दूसरा दिन, दूसरा सत्र
गोरखपुर लिट फेस्ट के दूसरे दिन, दूसरे सत्र में पत्रकार ऋचा अनिरुद्ध को सम्मानित करते आयोजक. फोटो सौजन्य: गोरखपुर लिट फेस्ट |
…जब अमिताभ बच्चन से मिलना इनकार किया
ऋचा ने बताया कि उनका जन्म झांसी के एक सामान्य परिवार में हुआ है जहां पर लड़की और लड़के में कभी भेदभाव नहीं रहा. उन्होंने कहा कि मेरी मां का हमेशा से सपना कुछ बड़ा करने का रहा. उन्होंने सिखाया कि कुछ भी करो तो बड़ा करो शायद उसका ही प्रभाव रहा कि मैंने अमिताभ बच्चन से मिलना इनकार किया और तय किया कि जब भी मिलूंगी तो इनके इंटरव्यू के साथ मिलूंगी. ऐसा बचपन मे सोच पाई इसके पीछे मां थीं. मेरे बचपन के जमाने में टीवी कम थे न्यूज़पेपर का दौर था. बचपन में ही मैं सोचा करती थी जब मेरी आखिरी सांस पूरी हो तो न्यूज़ पेपर में मेरा नाम हो.
…मात्र डेढ़ हजार की नौकरी
मुझे लोगों की बातों का कभी फर्क नहीं पड़ा. मेरे मन में शुरू से रहा कि मैं कोई काम करूंगी तो खुद का काम, मन से और स्वतंत्रता से करूंगी. मात्र डेढ़ हजार की नौकरी भी इसी बात से प्रभावित होकर की. बाद में मुझे किसी माध्यम से पता चला कि रविशंकर जी के यहां स्टाफ स्टफ कि ज़रूरत है तो उनके यहां मैंने नौकरी की. और यह मेरे लिए सौभाग्य की बात थी. अमिताभ बच्चन हो चाहे रविशंकर जी इन लोगों की जिंदगी से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. मुझे ऐसा लगता है कि महान लोगों की इंसानियत की बातें भी होनी चाहिए केवल उनकी शख्सियत की ही बातें नहीं होनी चाहिए.
…खराब खबरों को टीआरपी हम दे रहे हैं
जब तक आपका अपनी स्थिति से जुड़ाव नहीं होगा तब तक आप अच्छे इंसान नहीं होंगे और आप अपने प्रोफेशन के साथ इमानदारी नहीं कर सकते. आजकल की पत्रकारिता लट्ठमार हो गई है. ऐसा क्यों हो गया है मुझे नहीं समझ आता. चर्चित सॉन्ग “जिंदगी लाइव” को अवार्ड मिला तब जाकर मुझे रिकॉग्नाइज किया गया. आज की पत्रकारिता का जिम्मेदार केवल मीडिया ही नहीं हम खुद भी हैं. खराब खबरों को टीआरपी हम दे रहे हैं. उड़ने वाली खबरें लोग शौक से देखते हैं. सच्ची खबरें देखना हम खुद नहीं पसंद करते हैं. मीडिया चैनल वही दिखा रहे जो हम देखना चाह रहे हैं. हम गलत देखना बंद करें तो अच्छी खबरें अच्छे शो अपने आप हमारे सामने होंगे.
समाज ना नेताओं से चल रहा ना अभिनेताओं से चल रहा…
जहां तक मेरी बात है, मैं उसी का चयन करती हूं जो मुझे करना है. समाज ना नेताओं से चल रहा ना अभिनेताओं से चल रहा है बल्कि हमारे रियल हीरोज जो गरीबों के लिए पर्दे के पीछे रहकर के काम कर रहे हैं उनसे चल रहा है. दूसरे पर उंगली उठाने से पहले हमें खुद को भी देखना होगा कि हम क्या कर रहे हैं और शायद अगर हम खुद को देखना शुरू कर दें तो दूसरे पर उंगली उठाने की जरूरत ना पड़ेगी. मेरे सामाजिक कार्यों के पीछे वास्तव में मेरे खुद के आत्मा की आवाज होती है.
