शहरनामा

गोरखपुर का इतिहास: महाकाव्य काल में ‘करपथ’ के नाम से विख्यात थी गोरखनगरी, जानिए इस भूमि की रोचक बातें

प्राचीन गोरखपुर की तस्वीर (ग्रोक से बनाई गई तस्वीर)

गोरखपुर का इतिहास सदियों पुराना है और यह क्षेत्र भारतीय सभ्यता के महत्वपूर्ण पड़ावों का साक्षी रहा है। आइए, जानते हैं गोरखपुर के प्राचीन इतिहास की कुछ अनसुनी कहानियां।


गोरखपुर, उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर, केवल अपने आधुनिक विकास के लिए ही नहीं, बल्कि अपने समृद्ध और प्राचीन इतिहास के लिए भी जाना जाता है। महाकाव्य काल से लेकर गुप्तोत्तर काल तक, इस भूमि ने कई महत्वपूर्ण साम्राज्यों, गणराज्यों और सांस्कृतिक विकास को देखा है।

करपथ से गोरखपुर तक का सफर

महाकाव्य काल में, यह क्षेत्र करपथ* के नाम से विख्यात था और यह शक्तिशाली कोसल राज्य का हिस्सा था। कोसल, आर्यन संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता था। इस क्षेत्र को वर्तमान नाम और प्रसिद्धि प्रसिद्ध तपस्वी गोरखनाथ से मिली, जिन्होंने यहाँ तपस्या की और आज भी उनका भव्य मंदिर यहाँ स्थित है, जो लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है। इतिहास के ज्ञात सबसे पहले सम्राट, इक्ष्वाकु, जिनकी राजधानी अयोध्या थी और जिन्होंने सूर्यवंश की स्थापना की, उनका शासन भी इसी क्षेत्र तक फैला हुआ था।

गणराज्यों का उदय और गौतम बुद्ध का संबंध

महाभारत काल के दौरान, कोसल राज्य की संप्रभुता के तहत कई गणराज्य फल-फूल रहे थे। ये गणराज्य, जहाँ राजनीतिक शक्ति निर्वाचित क्षत्रियों के समूह द्वारा संचालित होती थी, गणतंत्रात्मक शासन के अग्रदूत थे। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण गणराज्य पिपपलीवन के मौर्यों का था, जिसकी पहचान आज के गोरखपुर तहसील के राजधानी और उपधौली गाँवों से की गई है। मौर्य राज्य पश्चिम और उत्तर-पश्चिम में कोलियों के क्षेत्रों तक विस्तृत था।

1978 में प्रकाशित गोरखपुर गजेटियर के 37वें संस्करण के द्वितीय अध्याय के पहले पृष्ठ का स्क्रीनशॉट.
1978 में प्रकाशित गोरखपुर गजेटियर के 37वें संस्करण के द्वितीय अध्याय के पहले पृष्ठ का स्क्रीनशॉट.

गोरखपुर का संबंध स्वयं गौतम बुद्ध से भी है। शाक्य राज्य, जो जिले के पश्चिमी भाग में स्थित था, से ही गौतम बुद्ध की माता माया थीं। माया, महाराजगंज तहसील में निचलाउल के पास स्थित देवदह के शाक्य प्रमुख अंजन की पुत्री थीं। निचलाउल में आज भी एक बड़े ईंट के किले के अवशेष मौजूद हैं, जो इस क्षेत्र के प्राचीन महत्व को दर्शाते हैं। मल्ल गणराज्य, कोसल के सभी गणराज्यों में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण था, जिसकी सीमाएँ पश्चिम और उत्तर-पश्चिम में कोलियों तथा दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में मौर्य गणराज्य से मिलती थीं।

कला, समृद्धि और ऐतिहासिक साक्ष्य

सोहगौरा (बांसगांव तहसील) में हुई खुदाई से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्य इस क्षेत्र की प्राचीन समृद्धि और कलात्मक रुचि को उजागर करते हैं। यहाँ से चित्रित मिट्टी के बर्तन (लाल रंग के), टेराकोटा और कॉर्नेलियन मोती, ढाले और पंच-मार्क वाले सिक्के, तथा तीसरी और दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की ब्राह्मी लिपि में अंकित मिट्टी की मुहरें मिली हैं। ये खोजें दर्शाती हैं कि यह क्षेत्र शांति और समृद्धि के साथ एक विकसित समाज का केंद्र था।

मगध साम्राज्य के पतन के बाद का इतिहास, कुषाणों के आगमन तक कुछ हद तक अंधकार में डूबा रहा। हालांकि, गोरखपुर के एक मंदिर में मिली भगवान विष्णु की एक सुंदर मूर्ति उस काल के मूर्तिकारों की उत्कृष्ट कला का प्रमाण देती है।

गुप्तोत्तर काल और चीनी यात्री ह्वेन त्सांग

गुप्तोत्तर काल में, यह क्षेत्र पहले मौखरियों के अधीन आया, जिसके बाद कन्नौज के हर्ष का शासन रहा। हर्ष के शासनकाल (606-647 ईस्वी) के दौरान, प्रसिद्ध चीनी तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग (630-644 ईस्वी) ने पिपपलीवन और रामग्राम का दौरा किया। उन्होंने अपनी यात्रा वृत्तांत में उल्लेख किया कि जिले का एक बड़ा हिस्सा घने वनों से ढका हुआ था और हर दिशा में मठों और स्तूपों के अवशेष मौजूद थे, जो इस क्षेत्र के बौद्धिक और धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं।

गोरखपुर का यह समृद्ध प्राचीन इतिहास हमें बताता है कि यह भूमि सदियों से ज्ञान, संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र रही है, जिसके हर कोने में अनकही कहानियाँ दफ़न हैं।


* 1978 में प्रकाशित गोरखपुर गजेटियर के 37वें संस्करण के अध्याय 2 में गोरखपुर शहर के नाम के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. यह संदर्भ वहां से लिया गया है.


Siddhartha Srivastava

Siddhartha Srivastava

About Author

आज, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण जैसे हिंदी अखबारों में 18 साल तक सांस्थानिक पत्रकारिता का अनुभव. l10n और i18n इंडस्ट्री में करीब 2 साल पूर्णकालिक तौर पर जुड़े रहे. वर्तमान में Go Gorakhpur के लिए स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्यों में संलग्न. email:- siddhartha@gogorakhpur.com

नया एक्सप्रेसवे: पूर्वांचल का लक, डेवलपमेंट का लिंक महाकुंभ 2025: कुछ अनजाने तथ्य… महाकुंभ 2025: कहानी कुंभ मेले की…
नया एक्सप्रेसवे: पूर्वांचल का लक, डेवलपमेंट का लिंक महाकुंभ 2025: कुछ अनजाने तथ्य… महाकुंभ 2025: कहानी कुंभ मेले की… कहानी खिचड़ी मेला की…