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लखेरा: बचपन की अल्हड़पन से गाली तक की एक शब्द-यात्रा

लखेरा: बचपन की अल्हड़पन से गाली तक की एक शब्द-यात्रा
एक दोस्त की 'लाखैरा' जैसी बचपन की बात ने सोचने पर मजबूर किया कि कैसे 'लखेरा' शब्द (लाख की चूड़ियां बनाने वाले) एक समय पर गाली का पर्याय बन गया। जानिए इस शब्द की दिलचस्प सांस्कृतिक यात्रा।

सुबह की सैर पर हम चार दोस्त थे। बातों ही बातों में हमारे एक दोस्त ने कहा कि उनकी बचपन की ज़िंदगी बिल्कुल “लाखैरा” जैसी थी। यह सुनकर बड़ा अच्छा लगा। ज़रूर, वह अल्हड़पन की ज़िंदगी रही होगी।

बचपन, किशोरावस्था या छात्र जीवन तो लगभग सबका ऐसा ही होता है। कंधों पर एकमात्र ज़िम्मेदारी पढ़ाई-लिखाई की होती है। खाने, कपड़े और आवास की ज़िम्मेदारी अभिभावकों – माता-पिता, बड़े भाई, छोटे भाई (जिसकी जैसी भी स्थिति हो) – पर हुआ करती है। सबसे बड़ी बात, जीवन के इस कालखंड में किसी चीज़ की चिंता नहीं करनी होती है। मनोवैज्ञानिक दबाव सिर्फ़ पढ़ाई का होता है, अच्छे नंबरों से पास होने का होता है। या फिर, थोड़ा समझदार होने पर नौकरी की चिंता सताने लगती है। क्या ही शानदार जीवन हुआ करता था!

यह अलग बात है कि जब हम अपने जीवन के किसी हिस्से में इस शब्द से नवाजे जाते थे, तो इसे गाली समझा जाता था। भला, गाली किसके लिए शोभायमान होगी? अगर कमजोर पड़ गए तो चुपचाप सह लेना, और अगर बीस पड़ गए तो लड़ जाना और मारपीट पर भी उतारू हो जाना। छात्र जीवन में ये सब बातें तो सामान्य हुआ करती थीं।

जीवन के बीते पन्नों को पलटते हुए जब मैं इस गहराई तक पहुँचा, तो लगा कि इसका सही अर्थ क्या हो सकता है, इस शब्द की यात्रा क्या हो सकती है? इसे समझ ही लिया जाए। पता किया तो पता चला कि इसका सही उच्चारण “लखेरा” है। व्याकरण की दृष्टि से यह एक संज्ञा है। इस संज्ञा से लाख की चूड़ियाँ बनाने वाले और उनको बेचने वाले लोग विभूषित होते हैं।

दोनों को याद करता हूँ तो एक तस्वीर उभरती है: सर पर टोकरी लिए, जिसमें तरह-तरह की रंग-बिरंगी चूड़ियाँ होती थीं, और पगडंडियों से गुजरते हुए इस गाँव से उस गाँव तक फेरी लगाने वाले लोग। वे महिलाओं के श्रृंगार के साधन के रूप में इन चूड़ियों को बेचते फिरते नज़र आते रहते थे। तब जाकर इस शब्द ने अपनी यह अर्थवत्ता ग्रहण की।

मन फिर चिंतन में पड़ गया। सुंदर शब्द “लखेरा” गाली या गाली का पर्याय कब से हो गया होगा? समझ में आता है कि जब समाज में थोड़ी आधुनिकता और तकनीकी विकास ने पदार्पण किया होगा, तो लाख की चूड़ियों का कारोबार ठप हो गया होगा। ऐसे लोग या तो बेरोज़गार हो गए होंगे, या कोई दूसरा धंधा अपना लिया होगा, या उसकी जगह पर काँच की चूड़ियाँ बेचने में जुट गए होंगे।

अब आप ही बताएँ, “लखेरा” गाली है, व्यवसाय है अथवा एक सम्मान सूचक शब्द? यह आज भी शब्दकोश में अपना स्थान बनाए हुए है।



Jagdish Lal

Jagdish Lal

About Author

हिंदी पत्रकारिता से करीब चार दशकों तक सक्रिय जुड़ाव. संप्रति: लेखन, पठन-पाठन.

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