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यात्रा

नेपाल ‘जेन जेड’ की क्रांति से धधक रहा था और हम सब पशुपतिनाथ के दर्शन कर सकुशल भारत की धरती पर थे

नेपाल ‘जेन जेड’ की क्रांति से धधक रहा था और हम सब सकुशल भारत की धरती पर थे
पूर्वोत्तर रेलवे पेंशनर्स एसोसिएशन, गोरखपुर के 44 सदस्यों ने कार्यकारी अध्यक्ष अमिय रमण के नेतृत्व में नेपाल की 6 दिवसीय तीर्थ यात्रा की। पशुपतिनाथ, जनकपुर धाम, और मनोकामना मंदिर के दर्शन के साथ-साथ इस यात्रा ने आपसी भाईचारे और मेल-जोल का अनोखा उदाहरण पेश किया।

पूर्वोत्तर रेलवे पेंशनर्स एसोसिएशन, गोरखपुर ने ‘कर भला तो हो भला’ की सोच के साथ, अपने सदस्यों के हित में हमेशा प्रशंसनीय कार्य किया है। एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष, श्री अमिय रमण, पेंशनरों और उनके परिवारों के लिए हमेशा कुछ न कुछ नया और रचनात्मक करते रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रेखा रमण के कहने पर नेपाल की तीर्थ यात्रा का कार्यक्रम बनाया।

इस टूर के लिए उन्होंने गोरखपुर शहर की एक स्थानीय टूर कंपनी के मैनेजर संतोष गौड़ से संपर्क किया। गौड़ जी ने दो और जोड़ों को साथ चलने के लिए कहा। जब श्री रमण ने यह जानकारी व्हाट्सएप पर पोस्ट की, तो लगभग 50 लोगों ने इसमें अपनी रुचि दिखाई। जल्द ही 44 लोगों ने यात्रा की फीस जमा कर दी। कई लोगों को संशय था कि 44 लोगों का एक साथ, छह दिन और पांच रातों का यह टूर कैसे संभव हो सकेगा। लेकिन सफ़र शुरू हुआ तो सारी चिंताएं, बाधाएं अपने आप दूर गईं।

3 सितंबर, 2025 की सुबह 23 परिवारों के 44 सदस्यों को विदा करने आए लोगों में सर्वश्री ए.के. कोहली, पी.एस. पांडेय, सी.पी. राय, नजमुद्दीन, और मीन बहादुर जैसे कई लोग शामिल थे। तिलक लगाकर दी गई शुभकामनाओं का परिणाम भी सुखद और मंगलमय रहा।

नेपाल ‘जेन जेड’ की क्रांति से धधक रहा था और हम सब सकुशल भारत की धरती पर थे
नेपाल यात्रा के लिए बस में सवार पेंशनर्स एसोसिएशन के सदस्य.

गोरक्षनाथ की धरती से पशुपतिनाथ की ओर

गोरखपुर से शुरू हुआ हमारा यह कारवाँ, अनंत महादेव पशुपतिनाथ के दर्शन की लालसा लिए, नेपाल की ओर चल पड़ा। नेपाल तीर्थ यात्रा के मैनेजर श्री संतोष गौड़ के दिशा-निर्देश में, सोनौली बॉर्डर पर चेकिंग के बाद सभी ने मनी एक्सचेंज कराया और गौतम बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी के लिए प्रस्थान किया। वहाँ पहले से मौजूद नेपाल तीर्थ यात्रा की मेस टीम ने पोहा और स्वादिष्ट हलवा खिलाकर चाय पिलाई।

लुम्बिनी में, डेढ़ घंटे के भीतर सभी ने महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली, माया देवी मंदिर, अशोक स्तंभ, शांति दीपक, संग्रहालय, और विभिन्न देशों द्वारा बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय मठों का भ्रमण किया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा स्थापित बुक स्टॉल पर साहित्यिक गतिविधियों के बारे में जानने के बाद, सभी भोजन के लिए ठहराव स्थल की ओर चल पड़े। वहाँ गर्मा-गर्म दोपहर का भोजन मिला। कमल के फूलों से भरे तालाब के किनारे ठंडी-ठंडी हवा में मन तृप्त हो गया और सभी ने हँसी-मजाक किया। इसके बाद पर्यटक स्थल पोखरा के लिए प्रस्थान किया गया।

पहाड़ों के बीच पोखरा का सफर

पहाड़ी रास्ते से, बस गहरी खाइयों के बीच से गुजरती हुई प्राकृतिक दृश्यों को दिखा रही थी। इस दौरान कुछ लोगों को उल्टी और सिर दर्द की शिकायत हुई। डॉ. भानु प्रकाश नारायण ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी दवा से उन्हें राहत दिलाई, जबकि कुछ ने श्री रमण जी से एलोपैथ की दवा ली। डॉ. नारायण ने लोगों को वैकल्पिक चिकित्सा इलेक्ट्रो होम्योपैथी के बारे में भी बताया।

