण्डल न आपको ‘डिसमिस’ कर सकता है, न वेतन घटा सकता है, यह तो कानून में ही लिखा है, पर सबसे बड़ी बात यह है कि आप सीधे गवर्नर से सम्बद्ध रहेंगे. इन आश्वासनों से कांग्रेसियों के प्रति उनके मन का कडुवापन और भी बढ़ गया था और वे उन्हें बहुत कम महत्व देने के इरादे बांध बैठे थे, पर एक घटना ने उनकी आंखों में सुरमा डाल दिया.

संसदीय सचिव के स्वागत में नहीं पहुंचा घमंडी अंग्रेज कलेक्टर
माल-विभाग के संसदीय सचिव, गोरखपुर कुछ फाइलों का निरीक्षण करने गये, पर वहाँ का अंग्रेज कलक्टर बहुत घमण्डी था. वह स्वागत करने नहीं आया और सिटी मजिस्ट्रेट, भटनागर को भेज दिया, पर जब कचहरी के निरीक्षण के समय भी वह नहीं आया तो संसदीय सचिव ने पूछताछ की. भटनागर ने साफ कह दिया कि वह अवज्ञा के भाव में डूबा है, इसलिए नहीं आया. संसदीय सचिव ने अपने को ही नहीं स्वयं मालमन्त्री रफी साहब को भी अपमानित माना, क्योंकि वे उस निरीक्षण में उनका ही प्रतिनिधित्व कर रहे थे. वे बिना निरीक्षण किए लौट आये. रफी साहब ने पन्त जी से कहा तो उन्होंने मामला अपने हाथ में ले लिया, पर कहा कि इस बारे में जल्दी न चाहें. कुछ सप्ताह बाद गोरखपुर की एक तहसील से कुछ खराब खबरें आई. बस, पन्त जी ने तुरन्त गोरखपुर के उस दम्भी कलक्टर को आदेश भेजा कि वह उस तहसील के डिप्टी कलक्टर (एस०डी०एम०) का चार्ज ले ले और अपना कलक्टरी का चार्ज भटनागर को दे दे. कलक्टर के लिए और उसी के लिए क्या, सभी आई०सी०एस० अफसरों के लिए यह तो भूकम्प था. उसने इस आदेश को पन्त जी की अनधिकार चेष्टा माना और वह दौड़ा-दौड़ा गवर्नर के पास लखनऊ आया.

जब यूपी गर्वनर के सामने कुमायूँ का पूरा पहाड़ खड़ा हो गया
गवर्नर सर हेरी हेग स्वभाव से अच्छे मनुष्य थे और उनके मन में पन्त जी का आदर था. फिर भी वे इस आदेश को देखकर भौंचक रह गये. उन्होंने तुरन्त पन्त जी को बुलाया. पन्त जी जब राजभवन पहुंचे, तो कलक्टर गवर्नर के बरामदे में बैठा था. उसकी तरफ बिना देखे पन्त जी कमरे में चले गये. गवर्नर ने गम्भीर भाव से कहा-” आईसीएस अफसर सीधे गवर्नर के चार्ज में हैं. मन्त्री लोग उनकी सर्विस में इधर-उधर नहीं कर सकते.” पन्त जी ने समुद्र की सी गम्भीरता के स्वर में कहा, ” कानून में हम उन्हें ‘डिसमिस’ नहीं कर सकते, उनका वेतन नहीं घटा सकते, पर कानून ने हमें यह अधिकार तो दिया है कि हम उनसे काम लें. इस आदेश में उनका कोई अपमान नहीं किया गया. जिले की एक तहसील खराब हो रही थी, एक योग्य आदमी के रूप में उन्हें वहाँ व्यवस्था करने का कार्य सौंपा गया है.” गवर्नर ने पन्त जी की तरफ देखा, पर अब उनके सामने कोई मनुष्य नहीं, कुमायूँ का पूरा पहाड़ था, जो किसी से टूट नहीं सकता और कोई उसे तोड़ने की कोशिश करे तो खुद टूट जाये.

अंग्रेज कलक्टर को पंत जी में दिखी पिता की छवि
पन्त जी उठ कर चल पड़े, बरामदे में जरा रुके, कलक्टर की तरफ मुड़े और कहा-आप बिना मुझसे पूछे अपना स्थान छोड़कर यहां आए हैं. जवाबतलबी का नोटिस आपको भिजवा रहा हूँ, जबाब देने को तैयार रहिए.” गोरे बहादुर की आत्मा तक झन्ना गई और उस समय तो सूख ही गई, जब गवर्नर ने उनसे कहा, “आपके पास दो ही रास्ते हैं. पहला यह कि पन्त जी से क्षमा माँगें और दूसरा यह कि त्यागपत्र देकर घर लौट जायें. कलक्टर पन्त जी के पास गया, पर पन्त जी की शासन कला का चमत्कार कि वे उसे हाकिम नहीं, अपने प्रेमी पिता दिखाई दिये. पन्त जी ने उसे रफी साहब के पास भेजा और रफी साहब ने संसदीय सचिव के पास इस तरह उसका पूरा दर्प कुछ ही घण्टों में झड़ गया और उसका दर्प क्या झड़ गया, पूरी अंग्रेज अफसरशाही का दर्प झड़ गया.

(सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘उत्तर प्रदेश: स्वाधीनता संग्राम की एक झांकी’, लेखक कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ चतुर्थ संस्करण 1993 में दर्ज एक वाकये पर आधारित आलेख.)

सिद्धार्थ श्रीवास्तव

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आज, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक हिंदुस्तान, अमर उजाला जैसे हिंदी पट्टी के प्रमुख समाचार पत्रों में लोकल से लेकर नेशनल न्यूज़ रूम में कार्य का 18 साल का अनुभव. दो वर्षों से गोगोरखपुर.कॉम के साथ. संपर्क: 7834836688, ईमेल:contact@gogorakhpur.com.

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