पुतवो मीठ, भतरो मीठ…
पुतवो मीठ, भतरो मीठ…
प्रोफेसर अपने प्रवाह में बोल गए. उनके मुंह से भोजपुरी! यह थोड़ी चौंकाने वाली बात लगी.
पुतवो मीठ, भतरो मीठ…
प्रोफेसर अपने प्रवाह में बोल गए. उनके मुंह से भोजपुरी! यह थोड़ी चौंकाने वाली बात लगी.
बतकही: किसी परिवार का लड़का पढ़ लिखकर बीए, एमए तक पहुंचा, परिवार में दस बीघे खेती है. वरदेखुआ आ धमकते थे. रिश्ता तय हो जाता था. मध्यस्थता करने वाले रिश्तेदारों के इस कार्य को प्रतिष्ठापरक, पुनीत माना जाता रहा.
गो गोरखपुर बतकही | ‘पुनर्नवा’ चौथी सदी के आसपास के भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें उठाए गए प्रश्न आज भी प्रासंगिक हैं.