- नीलम श्रीवास्तव
पुराने समय की रवायतें निराली थीं. आज हम एक कहावत सुनते हैं कि झूठ बोले कौवा काटे…लेकिन यह कहावत असल जीवन में अलग थी. कौवा काटने पर झूठ बोला जाता था.
असल में टोटके हमारे ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग रहे हैं. कदम-कदम पर टोटके. पहले यह मानते थे कि अगर किसी को कौवे ने काट लिया तो कुछ अशुभ हो गया है. इस अशुभ का क्षेपक मिटाने के लिए लोगों को झूठ बोलना होता था. झूठ भी कैसा…अपने किसी करीबी की मौत की ख़बर देनी होती थी. भला ये क्या बात?
जी हां. ग्रामीण जीवन में मानते हैं कि अगर कौवे ने सिर पर ठोंड़ मारी है तो आपके साथ कुछ अशुभ होने जा रहा है. वह अशुभ असल जीवन में न घटित हो, इसके लिए मौत की झूठी खबर देनी होती थी.
गांव में मेरे एक पड़ोसी परिवार के घर का वाकया है. बात सत्तर के दशक की होगी. उस घर का युवक दोपहरी में घर पहुंचा और पहुंचते ही घर की महिलाओं से कहा…चाचा को सड़क पर गाड़ी वाले ने टक्कर मार दी. वह अब नहीं रहे…यह बताते हुए उसके चेहरे पर मुर्दानी छायी हुई थी.
यह सुनते ही घर की महिलाएं दहाड़ मारकर रोने लगीं…बस इतने से ही क्षेपक मिट गया. उसने माहौल और गंभीर होने से पहले ही चिल्लाते हुए कहा….अरे काउआ ठोंड़ मरलस हे…
…और अपनी खींसें निपोर दीं..
घर की महिलाओं ने देसज में उसकी खूब कुटाई की…लेकिन फिर कौवे के काटने पर उसका झूठ बोलना सबको खला नहीं.
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