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‘सहजीवन संवाद’ का आगाज: क्या मानव और वन्यजीव साथ रह पाएंगे? विशेषज्ञों ने मिलकर तलाशे समाधान

'सहजीवन संवाद' का आगाज: क्या मानव और वन्यजीव साथ रह पाएंगे? विशेषज्ञों ने मिलकर तलाशे समाधान
गोरखपुर में 'सहजीवन संवाद' का शुभारंभ। मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व पर मीडिया, वन विभाग और विशेषज्ञों ने की चर्चा। सकारात्मक रिपोर्टिंग और नीतिगत बदलावों पर जोर।

गोरखपुर: प्रकृति द्वारा मनुष्य और वन्यजीवों को एक-दूसरे का पूरक बनाए जाने के बावजूद, वर्तमान में उत्पन्न विरोधाभासों को समाप्त करने और सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व का मार्ग प्रशस्त करने के उद्देश्य से जागृति उद्यम केंद्र–पूर्वांचल के बायोरिजनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की ओर से शनिवार को दो दिवसीय ‘सहजीवन संवाद’ का शुभारंभ किया गया।

संवाद के पहले दिन शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणी उद्यान (गोरखपुर चिड़ियाघर) के कॉन्फ्रेंस हॉल में मीडिया प्रतिनिधियों, वन विभाग के अधिकारियों और विभिन्न संस्थाओं से आए वन्यजीव विशेषज्ञों ने ‘मानव-वन्यजीव संपर्क (HWI)’ पर संवेदनशील रिपोर्टिंग में आ रही चुनौतियों पर गहन मंथन किया।

विशेषज्ञों के विचार और महत्वपूर्ण सुझाव:

  • पर्यावरण विशेषज्ञ अशद रहमानी ने इस बात पर जोर दिया कि मानव-वन्यजीव संबंधों को दर्शाने में सही और सकारात्मक शब्दों का चयन अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि बाघ भी एक मासूम जीव है, जिसे सुरक्षा की आवश्यकता है, न कि अनावश्यक महिमामंडन की।
  • मोंगाबे के पत्रकार कुंदन पांडेय ने संवाद की कमी को उजागर करते हुए कहा कि मीडिया को जिम्मेदार रिपोर्टिंग के लिए वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स का एक मजबूत नेटवर्क बनाना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाए तो लोगों की सहनशीलता खत्म हो सकती है।
  • दैनिक जागरण के संगम ने मीडिया की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा कि मीडिया हर मामलों में तथ्यात्मक और सटीक खबरें परोसने का काम करती है। उन्होंने समय सीमा और विशेषज्ञ कोट न मिल पाने जैसी चुनौतियों का जिक्र किया, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि वे बिना विशेषज्ञ से विषय को समझे रिपोर्टिंग करने से हमेशा बचते हैं।
  • ईटीवी भारत के पत्रकार मुकेश पांडेय ने सुझाव दिया कि वाइल्डलाइफ विशेषज्ञों को सामूहिक प्रयास से सरकार पर सकारात्मक नीति लाने का दबाव बनाना चाहिए।
  • मेटास्ट्रिंग फाउंडेशन के सीईओ रवि चेल्लम ने मीडिया और विशेषज्ञों के बीच नेटवर्क निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया, जिसे रातोंरात नहीं बनाया जा सकता।
  • चिड़ियाघर के डॉ. योगेश ने ‘आदमखोर’ जैसे शब्दों के प्रयोग पर चिंता व्यक्त की, जिससे वन्यजीवों के प्रति मानवों की धारणा बदल जाती है और वे उन्हें अपने लिए खतरा मानकर मारने पर उतारू हो जाते हैं।
  • डॉ. आर.के. सिंह ने वन्यजीवों को समझने के लिए धैर्य को पहली सीख बताया।
  • डीएफओ विकास यादव ने संवाद का मूल उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका लक्ष्य मीडिया, नीति और समाज के बीच मानव-वन्यजीव संपर्क को देखने और प्रस्तुत करने के तरीके पर समन्वय स्थापित करना है। उन्होंने ‘Human-Wildlife Conflict’ या ‘जंगली जानवरों का हमला’ जैसी शब्दावली के प्रयोग से बचने की सलाह दी, क्योंकि अक्सर ये घटनाएँ जानवरों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया या भ्रमित आचरण का परिणाम होती हैं।

दूसरे चरण की योजना: बायोरिजनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की डायरेक्टर राजलक्ष्मी देशपांडे ने बताया कि कार्यक्रम के दूसरे चरण में रविवार को बरपार स्थित बरगद सभागार में ‘सहजीवन संवाद’ आयोजित होगा। इस सत्र में किसानों और विशेषज्ञों के बीच वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ फसल और मानव क्षति की चुनौतियों पर मंथन किया जाएगा। इस दौरान देवरिया के सांसद, सीडीओ, डीएफओ, एसडीएम सहित कई विशेषज्ञ शामिल होंगे।

इस महत्वपूर्ण संवाद के अवसर पर सुजय हम्मन्नवर, आनंद सिंह, अभिषेक भारद्वाज, बैकुंठनाथ शुक्ल, सूर्यावंशी राय, लता, दर्पण चीब सहित पत्रकारिता के छात्र भी उपस्थित रहे।

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Amit Srivastava

Amit Srivastava

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गोरखपुर विश्वविद्यालय और जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से अध्ययन. Amit Srivastava अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान के साथ करीब डेढ़ दशक तक जुड़े रहे. गोरखपुर शहर से जुड़े मुद्दों पर बारीक नज़र रखते हैं.

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