GO GORAKHPUR: चिकित्सा व्यवस्था में बिचौलियों ने गहरी पैठ बना ली है. वे सेंध लगाने में दिनरात जुटे हुए हैं.इस कमाई में कुछ निजी अस्पताल प्रबंधन, कुछ एंबुलेंस चालक, मेडिकल कालेज और सदर अस्पताल के इर्दगिर्द के कुछ दुकानदार, कुछ पुलिसवाले सभी शामिल है. ठीक इसके उलट इन सभी पर नजर रखने का जिन लोगों पर जिम्मा है वे अंतत: मौन साधे रहते है. कौन जाने इसमें उनका भी कोई स्वार्थ हो.
इस पूरे कारोबार को एक उदाहरण से समझते हैं. बात रविवार की है. संतकबीरनगर जनपद की मेहदावल तहसील के ग्राम बनकसिया निवासी रामसूरत अपने भाई रामनयन के साथ रात नौ बजे कैंपियरगंज टैक्सी स्टैंड पहुंचे. वे बनारस से लौटे थे. यहां से उन्हें अपने गांव जाना था.रात को यात्रा साधन उपलब्ध न था. इस वजह से उन्होंने अपने बेटे दयाशंकर को फोनकर सूचना दी. दयाशंकर बाइक लेकर कैंपियरगंज रवाना हुए. करमैनीघाट—कैंपियरगंज मार्ग पर कैंपियरगंज बाजार से थोड़ा पहले बनभागलपुर गांव के करीब पहुंचते ही तेज रफ्तार कार ने उन्हें ठोकर मार दी.20 वर्षीय दयाशंकर वहीं गिर पड़े और बेहोश हो गए. मौके के लोगों ने घटना की सूचना 112 पर दी. तत्काल पुलिस पहुंची और बेहोश दयाशंकर को उठाकर कैंपियरगंज स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले आई . यहां प्राथमिक उपचार के बाद हालत गंभीर देख चिकित्सक ने मेडिकल कालेज रेफ़र कर दिया.रामसूरत बताते हैं कि पुलिस ने काफी मदद की.एंबुलेंस उन्हें और बेहोश बेटे को लेकर मेडिकल कालेज पहुंची. दयाशंकर को भर्ती कर दिया गया. रामसूरत बताते हैं कि बेहोश दयाशंकर को सिर में गहरी चोट लगी हुई थी. उन्हें खून की उल्टी हो रही थी. हालत गंभीर थी. उनका धैर्य जबाव दे रहा था. रात काफी हो गई थी. वे लाचार थे. इस बीच मेडिकल कालेज गेट के करीब एक जांच केंद्र पर एक युवक मिला. उसने उनकी ‘व्यथा’ सुनी और ‘सहानुभूति’ जताते हुए मदद का भरोसा दिया. रामसूरत की रजामंदी मिलते ही उसने एंबुलेंस बुलाई और जेल बाइपास स्थित एक नर्सिंग होम में ले जाकर दाखिल करा दिया. वह वापस चला गया. $ads={1}
घटना के मुख्य विंदु पर आइए चलते हैं. दयाशंकर हों या उनके पिता रामसूरत जैसे लोग अति पिछड़े ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं. पुलिस ने तो अपना दायित्व पूरी तौर पर निभाया. परंतु कुछ महत्वपूर्ण एवं गंभीर सवाल हैं जो आपके अथवा किसी भी विवेकशील के मन में उठेंगे ही.
सवाल है—वह कौन सी परिस्थितियां थीं कि रामसूरत का भरोसा मेंडिकल कालेज जैसे संस्थान पर नहीं बन पाया. जिनके संपर्क में रामसूरत उस विपत्ति में आए होंगे वे वहां मौजूद रात्रिकालीन आपातकालीन सेवा में लगे विशेषज्ञ चिकित्सक उनके साथी सीनियर मेडिकल छात्र, डाक्टर और पैरामेडिकल की एक बड़ी सी टीम रही होगी. यह टीम एक अनपढ़ ग्रामीण को इतनी सी यकीन दिला पाने में कामयाब न हो पाई-रामसूरत तुम जहां आए हो, वह बड़ी भरोसे की जगह है, यहां इसी भरोसे पर दूर दूर से यहां तक कि बिहार और नेपाल से लोग आते हैं, तुम कहीं मत जाओ, भरोसा करो दयाशंकर ठीक हो जाएगा.
वह कौन सी वजह थी कि भारी-भरकम बजट वाले बीआरडी मेडिकल कालेज के नेहरु चिकित्सालय में थोड़ी ही देर में रामसूरत का भरोसा टूट गया और उनकी मदद को एक अनजान युवक पहुंचा जिसने सहानुभूति का पिटारा खोल उन्हें ‘कहीं और ले कर चला गया’.
उत्तर में कोई यह कुतर्क गढ़ सकता है कि रामसूरत अपनी भलाई के वास्ते बेटे को जहां चाहें ले जा सकते हैं. इसमें कोई क्या कर सकता है. नेहरु चिकित्सालय की इमरजेंसी के चिकित्सकों ने उन्हें उनकी मर्जी पर ही कागज पर दस्तखत करवाया होगा. तब वे ‘लाश’ लेकर जाने पाए होंगे. तो फिर प्रश्न यह है कि ऐसे मामलों में रामसूरत का विवेक बड़ा है या एक सिद्धहस्त राजपत्रित चिकित्सक का. जीवन मौत से जूझ रहे नागरिक को क्या उसकी ‘मर्जी’ पर छोड़ देना राजकीय सेवा के वृहत्तर उद्देश्यों को पूरा करता है.
फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि रामसूरत बेहोश बेटे को जिस निजी चिकित्सक के नर्सिंग होम ले गए निर्णय उचित था. जहां लेजाए गए वह दलाल गिरोह से जुड़ा हो सकता हो, फिर चिकित्साविज्ञान की पेचीदगियों से गाफिल शहर में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए नर्सिंग होम की फितरत रामसूरत को कितनी पता है. हकीकत यह है कि इन प्रश्नों का किसी के पास कोई सहज ग्राहय उत्तर नहीं है. इसलिए इन प्रश्नों के गर्भ में ही छिपा है दलाली का यह धंधा.
कड़ी कुछ इस तरह है. जब कोई गरीब इस तरह विपत्ति का मारा होगा. वह सरकारी चिकित्सक की उपेक्षा का शिकार होगा. कोई बिचौलिया बन उसकी संवेदना से खेल करेगा और फिर उसे अपना शिकार बनाएगा. गरीब नर्सिंग होम पहुंचेगा. मालिक और दलाल मालामाल होंगे. सरकारी मशीनरी पुलिस, चिकित्साप्रशासन का एक तबका इसमें हिस्सा लेगा.
इस तरह शहर के अनेक निजी नर्सिंग होम का कारोबार फलताफूलता रहेगा. जहां बिल्डिंग तो है पर न अपना कोई डाक्टर और न ही विशेषज्ञता. सबकुछ जुगाड़ का है.वे सरकारी मशीनरी का मुह बंद करने से लगायत मरीज फंसाने, भारी बिल बनाने, उसकी वसूली में माहिर हैं.तो कैसे टूटेगा यह चक्रव्यूह. क्या रामसूरत तोडेंगे. नही…. नहीं…. आप.
दवा बनाने वाली कंपनी एलंबिक ने कभी कहा था— East UP is a goldmines for medical practitioner.
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