कुछ हटकर करने की सोच ‘जमघट’ है
अपनी सोशल मीडिया पर यात्रा के विषय में बताते हुए उन्होंने कहा कि कुछ साथियों और दर्शकों से उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए वर्ष 2017 में उन्होंने यूट्यूब पर अपने कंटेंट डालने शुरू किए. उसकी फंडिंग भी क्राउड फंडिंग से शुरू की. मेरे मेरे मन में हमेशा से रहा कि जो सब कर रहे हैं वह मुझे नहीं करना है बल्कि कुछ हटकर करना है. समाज के वंचित बच्चों के लिए संचालित हो रही फुटपाथ पाठशाला “जमघट” के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि कुछ गरीब बच्चों को देखकर उनके मन में यह भावना जगी कि इन बच्चों को पढ़ाना चाहिए और कुल छः या सात बच्चों से उन्होंने इसकी शुरुआत की. आज वह संख्या सैकड़ों में है. कुछ हटकर करने की सोच का प्रकल्प या कोशिश ही ‘जमघट’ का स्वरूप है.
हिंग्लिश कल्चर को आड़े हाथों लिया
साहित्य विमर्श पर बोलते हुए उन्होंने कहा बचपन में मैं शुरू से ही साहित्य की प्रेमी थी और साहित्यिक किताबें ख़ूब पढ़ती थी. भाषा के विषय में उन्होंने कहा कि आज कल के समय में मिक्स भाषा का जो कल्चर है वह अच्छा नहीं है और बोलते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि एक समय में एक भाषा का ही प्रयोग करें. आज के दौर में प्रचलित हो रहे हिंग्लिश कल्चर को उन्होंने आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जब हम बोलें तो या तो हिंदी या तो अंग्रेजी. दोनों का मिश्रण किसी भी प्रकार से सही नहीं कहा जा सकता.
ओटीटी जैसे प्लेटफॉर्म पर परिवार के साथ बैठकर गालियां देख रहे
उन्होंने कहा कि वह यहां बैठे युवा अभिभावक से निवेदन करेंगी कि वे अपने बच्चों को रूट से जोड़ने के लिए संगीत सिखाएं. शास्त्रीय संगीत के बारे में जानकारी दें, अच्छे साहित्य के बारे में बताएं, अच्छे साहित्यकारों से परिचित कराएं. यह बहुत बड़ी विडंबना है आजकल के बच्चे बिस्मिल्ला खां को, रविशंकर को नहीं जानते. अभिभावक यह नहीं जानते हैं कि इसके वे खुद ही जिम्मेदार हैं क्योंकि वे ही उनको ऐसा बना रहे हैं. ओटीटी जैसे प्लेटफॉर्म पर परिवार के साथ बच्चे बैठकर गालियां देख रहे हैं. यह कंटेंट उन को बाहर से नहीं हम खुद ही दे रहे हैं. ऐसा करने से मां-बाप को खुद भी बचना चाहिए और अपने बच्चों को भी बचाना चाहिए.
इस अवसर पर उपस्थित साहित्य प्रेमियों ने ऋचा अनिरुद्ध से कई सवाल भी किए जिसका उन्होंने खूबसूरती से उत्तर दिया. इस सत्र का मॉडरेशन प्रकृति त्रिपाठी ने किया. संचालन डॉ. प्रियंका श्रीवास्तव ने किया.
युवा कवियों के नाम रहा प्रथम सत्र ‘नवोत्पल’
गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल शब्द संवाद का दूसरा सत्र शहर के युवा कवियों की प्रस्तुतियों के नाम रहा. इस सत्र में मृत्युंजय उपाध्याय नवल, आकृति विज्ञ, निर्भय निनाद, सौम्या द्विवेदी, हर्षिता मणि त्रिपाठी, सलीम मजहर, केतन यादव तथा अमृत चंद्र मिश्र ने अपनी रचनाएं पढ़ीं. मृत्युंजय उपाध्याय नवल की “तेरे आने की ख़बर सबसे बचा रखी थी, मीरा जैसा प्यार कहां है..”, सौम्या द्विवेदी द्वारा प्रस्तुत “तुम शांत रहते हो पर शांत रहना नहीं रहना चाहते…”, सलीम मजहर की गजल “कोई जरूरी नहीं सामने तू आए मेरे…”, अमृत चंद्र मिश्र की रचना “रूह से बदन का जो राब्ता है..”, आकृति के “सुनो बसंती हील उतारो..” और निर्भय निनाद की काव्य रचना “कोई मौत से कह दे कुछ देर ठहरे..”, जैसी रचनाओं ने दर्शकों को वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया. इस सत्र का संचालन तथा मॉडरेशन मृत्युंजय उपाध्याय नवल ने किया.