दूसरा सत्र : साहित्य में नॉस्टेल्जिया
साहित्य में नॉस्टेल्जिया विषय पर चर्चा में शामिल साहित्यकार अनामिका, हृषीकेश सुलभ और लेखक चन्द्रशेखर. |
उपन्यासकार व साहित्यकार हृषीकेश ने कहा कि वह दरिद्र है जिसके पास स्मृतियां नहीं हैं. नई पीढ़ी स्मृतिविहीन हो रही है. आज के विकास में मानवीय पक्ष कमजोर होता जा रहा है. स्मृति के बिना जीना असंभव है. वह साहित्य के यथार्थ की नींव रखती है. बिना स्मृति के यथार्थ की कल्पना बेबुनियाद है. स्मृतियों में पीढ़ियों के खान पान, पहनावा, संस्कृति, रीति रिवाज की झलक देखने को मिलती है. ऐसी स्मृतियों को हमें छोड़ देना चाहिए जो हमारी मानवीय संवेदना को दूषित करें. हर अतीत स्मृति के रूप में हमारे जीवन में दर्ज हो जाता है और वह हमारे आने वाले जीवन को बहुगुणित करता है. स्मृतियों का पीढ़ीगत संचरण आज के समय की बड़ी चुनौती है. स्मृतियों में हमने सुखों और दुखों की एक बड़ी यात्रा की है. हमारे जीवन मे जो कुछ भी घटता है वह सब हमसे ही उपजता है. अवसाद तो जीवन का एक भाग है, ये ज़रूर है कि स्मृतियों ने हमेशा से उसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका ज़रूर निभाई है. पर स्मृति बुरा वक्त और बुरे दौर से निकालने में भी सहायक होती है.
प्रख्यात साहित्यकार व कहानीकार चन्द्रशेखर वर्मा ने कहा कि नई पीढ़ी के पास अतीत को लेकर उदासीनता है. वे वर्तमान को समझना नहीं चाहते. बाज़ारवाद ने पढ़ने की प्रवृत्ति को आलस्य से भर दिया है और चिंतन की प्रवृत्ति अब स्मृतियो से हीन होकर वर्तमान की समस्याओं पर केंद्रित होती जा रहीं हैं. इस वजह से साहित्य में अतीत के खूबसूरत चित्र देखने को नहीं मिल पा रहे. उन्होंने अपने जीवन की स्मृति को साझा करने के सवाल पर कहा कि घटनाओं को सोचकर स्मृतियों के झरोखे से अचानक से पेश करना भी कोई आसान काम नहीं है. उन्होंने अपने दादा और प्रख्यात साहित्यकार भगवती चरण वर्मा की प्रकाशक के साथ एक चुटीला वृत्तांत साझा करते हुए बताया कि किस तरह से उन्होंने कॉपीराइट के नाम पर प्रकाशक से अपनी रचना की रक्षा की. उन्होंने यादों को मानव मस्तिष्क का एक ज़रूरी काम बताते हुए कहा कि यादें अगर रुक जाए तो इंसान में संवेदनशीलता खत्म हो जाएगी.
सत्र की शुरुआत में लेखक मृत्युंजय उपाध्याय नवल की कृति ख्वाहिशों का जंगल का लोकार्पण किया गया. सत्र का मॉडरेशन आकृति विज्ञ अर्पण ने किया.