पोखरा पहुँचते-पहुँचते रात के 12 बज गए थे। मौसम सुहावना था और हल्की बारिश हो रही थी। प्राकृतिक नजारों के बीच होटल “हिमालयन इन” में रात्रि भोजन के बाद, सभी अपने-अपने कमरों में आराम करने चले गए। अगली सुबह सूर्य की किरणों के साथ मौसम और भी सुहावना हो गया। मेस टीम ने नाश्ता तैयार कर दिया, जिसे खाकर पूरी टीम हँसते-खिलखिलाते पोखरा के दर्शनीय स्थलों की ओर निकल पड़ी।

टूर मैनेजर श्री गौड़ एक कुशल गाइड की भूमिका में नजर आए और समय-समय पर पोखरा के दर्शनीय स्थलों के बारे में जानकारी देते रहे। विंध्यवासिनी मंदिर, सेती नदी, डेविस फॉल, गुप्तेश्वर महादेव केव, महेंद्र केव और वेट केव देखने के बाद, होटल में दोपहर का भोजन किया गया। इसके बाद सभी पैदल ही प्राकृतिक नजारों के बीच फेवा झील की ओर चल पड़े। झील के किनारे फोटो खिंचवाए और फिर नाव से झील के पार स्थित बाराही भगवती मंदिर में नौका विहार का रोमांचक अनुभव लिया। देवी के दर्शन और आरती के बाद प्रसाद ग्रहण किया गया। रात का डिनर शानदार रहा।

मनोकामना मंदिर और काठमांडू का रोमांच

अगले दिन सुबह-सुबह काठमांडू के लिए प्रस्थान करना था। रास्ते में रोपवे से मनोकामना मंदिर पहुँचना, माता के दर्शन करना और फिर रोपवे से वापस आना रोमांचक रहा। मनोकामना केबल कार की लंबाई 2.8 किलोमीटर है, जो कुरिनतार, चितवन से 1033 मीटर की ऊँचाई पर खड़ी चढ़ाई चढ़कर 10-12 मिनट में मनोकामना की दूरी तय करती है। इसका किराया रु. 670/- प्रति व्यक्ति है।

मनोकामना माता से आशीर्वाद लेकर हमारा कारवाँ काठमांडू पहुँच गया। वहाँ बेहतर होटल तारा रेस्टोरेंट में सभी का ठहराव हुआ। मेस टीम द्वारा तैयार स्वादिष्ट रात्रि भोजन का सभी ने आनंद लिया। अगली सुबह पशुपतिनाथ धाम पर सभी ने मात्र रु. 350/- प्रति व्यक्ति देकर नेपाली पंडित से विधि-विधान से रुद्राभिषेक पूजन कराया। प्रसाद स्वरूप उसी पैसे में 54 मनके वाला रुद्राक्ष का माला भी मिला। पत्नी के लिए अतिरिक्त माला रु. 100/- देकर प्राप्त की गई।

पूजन विधि से सभी बहुत प्रसन्न दिखे। पूजन के बाद बाबा पशुपतिनाथ के दर्शन किए और विशालकाय नंदी के चरणों का स्पर्श कर अपनी-अपनी मनोकामनाएँ बताईं। भैरवनाथ का दर्शन करने के बाद बागमती नदी और जलते हुए शवों को देखा। 108 शिवलिंगों और विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन अपने आप में एक अलौकिक अनुभव था।

होटल लौटकर नाश्ता और चाय लेने के बाद, पास के दर्शनीय स्थलों जैसे गुह्येश्वरी माता शक्तिपीठ मंदिर, बुद्ध नाथ, बुद्धा नीलकंठ, और स्वयंभूनाथ का भ्रमण किया गया। दोपहर में मेस टीम द्वारा तैयार शानदार भोजन के बाद थोड़ा आराम किया गया। फिर शाम 4 बजे से आसपास के मंदिरों को देखने के लिए कारवाँ फिर निकल पड़ा। शाम 6 बजे तक सभी लोग बागमती के किनारे आरती स्थल पर इकट्ठा होने लगे।

नेपाल ‘जेन जेड’ की क्रांति से धधक रहा था और हम सब सकुशल भारत की धरती पर थे
लेखक श्री भानु प्रकाश नारायण अपनी पत्नी के साथ.

नेपाल में मस्ती और जनकपुर का सफर

रात को सभी लोग होटल में एकत्र हुए और श्रीमती विमला सिंह (पत्नी श्री पुरुषोत्तम सिंह) और श्री आर.एन. मिश्रा जी का जन्मदिन बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। सभी ने खूब गाना गाया और हँसी-मजाक किया। पति-पत्नियों से कुछ सवाल पूछकर एक-दूसरे के प्रति विश्वास जगाने का प्रयास किया गया।

