भारत विविधताओं का देश है. यहां पशु-पक्षी से लेकर प्रकृति की हर चीज को महत्व दिया जाता है. धन की देवी लक्ष्मी की पूजा के बाद यहां पठन-पाठन के कार्य में उपयोग में आने वाले कलम और दवात की पूजा भी होती है. हिंदू समाज कलम-दवात की पूजा इसलिए करता है क्योंकि ये भगवान चित्रगुप्त के प्रतीक हैं. खास तौर पर कायस्थ समाज के लोग कलम के आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा धूमधाम से करते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ था. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में चित्रगुप्त जी की पूजा का विशेष महत्व है. वह कायस्थों के आराध्य देव हैं. भगवान चित्रगुप्त, भगवान ब्रह्मा की संतान हैं. वह ज्ञान के देवता हैं. उनको यमराज का सहायक देव माना जाता है. यमलोक के राजा यमराज को कर्मों के आधार पर जीव को दंड या मुक्ति देने में कोई समस्या न हो, इसलिए चित्रगुप्त भगवान हर व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा लिखकर यमदेव के कार्यों में सहायता प्रदान करते हैं. चित्रगुप्तजी का जन्म काया से हुआ था इसलिए चित्रगुप्त जी को कायस्थ कहा गया.
पुण्य-पाप का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की पूजा इस वर्ष 27 अक्टूबर को मनाई जाएगी. कायस्थ, पूजा के दिन भगवान चित्रगुप्त के साथ ही कलम और बहीखाते की भी पूजा करते हैं. ज्योकि ये दोनों ही भगवान चित्रगुप्त को प्रिय हैं. इसके साथ ही अपनी आय-व्यय का ब्योरा और घर परिवार के बच्चों के बारे में पूरी जानकारी लिखकर भगवान चित्रगुप्त को अर्पित की जाती है. एक सादे कागज पर अपनी इच्छा लिखकर पूजा के दौरान भगवान चिगुप्त के चरणों में अर्पित करते हैं.
चित्रगुप्त पूजा की रस्में मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा निभाई जाती हैं और पूरा परिवार साथ में पूजन करता है. इस दिन परिवार के लोग कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं करते. मान्यता है कि उनकी पूजा करने से गरीबी और अशिक्षा दूर होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह किसी विशेष प्रयोजन से समाधिस्थ हो रहे हैं. इस दौरान वह यत्नपूर्वक सृष्टि की रक्षा करे. इसके बाद ब्रह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली. जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरुष कलम-दवात लिए खड़ा है.
ब्रह्माजी ने उसका परिचय पूछा तो वह बोला, मैं आपके शरीर से ही उत्पन्न हुआ हूं. आप मेरा नामकरण करने योग्य हैं. मेरे लिए कोई काम है तो बताएं. ब्रह्मा जी ने हंसकर कहा, मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो इसलिए ’कायस्थ तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे. धर्म-अधर्म पर धर्मराज की यमपुरी मे विचार तुम्हारा काम होगा. चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हआ. सुदक्षणा से उन्हें श्रीवास्तव, सूरजध्वज, निगम और कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र प्राप्त हुए जबकि एरावती से आठ पुत्ररत्न प्राप्त हुए जो पृथ्वी पर माथुर, वर्ण, सक्सेना, गौड, अस्थाना, अम्बष्ठ, भटनागर और बाल्मीकि नाम से विख्यात हुए. चित्रगुप्त की पूजा घी से बनी मिठाई, फल, चंदन, दीप, रेशमी वस्त्र, मृग और विभिन्न तरह के संगीत यंत्र बजाकर की जाती है.
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