तृतीय सत्र : गोरखपुर के चमकते सितारे

GO GORAKHPUR: गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल ‘शब्द संवाद’ के तीसरे दिन के तृतीय सत्र "गोरखपुर के चमकते सितारे" में गोरखपुर में पले–बढ़े तथा वर्तमान में देश–विदेश में संगीत और साहित्य में नाम रोशन कर रही तीन हस्तियों, बृजेश शांडिल्य, अविनाश नारायण तथा बालेन्दु द्विवेदी ने अपने जीवन तथा संगीत और साहित्य यात्रा से संबंधित विभिन्न अनुभव साझा किए.

GO GORAKHPUR: गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल ‘शब्द संवाद’ के तीसरे दिन के तृतीय सत्र “गोरखपुर के चमकते सितारे” में गोरखपुर में पले–बढ़े तथा वर्तमान में देश–विदेश में संगीत और साहित्य में नाम रोशन कर रही तीन हस्तियों, बृजेश शांडिल्य, अविनाश नारायण तथा बालेन्दु द्विवेदी ने अपने जीवन तथा संगीत और साहित्य यात्रा से संबंधित विभिन्न अनुभव साझा किए.

आपकी आत्मा, आपका जमीर और आपकी जीवन यात्रा आप के संगीत की दशा और दिशा तय करते हैं. बस्ती में घर छोड़कर गोरखपुर आया. गोरखपुर ने मुझे पाला है, बड़ा किया है, म्यूजिक की नेमत दी है तथा मैंने जितना गाया है वह गोरखपुर के नाते ही संभव हो सका है.

गोरखपुर ने मुझे म्यूजिक की नेमत दी है : बृजेश शांडिल्य

आपकी आत्मा, आपका जमीर और आपकी जीवन यात्रा आप के संगीत की दशा और दिशा तय करते हैं. बस्ती में घर छोड़कर गोरखपुर आया. गोरखपुर ने मुझे पाला है, बड़ा किया है, म्यूजिक की नेमत दी है तथा मैंने जितना गाया है वह गोरखपुर के नाते ही संभव हो सका है. मैं चाहता हूं कि मैं दुनिया के किसी भी कोने में चला जाऊं लेकिन मेरा अंत यही गोरखपुर की धरती पर हो. बालेन्दु जी से मेरी दोस्ती गोरखपुर में हुई. बालेन्दु ने ही कहा कि तुम बहुत अच्छा गाते हो. उन्होंने कहा कि मैं इलाहाबाद में तैयारी करता हूं और तुम वहां चलकर म्यूजिक सीखो और वहीं से मेरे शांडिल्य बनने की यात्रा शुरू होती है. यात्रा शुरू हुई और मुंबई की तरफ बढ़े. डेढ़ साल की फुटपाथी जिंदगी भी मैंने जी है. लेकिन एक बात मन में थी कि मैं वापस नहीं जा सकता और दूसरों की नजर में खुद को साबित करने से पहले मुझे खुद की नजर में खुद को साबित करना है. जहां किसी कलाकार का बचपन गुजरा हो, उसका परिवार हो, मां बाप, भाई बहन, मित्र आदि को वह छोड़ना नहीं चाहता लेकिन शायद यह भी एक कटु सत्य है कि लोग स्थानीय लोगों को या स्थानीय कलाकारों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते. मेरा मुंबई जाना शायद इसी अर्थ में हुआ. मुंबई में एक कल्चर है कि वहां वहां कौन किसका हाथ पकड़ ले यह निश्चित नहीं है. यह संस्कृति की एक सुंदरता है. बृजेश ने अपने स्ट्रगल के दिनों की चर्चा करते हुए कहा कि उनका पहला एल्बम गोरखपुर में ही रिकॉर्ड हुआ था. इस अवसर पर उपस्थित संगीत प्रेमियों को बृजेश शांडिल्य ने अपने गीतों क्लासिकल गीत “जो राह चुनी तूने उस राह पे राही चलते जाना रे”… तनु वेड्स मनु का “बन्नो तेरा स्वैगर”… केसरी फ़िल्म का “सानू कैंदी तू लाई दे चूड़ी नई ते मर जांणा”….

अविनाश नारायण ने कहा कि गोरखपुर आकर वह बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं. उन्होंने उन लोगों को विशेष साधुवाद दिया जिन्होंने उन्हें ढूंढ निकाला और एक मंच प्रदान किया.

जो आवाज दिल से निकलती है वो ही लोकप्रिय होती है : अविनाश नारायण

अविनाश नारायण ने कहा कि गोरखपुर आकर वह बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं. उन्होंने उन लोगों को विशेष साधुवाद दिया जिन्होंने उन्हें ढूंढ निकाला और एक मंच प्रदान किया. गीतों को कंपोज करने के विषय में उन्होंने कहा कि जो आवाज दिल से निकलती है तथा अनुभव के माध्यम से कलम तक पहुंचती है वो ही लोकप्रिय होती है. इस अवसर पर अविनाश नारायण ने खुद के कंपोज किए हुए गीतों, “टूटे कोई सपना अधूरा आँखें भर आएं, जीना तो फिर भी होगा जी, जीते जाना है”….. “तू अपनी राहों पे चलता जाए”… से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.

साहित्य कभी रोजगार का माध्यम नहीं बनना चाहिए. जो ऐसा सोचते हैं वह वास्तव में साहित्य के सेवक नहीं है बल्कि मजदूर हैं. मैं साहित्य में रोजगार के लिए नहीं आया या किसी शौक को पूरा करने के लिए नहीं आया. साहित्य मेरे लिए अपने-आप को अभिव्यक्त करने का माध्यम है.

साहित्य कभी रोजगार का माध्यम नहीं बनना चाहिए : बालेंदु द्विवेदी

साहित्य कभी रोजगार का माध्यम नहीं बनना चाहिए. जो ऐसा सोचते हैं वह वास्तव में साहित्य के सेवक नहीं है बल्कि मजदूर हैं. मैं साहित्य में रोजगार के लिए नहीं आया या किसी शौक को पूरा करने के लिए नहीं आया. साहित्य मेरे लिए अपने-आप को अभिव्यक्त करने का माध्यम है. साहित्यिक रचनाकार की संवेदना ही वास्तव में साहित्य की जननी होती है. मेरी संवेदना मात्र साहित्य के लिए नहीं है बल्कि मेरे लिए अस्तित्व का विषय है. दूसरों की पीड़ा से तादात्म्य स्थापित करना मेरी प्रकृति है. अंतर्मन को को कचोटने वाली घटनाएं कागज़ पर उतरकर साहित्य का निर्माण करती हैं. युवाओं पे किए गए प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि युवाओं को सपने बड़े देखना चाहिए और उनको जिंदा रखना चाहिए. संघर्ष करने की क्षमता, दृढ़ इच्छाशक्ति, संघर्षों से जूझने का मैनेजमेंट तथा सदैव आशावादी बने रहना ही युवाओं को लक्ष्य की प्राप्ति करवा सकता है.

इस अवसर पर निर्देशक विशाल चतुर्वेदी ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए. कार्यक्रम का मॉडरेशन शुभेंद्र सत्यदेव तथा संचालन रेनू सिंह ने किया.

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By गो गोरखपुर

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