अगले दिन सुबह-सुबह कारवाँ सीता की स्थली जनकपुर की ओर चल पड़ा। रास्ते में श्री रमण जी द्वारा गाए गए मैथिली गीतों ने यात्रा को और भी आनंदमय बना दिया। रास्ते में नाश्ता और चाय मिली, फिर दोपहर का भोजन। नेपाल तीर्थ यात्रा के सौजन्य से जनकपुर से 40 किलोमीटर पहले बार्डीबस में निर्धारित कुटुंब होटल और थापा होटल एंड गेस्ट हाउस में विश्राम किया गया। चंद्र ग्रहण के कारण रात 9 बजे तक रात्रि भोजन कर लिया गया। सभी लोग अपने-अपने घर वालों से बात करने के लिए बेचैन थे, लेकिन नेपाल सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिए जाने के कारण बात नहीं हो पाई।

वरिष्ठ नागरिकों, खासकर महिलाओं में अद्भुत उत्साह देखा जा रहा था। प्राकृतिक नजारों से सभी में एक नई चेतना दिखाई दे रही थी। रात्रि विश्राम के बाद सुबह 5:30 बजे हमारा कारवाँ फिर चल पड़ा—अपनी सीता मैया की याद में अपने रामलला के ससुराल जनकपुर की ओर।

टूर प्रोग्राम के आखिरी दिन “धनुषाधाम” में भगवान शिव के टूटे धनुष के अवशेष और पाताल कुआँ देखने के बाद, छोले भटूरे और चाय ली गई। इसके बाद जनकपुर धाम में राजा जनक के महल और विवाह मंडप के दर्शन किए गए। बिहार के सीतामढ़ी स्थित पुनौरा धाम, जहाँ माँ सीता अवतरित हुई थीं, का भी दर्शन किया गया। गृहमंत्री श्री अमित शाह द्वारा नवनिर्मित मंदिर के शिलान्यास स्थल को देखकर सभी ने नमन किया।

कारवाँ थोड़ी दूर आगे एक ढाबे पर पहुँचा, जहाँ टूर मैनेजर ने दोपहर के भोजन का प्रबंध किया था। घर जैसा सादा भोजन—चावल, दाल, आलू की भुजिया, भिंडी की भुजिया और चटनी का स्वाद लाजवाब था। ढाबे पर रसगुल्ला और गुलाब जामुन देखकर हम सब भी बच्चों की तरह खुद को रोक नहीं पाए।

सकुशल वापसी और यादें

श्री सुभाष गौड़ ने बस में लंबी यात्रा के दौरान अंताक्षरी कराकर लोगों की बोरियत दूर की। उनका साथ दिया सर्वश्री अमिय रमण, जी.एस. पांडेय, ए.पी. खरे, श्री राधेश्याम सिंह (पूर्व प्रधानाचार्य विद्युत प्रशिक्षण केंद्र), डी.के. श्रीवास्तव, भरत शर्मा, राधे श्याम सिंह (सिग्नल), परमेश्वर शर्मा, अनिल कुमार शर्मा, प्रदीप कुमार, पी.एन. सेन गुप्ता, यदुवंश शुक्ला, भानु प्रकाश नारायण, आनंद गौड़, पुरुषोत्तम सिंह, बी.बी. मल्ल, उमेश सिंह, आलोक कुमार सिंह, ओम प्रकाश सिंह, संजय नंदन सेन गुप्ता, प्रभु नाथ शर्मा, आर.एन. मिश्रा, सर्वश्री रेखा रमण, बिंदु पांडेय, बबिता खरे, मनोरमा सिंह, किरण श्रीवास्तव, सरस्वती शर्मा, राज किशोरी सिंह, पार्वती देवी, विनीता शर्मा, सुमन कुशवाहा, सुशीला शुक्ला, अनिता सेन गुप्ता, कुसुम लता गौड़, आशा सिंह, विमला सिंह, रंजना श्रीवास्तव, सुनीता मल्ल, अजय लक्ष्मी सिंह, विजय लक्ष्मी शर्मा, सिया देवी, और नीलम मिश्रा आदि ने।

गोरक्षनाथ की धरती पर, बाबा गोरखनाथ के आशीर्वाद से, बाबा पशुपतिनाथ का आशीर्वाद पाकर, 8 सितंबर 2025 की रात 12 बजकर 15 मिनट पर, अपनों से बिछड़ने का गम और एक सप्ताह बाद बच्चों से मिलने की खुशी के साथ, सभी ने बस से उतरते हुए एक-दूसरे को बधाई दी।

लाख-लाख शुक्रिया अनंत शिव को, और गोरखनाथ को, क्योंकि उस समय नेपाल ‘जेन जेड’ की क्रांति से धधक रहा था और हम सब सकुशल भारत की धरती पर थे।

न मंजिलों को, न हम रहगुज़र को देखते हैं,
अजब सफर है कि बस हम सफ़र को देखते हैं।


नेपाल ‘जेन जेड’ की क्रांति से धधक रहा था और हम सब पशुपतिनाथ के दर्शन कर सकुशल भारत की धरती पर थे

लेखक: भानु प्रकाश नारायण
सूचना एवं प्रसारण मंत्री,
पूर्वोत्तर रेलवे पेंशनर्स एसोसिएशन, गोरखपुर।
संपर्क:- 9451231022


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गो गोरखपुर ब्यूरो

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