बतकही बतकही

बतकही: हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के…

आज सुबह की टहलान में बात चली। बात बड़ी थी इसीलिए ग़ौरतलब भी। विचार बिंदु था कि जब तक हमारा कुछ नुकसान नहीं होता हम किसी और नुकसान को लेकर व्याकुल नहीं होते। जीवन के किसी मूल्य के क्षरण से समाज पर क्या असर पड़ेगा, वह किस दिशा में जाएगा?

बतकही-गो गोरखपुर बतकही बात-बेबात

…क्योंकि प्रेम है भक्ति की पहली सीढ़ी

गो गोरखपुर बतकही | ‘पुनर्नवा’ चौथी सदी के आसपास के भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें उठाए गए प्रश्न आज भी प्रासंगिक हैं.

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