राधा अष्टमी 23 सितंबर को है. पद्म पुराण के अनुसार, एक बार वृषभानु जी ( राधा रानी के पिता ) यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे. उसी दौरान धरती की कोख से राधा रानी उन्हें बच्ची के रूप में प्राप्त हुई. मान्यता है कि जिस प्रकार द्वापर युग भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया था, उसी प्रकार लक्ष्मी माता ने राधा रानी के रूप में जन्म लिया था जहां एक तरफ कृष्ण को शरीर तो दूसरी तरफ राधा जी को उनकी आत्मा माना जाता था. राधा जी जिस दिन वृषभानु जी को मिली थीं, वह अष्टमी तिथि थी, इसलिए उस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा. इस दिन राधा रानी के साथ श्रीकृष्ण की पूजा का भी विशेष महत्व है. सबसे पहले सुबह स्नान के बाद पूजा स्थल की सफाई कर वहां राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें. फिर पूजा स्थल पर एक छोटे मंडप का निर्माण करें और उसके मध्य भाग में कलश स्थापित करें. इसके बाद कलश के ऊपर एक तांबे की तश्तरी रखें. अब इस पात्र के ऊपर सबसे पहले राधा रानी की मूर्ति स्थापित करें. अगर संभव हो तो राधा जी की सोने या चांदी से सुसज्जित मूर्ति ही स्थापित करें.
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