एम्स गोरखपुर में जटिल सर्जरी से दो साल के बच्चे को मिली रोशनी
गोरखपुर: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर के दंत शल्य चिकित्सा विभाग के डॉक्टरों ने एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए दो घंटे की जटिल सर्जरी के बाद दो साल के एक बच्चे को फिर से देखने की क्षमता प्रदान की है। यह बच्चा बिहार के सिवान जिले के खुर्द दरोगा हाता गांव का रहने वाला है और एक किसान का बेटा है।
जानकारी के अनुसार, बच्चे को छह महीने की उम्र में तब परेशानी शुरू हुई जब वह बिस्तर से गिर गया और उसकी दाहिनी आंख के पास सूजन और हेमेटोमा (चोट के कारण जमा हुआ खून) बन गया। धीरे-धीरे, उसकी आंख के चारों ओर हड्डी का असामान्य विकास (बोनी एक्सोस्टोसिस) होने लगा, जिसके कारण उसकी आंखें बंद होने लगीं और उसकी दृष्टि प्रभावित होने लगी। बच्चे के परिवार वालों ने कई डॉक्टरों और होम्योपैथिक चिकित्सकों से इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
आखिरकार, बच्चे को एम्स गोरखपुर की डेंटल ओपीडी में लाया गया, जहां जांच के बाद उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन और सहायक प्राध्यापक डॉ. शैलेश कुमार ने अपनी टीम के साथ मिलकर दो घंटे तक चली सर्जरी में बच्चे की आंख के पास बढ़ी हुई हड्डी को सफलतापूर्वक हटा दिया। ऑपरेशन के बाद बच्चा अब सामान्य रूप से देख पा रहा है और पूरी तरह से स्वस्थ है।
इस महत्वपूर्ण सर्जरी में डॉ. शैलेश कुमार के साथ सीनियर रेजीडेंट डॉ. प्रवीण सिंह, जूनियर रेजीडेंट डॉ. प्रियंका त्रिपाठी और डॉ. सौरभ सिंह शामिल थे। एनेस्थीसिया विभाग से प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. विक्रम वर्धन और एकेडमिक जूनियर रेजीडेंट डॉ. अरुंधति ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
एम्स गोरखपुर की कार्यकारी निदेशक प्रो. विभा दत्ता ने इस सफलता के लिए पूरी टीम को बधाई दी और कहा कि अब इस प्रकार के जटिल मामलों के इलाज के लिए मरीजों को दिल्ली या लखनऊ जैसे बड़े शहरों में जाने की आवश्यकता नहीं होगी।
डॉ. शैलेश कुमार ने लोगों को सलाह दी कि चेहरे पर किसी भी प्रकार की चोट या असामान्य सूजन को अनदेखा नहीं करना चाहिए और तुरंत किसी ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जन से सलाह लेनी चाहिए। उन्होंने बताया कि ये विशेषज्ञ चेहरे, जबड़े और मुंह से संबंधित जटिल सर्जरी करने में प्रशिक्षित होते हैं।
यह सफल सर्जरी न केवल चिकित्सा क्षेत्र में एम्स गोरखपुर की विशेषज्ञता को दर्शाती है, बल्कि यह क्षेत्र के मरीजों के लिए एक बड़ी उम्मीद की किरण भी है।