दीपिका की बेटी दुआ के चर्चे
Deepika ki beti: रणवीर—दीपिका मशहूर फिल्मी सितारों की जोड़ी को कौन नहीं जानता। ये पावर कपल 8 सितंबर को माता-पिता बने हैं। फिल्मी सितारों के घर एक नन्ही परी आई…
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Deepika ki beti: रणवीर—दीपिका मशहूर फिल्मी सितारों की जोड़ी को कौन नहीं जानता। ये पावर कपल 8 सितंबर को माता-पिता बने हैं। फिल्मी सितारों के घर एक नन्ही परी आई…
जेनरेशन गैप की असली वजह तकनीकी विकास और बाजारवाद है न कि संस्कार, कला और संस्कृति. ये तो इसे संरक्षित करने की पक्षधर हैं.
Gorakhpur: परिवार टूट रहे हैं. संबंध बिखर रहे हैं. पति-पत्नी, भाई-भाई, भाई-बहन, पिता-पुत्र के बीच की आत्मीयता अब पहले जैसी नहीं रही.
बतकही: बाबू साहब ठहाका लगाते हैं. प्रति प्रश्न करते हैं. भला इतनी सस्ती दर के घी से कौन सा लड्डू बनेगा. आखिर मंदिर प्रशासन को इतने सस्ते दर के घी…
बतकही: किसी परिवार का लड़का पढ़ लिखकर बीए, एमए तक पहुंचा, परिवार में दस बीघे खेती है. वरदेखुआ आ धमकते थे. रिश्ता तय हो जाता था. मध्यस्थता करने वाले रिश्तेदारों…
गो गोरखपुर बतकही | 'पुनर्नवा' चौथी सदी के आसपास के भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें उठाए गए प्रश्न आज भी प्रासंगिक हैं.
दुबे जी एक तरफ सिंह साहब दूसरी तरफ। दुबे जी तर्क कर रहे थे। अच्छे पढ़े-लिखे लड़के अब प्राइवेट सेक्टर में जा रहे हैं। वहां उनके ज्ञान और कौशल का…
बतकही | निजी चिकित्सा सेवाओं का संजाल शहर से लेकर गांवों तक फैला है। अब तो इनके दलाल भी हर की मौजूद हैं। कहीं-कहीं तो सब कुछ तंत्र की जानकारी…
गो गोरखपुर बतकही | सोचें! शैशव काल से बचपन के दिन. पहला कदम. पहला शब्द. मां की उंगलियां पकड़े आगे बढ़ने की अभिलाष. भाषा के संस्कार. सारी क्रियाओं में से…
गो गोरखपुर बतकही | ज्ञानी जी की महफिल में जो चरचा थी वह अजीबोगरीब. चरचा भी यकीन से परे. बात कुछ यूं थी. धर्म और कर्म एक साथ जीने वाले…
बतकही: महफिलों में गए तो खुद की साथ ले जाते। किसी की भावनाएं आहत न हों, इसका भरपूर ख्याल रखते। कभी किसी से उम्मीद नहीं की। न छिपाते, न बताते,…
ध्यानी जी धार्मिक यात्रा पर थे. ठगी के शिकार हो गए. बात बहुत छोटी है लेकिन है पिंच करने वाली. ध्यानी जी आस्थावादी हैं. उन्हें लगता है कि धर्म से…
बतकही: मंगरू मास्साब बहुत खुश हैं. आज सुबह की चाय पर जब बहुत कुरेदा तो पता चला कि उनकी खुशी की जड़ में "विकास" बैठा हुआ है. यह वही विकास…
कौवाबाग रेलवे कॉलोनी से होकर रेलवे स्टेशन पहुंचना हो तो सुखद लगता है. सड़क के दोनों किनारे हरे-भरे वृक्ष मानो साधना में लीन. आगे फिर स्वाद......