कॉलम - ठोंक बजा के गो ठोंक बजा के... बात-बेबात

बाउंसर रखकर ​मरीज़ की पीड़ा का गला मत घोटिये!

चिकित्सा कर्म, सेवा नहीं है. इसे ‘सेवा’ के नजरिये से देखे जाने की समझ अब पुरानी और व्यर्थ हो चुकी लगती है. चिकित्सक की फीस चुकाने के साथ ही, डॉक्टर और मरीज का रिश्ता बाज़ारू हो जाता है. इस रिश्ते में दया, करुणा, संवेदनशीलता, सम्मान की अपेक्षा रखना बेमानी है. बात कड़वी, मगर सच है.

नया एक्सप्रेसवे: पूर्वांचल का लक, डेवलपमेंट का लिंक महाकुंभ 2025: कुछ अनजाने तथ्य… महाकुंभ 2025: कहानी कुंभ मेले की…
नया एक्सप्रेसवे: पूर्वांचल का लक, डेवलपमेंट का लिंक महाकुंभ 2025: कुछ अनजाने तथ्य… महाकुंभ 2025: कहानी कुंभ मेले की… कहानी खिचड़ी मेला की…